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रघुराज
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रघुराज - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रीरामचंद्र जी, रघुकुलनायक
रघुराय, रघुराया संज्ञा, पु० दे० ( सं० रघुराज ) श्रीराम । हा जगदेव वीर रघु
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राया -रामा० ।
रघुवंश - संज्ञा, ५० (सं०) महाराज रघु का कुटुंब या परिवार, महाकवि कालिदाकृत एक
महाकाव्य ।
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रघुवंशी संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जो राजा रघु के वंश में उत्पन्न हुआ हो, क्षत्रियों की एक जाति । काल डरहि न रण रघुवंशी " रामा० वि० रघुवंशीव । रघुवर संज्ञा, ५० यौ० (सं०) श्रीराम, जर (दे० ) । " रघुवर पार उतार बार निहार - स्फुट ० |
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खुवीर - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रीराम |
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- रामा० ।
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'जो रघुबीर होति सुधि पाई " रचक संज्ञा, ५० (सं० ) बनाने या रचने वाला रचयिता, रचना करने वाला | (दे०) रंचक, प राम रचक पालक जग नाशक - स्फुट० । रचना - संज्ञा, स्त्री० (सं०) रखने का भाव या किया, निर्माण, बनाकः, बनाने का कौशल या ढंग, निर्मित पदार्थ, चमत्कारपूर्ण, गद्य या पद्य, लेख, काव्य वि० रवनीय । स० रूप- रचाना, प्रे० रूप-रवाना। स० [क्रि० (सं०] रचन ) सिरजना बनाना, ग्रंथ लिखना, निश्चित या विधान करना, ठानना, उत्पन्न या पैदा करना, कल्पना करना, क्रम से रखना, अनुष्ठान करना, काल्पनिक सृष्टि बनाना, श्रृंगार करना, सजना, सँवारना | भलि रचना नृप उन मुनि कहेऊ रामा० । जुहा० रवि रचि - बहुत ही कौशल और चतुरता ( होशियारी या कारीगरी ) के साथ कोई काम करना | बातें रचना--मोहक, किन्तु झूठी बातें बनाना । अ० क्रि० दे० (सं० रंजन) रंजित करना, रँगना, रंग देना, जैसे---पान
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रघुअपनी
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राजधानी
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या मेंहदी रचना | अ० क्रि० दे० (सं० रंजन) अनुरक्त होना, रंगा जाना, रंग चढ़ना, सुन्दर बनाना । रचयिता संज्ञा, पु० (सं० रचयितृ ) बनाने या रचने वाला, ग्रंथकार, लेखक । रचाना - अ० क्रि० ६० (सं० रंजन) मेंहदी. महावर आदि से हाथ-पाँव रँगाना, पान से मुख लाल करना, सुन्दर बनाना, रावना (दे० ) प्रे० रूप- रवाना।
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रचित - वि० (सं०) रचा या बनाया हुआ । - संज्ञा, पु० ६० (सं० राक्षस) राचल । वि० रच्छसौ।
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रच्छा -संज्ञा स्त्री० दे० (सं० रक्षा ) रक्षा | वि०-रचित ।
रज - संज्ञा, पु० (सं० रजस् ) स्तनपायी जीवों की मादा या स्त्रियों के प्रति मास योनि से ३ या ४ दिन निकलने वाला दूषित रक्त |
तंव, ऋतु, कुसुम, रजोगुण, पानी, पाप, पुष्प-पराग, आठ परमाणुओं का मान । संज्ञा स्त्री० (सं०) वृल, गर्द, रात, प्रकाश, ज्योति । "रज है जात पख़ान पवार
रामा० : संज्ञा, ५० (सं० रजत ) चाँदी | संज्ञा, ५० (सं० रजक) रजक, धोबी । रजक - संज्ञा, पु० (सं०) धोबी । स्रो०की।
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रजगुण संज्ञा, ५० दे० यौ० (सं० रजोगुण) रजोगुण | रजतंत--संज्ञा स्त्री० द० यौ० (सं० राजतत्व) शूरता, वीरता ।
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रज:----संज्ञा, खी० (सं०) चाँदी, रूपा । 'रजत सीप महँ भास ज्यों, जथा भानुकर वारि ' - रामा० । लोहू, रक्त, सोबा । वि० श्वेत, शुक्ल धवल, रजताई* -- संज्ञा, खो० (सं० रजत) श्वेतता । रजधानी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० राजधानी) राजधानी । " बहुरि राम धावें रजधानी "
लाल ।
रामा० ।