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म - संस्कृत और हिंदी की वर्णमाला के पवर्ग का पाँचवाँ वर्ण या अक्षर इसका उच्चारणस्थान थोष्ठ और नासिका है। जमङणनानाम् नासिकाच' पा०| संज्ञा, पु० (सं० मधुसूदन, चन्द्रमा, यम, शिव, ब्रह्मा, विष्णु,
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कृष्ण ।
-रामा० ।
मँगता - संज्ञा, पु० दे० ( दि० माँगना + ता - प्रत्य० ) याचक, भिखारी, franङ्गा, भिक्षुक | "सब जाति कुजाति भये मँगता "
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हि० माँगना + ई किसी से इस वादे
मंगन - संज्ञा, ५० दे० (हि० माँगन) भिखारी, fear, मंगा । " मंगन लहहिं न जिनके नाहीं " - रामा० । मँगनी - संज्ञा, खो० दे० - प्रत्य० ) वह वस्तु जो पर माँग ली जावे कि कुछ दिन पीछे उसे लौटा दी जावेगी, इस प्रकार माँगने का भाव, व्याह पक्का होने की एक रीति । मंगल - संज्ञा, पु० (सं० ) इच्छा या मनोरथ का पूर्ण होना, अभीष्ट सिद्धि, कुशल, कल्याण भलाई, सूर्य से १४. १५,००,००० मील और पृथ्वी से पहिले पड़ने वाला सौर
तूर जगत का एक ग्रह, भौम, शुभ कार्य, विवाहादि । काज विचारा' - रामा०
कुज, मंगलवार
" जग- मंगल भल
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मंग- पंज्ञा, स्त्रो० दे० हि० मांग ) स्त्रियों के | मंगला- संज्ञा, श्री० (सं० ) पार्वती जी ।
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सिर की माँग, याचना |
"श्रायुध सघन सिव-मंगला समेत सर्व, पर्वत उठाय गति कीन्ही है कमल को राम० । मंगलाचरण -- ज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वे श्लोक या वेद मंत्र जो मंगलकामना से प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारंभ में पढ़े जाते है, मंगल पाठ : काव्य के प्रारम्भ में देवस्तुति यादि के छद इसके ३ रूप हैं-१याशीर्वादात्मक देव नमस्कार या स्तवनात्मक, ३- वस्तु निर्देशात्मक - "याशी मस्क्रिया वस्तुनिर्देशोवा पे तन्मुखम् मंगलामुखी - वा, खी० यौ० (सं० ) वेश्या, पतुरिया, रंडी । मंगली - वि० (सं०
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मंगल कलश (घट) - रुज्ञा, पु० यौ० (सं०) व्याह यादि के समय देव- पूजा के निमित्त स्थापित किया गया जल-पूर्ण घड़ा । “ मंगल कलश विचित्र सँवारे " रामा०
मंगल कामना - संज्ञा, स्रो० यौ० (सं० ) कल्याण की इच्छा |
मंगलवार - संज्ञा, पु० यौ (सं० ) सोम के बाद और बुधवार से पूर्व का दिन, भौमवार ।
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मंगलसूत्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) देव प्रसाद के रूप में बाँधा गया तागा, रक्षा-बंधन | मंगल स्नान संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कल्याण की इच्छा से होने वाला स्नान, मंगल
मंच मंचक
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असमान (दे०) | राम कीन मंगलश्रस्नाना" - - रामा० ।
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मंगल + ई - प्रत्य० ) वह पुरुष या स्त्री जिसके जन्म-पत्र में केन्द्र, चौथे, काठ और बारहवें स्थान में मंगल ग्रह पड़ा हो, यह श्रशुभ योग है, (ज्यो० ) । मँगवाना - स० क्रि० ( हि० मांगना ) माँगना का प्रेरणार्थक रुप |
मंगाना स० किंव करता, माँगने का प्रे० रूप ।
मंगेतरा - वि० ३० ( हि० मंगनी + एतरप्रत्य० ) वह व्यक्ति जिसकी मँगनी किसी कन्या के साथ हो चुकी हो । मंगोल -- संज्ञा, १० ( मंगोलिया देश से ) तातार, चीन, जापानादि एशिया के पूर्वीय देशों की एक जाति, मंगोजिया के निवासी । मंत्र-मंत्रक -संज्ञा, पु० (सं०) खाट, खटिया, मचिया, पोढ़ा, ऊँचा मंडप, कुरसी । "सब मंचन तें मंच इक, सुन्दर विशद
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हि० माँगना ) मँगनी