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बिकल
बिगरना डरावना । " नाक कान बिन भइ विकरारा" वि. विकास्य, विकासनीय, बिकासित -रामा० ।
स० क्रि० (दे०) बिकासना । विकला-वि० दे० (सं० विकल) बेचैन, बिक्की-संज्ञा, पु. ( देश०) खेल के साथी, अचेत, व्याकुच, घबराया हुभा । संज्ञा, खेल के एक पन वाले आपस में बिक्की कहे स्त्री० बिकलता। "बिकल होसि जब
जाते हैं। कपि के मारे"-रामा।
| बिक्री-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विकय) विक्रय, बिकलाई।-सं० स्त्री० दे० ( सं० विकलता) बेचने से मिला धन, बेचने की क्रिया या व्याकुलता, बेचैनी, घबराहट । “सुनि भाव, बिकिरी (दे०)।
मम बचन तजौ बिकलाई"-रामा। बिखा-संज्ञा, पु० दे० (सं० विष ) विष, बिकलाना-अ.क्रि० दे० ( सं० विकल) ज़हर । वि० बिखैला। "बिख-रस भरा बेचैन या व्याकुल होना, घबराना।
कनक-घट जैसे"-रामा० ।। विकसना-अ. क्रि० दे० (सं० विकसन )
बिखम-वि० दे० (सं० विषम ) जो सम या फूलना, खिलना, प्रसन्न होना । स० रूप
सरल म हो, ताक, भीषण, विकट, अति विकसाना, प्र. रूप-विकसवाना।
कठिन, अति तीव। “बिखम गरल जेहि बिकसित-वि० दे० ( सं० विकसन ) फूला
पान किय"-रामा० । संज्ञा, स्त्री० (दे०)
बिखमता। या खिला हुश्रा। बिकाऊ-वि० दे० (हि० बिकना+आऊ.
बिखरना, बिखेरना-अ० कि० दे० (सं०
विक्रीर्ण ) छितराना, तितर बितर हो जाना, प्रत्य० ! जो बिकने के हेतु हो, बिकने वाला।
फैल जाना । स० रूप बिखराना या बिखबिकार*---संज्ञा, पु० दे० (सं० विकार)
| राना, विखेरना, प्रे० रूप-बिखरवाना। बिगाह, अवगुण, बुराई, खराबी, हानि।। "सकल प्रकार बिकार बिहाई"- रामा० ।
बिगड़ना- अ० क्रि० दे० (सं० विकृत ) संज्ञा, पु०, वि० (दे०) विकराल, विकट,
किसी वस्तु के रूप, गुणादि में विकार हो भीषण । संज्ञा, स्त्री० (दे०) विकारता।
जाना, बुरी दशा को प्राप्त होना, ख़राष बिकारी/-वि० दे० ( सं० विकार ) बदला
होना, किसी दोष से किसी वस्तु का बन कर हुश्रा, रूपान्तरित, परिवर्तित रूप वाला,
ठीक न उतरना, बिकार होना, कुमार्गी, हानिकारक, बुरा । सज्ञा, स्त्री० (सं० विकृति
नष्ट या भ्रष्ट होना, नीति के पथ से च्युत श्रवंक ) एक टेढ़ी पाई जिसे रुपये आदि के
होना, अप्रसन्न या नाराज़ होना, विद्रोह लिखने में संख्या के मान या मूल्यादि के
करना, विरोध या वैमनस्य होना, स्वामी सूचनार्थ पागे लगा देते हैं -जैसे-), ।
या रक्षक के अधिकार से बाहर हो जाना, "बंक बिकारी देत ही दाम रुपैया होत"।
व्यर्थ व्यय होना । बिकाश-संज्ञा, पु० दे० (सं० विकाश)
बिगड़ेदिल-संज्ञा, पु० यौ० (हि.) बिगड़ना
| +दिल-फा०) झगड़ाल, बखेडिया, कुमार्गी, उजेला, प्रकाश, एक अलंकार जिसमें किसी
क्रोधी। वस्तु का बिना निज का आधार छोड़े बहुत बिगदेल-वि० दे० (हि० बिगड़ना+ऐल विकसित होना कहा गया हो ( काव्य०)
या हा काव्य -प्रत्य० ) हठी, जिद्दी, क्रोधी, झगड़ालू, बिकास-संज्ञा, पु० दे० (सं० विकास ) | कुमार्गी ।
प्रस्फुटन, खिलना, फूलना, प्रसार, फैलाव, । बिगर, बिगिरी-क्रि० वि० (दे०) बगर वृद्धि, उन्नत होना । यौ० विकासवाद- (फ़ा०) बिना। एक पश्चिमीय वृद्धि सिद्धान्त, आनन्द, हर्ष । बिगरना-प्र० क्रि० (दे०) बिगड़ना ।
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