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रूखी
१४९८
रूपकातिशयोक्ति रूखा-वि० दे० ( स० रुक्ष ) सूखा, शुष्क, जिसका व्यवहार प्रसिद्ध अर्थ से भिन्न नो चिकना या स्निग्ध न हो नीरस, सीठा, अभिप्राय-व्यंजनार्थ न हो (मा.)। स्वाद-हीन, बेमुरौवत, घी-तेल आदि से | रूढ़ि--- संज्ञा, स्त्री. (सं०) उभार, उठान, रहित । "तुझसे रूखा कहीं दुनिया में न देखा | चढ़ाव, उत्पत्ति, ख्याति, चाल, प्रथा, न सुना"-हाली० । मुहा०--रूखा- निश्चय, विचार, प्रसिद्धि, यौगिक न होते सूखा-धी-तेल आदि के बिना बना हुए भी रूढ़ शब्द जिस शक्ति से अपना अर्थ साधारण भोजन । " रूखा-सूखा खाय के दे, एक संज्ञा-भेद (व्या०)। ठंडा पानी पीव"-कवी० । परुष, विरक्त, रूदाद-संज्ञा, स्त्री० दे० ( फ़ा० रूएदाद ) खुरदुरा, कठोर, उदासीन । मुहा० - रूखा वृत्तांत, दशा, अवस्था, विवरण, समाचार, पड़ना या होना- क्रुद्ध होना, बेमुरौवती अदालत की कार्यवाही। करना । संज्ञा, पु० (दे०) रूख, पेड़। रूप --- संज्ञा, पु० (सं०) सूरत, शकल, प्राकृति, रूखापन-संज्ञा, पु. (हि०) रुखाई, रूखे । स्वभाव, सौंदर्य, प्रकृति । " राम-रूप अरु होने का भाव ।
सिय छवि देखी"-रामा०) महा०-रूप रूखी- संज्ञा, स्त्री० ( हि० रूखा ) चिखुरी, हरना--लज्जित करना । यौ०-रूप-रेखा, गिलहरी।
रूप-रंग ( रंग-रूप )--श्राकार-प्रकार. रूचना*-स. क्रि० दे० (हि० रुचना )
शकल, चिन्ह-पता, चिन्ह, पता, शरीर । भला लगना, रुचना, भाना पसंद पाना । मुहा०—रूपलेना (रखना-बनाना)-रूप रूज-संज्ञा, पु० (दे०) एक कीड़ा।
धारण करना । वेष, भेस । मुहा० -- रूप रूझना-अ० क्रि० दे० (हि. उलझना ) भरना (धरना)---भेस बनाना । लक्षण, उलझना, फँसना।
समान, सदृश, अवस्था, दशा. रूपक, रूपा, रूमा-वि० (दे०) रोगी, बीमार, उलझा । चाँदी। वि० रुपवान, सुन्दर। रूठ-रूठन - संज्ञा, स्त्री० (हि० रूटना) रुष्टता, रूपक - संज्ञा, पु. (सं०) प्रतिकृति, मूर्ति,
अप्रसन्नता, रूठने की क्रिया या भाव । नाटक, दृश्यकाव्य। ("रूपंककरोतीति रूपरूठना-अ. क्रि० दे० (सं० रुष्ट) रुष्ट या कम्"-नाव्य० ।) वह काव्य जिसका अभिनय
अप्रसन्न होना । स० रूप-रूठाना । वि० ---- हो सके, इस काव्य के दश मुख्य भेद हैं:रूठने वाला, झगड़ालू ।
नाटक, प्रकरण, व्यायोग, भाण, समवकार, रूठनी-वि० दे० ( हि० रूठना ) झगड़ालू । डिम, अंक, ईहामृग, प्रहसन, बीथी १० । रूड़-रूड़ा-वि० दे० (हि० रूरा ) उत्तम, एक श्रीलंकार जिसमें उपमान और उपमेय श्रेष्ठ, सुन्दर, भला।
में अभेद कर दिया जाता है अथवा उपमान रूढ़-वि० (सं०) प्रारूद, सवार, चढ़ा हुआ, के साधर्म्य का प्रारोप उपमेय पर कर उत्पन्न, प्रसिद्ध, उजडु, गवार', कठोर, अकेला, उपमान के रूप में अभेद सा कर उसका रूढ़ि, अविभाज्य । संज्ञा, पु०- शब्द और वर्णन हो (१० पी०)। प्रत्यय या दो शब्दों से बना अर्थानुसार | रूपकरगा--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक तरह एक शब्द भेद (विलो.--योगिक) । स्त्री० का घोड़ा। रूढ़ि।
रूपकातिशयोक्ति--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) रूढ़यौवना-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० प्रारूढ़ अतिशयोक्ति अलंकार का वह भेद जिसमें
यौवना ) पूर्णयुवा, तरुणी, नवयोवना। केवल उपमान का वर्णन करके उपमेयों का रूढ़ा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) प्रचलित लक्षणा अर्थ प्रगट करते हैं ( काव्य० )।
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