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बारगह-बारगाह
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बारहमासा दे० (सं०) मरतबा, दफा, विलंब, देरी। ते किम् मम हा प्रयासानंधा यथा वार बेर, समय । “जात न लागी वार"-रामा। वधू-विलासान्"-वै० जी० । महा०-बार बार --- फिर फिर । वार बार-बरदार -- संज्ञा, पु. यौ० (फा०) बोझा लगाना-विलंब करना, देरी लगाना। ढोने वाला।
किनारा, धार, बार बरदारी-संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा० ) सामान किसी स्थान के चारो ओर का घेरा, धार, |
ढोने का काम या मज़दूरी। बाढ़ : संज्ञा, पु० (दे०) बाल । संज्ञा, पु.
बारमुखी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वार मुख्या) दे० ( सं० वाल ) लड़का, स्त्री यौ० बाल
रंडी, पतुरिया. वेश्या। "वारमुखी कल बच्चा । संज्ञा, पु० दे० (फा० मि० सं० भार)
मंगल गावहि "--रामा० । बोझ, भार । वि० (दे०) बाला, बाल।
बारह-वि० दे० (सं० द्वादश) बारा (ग्रा०) बारगह-बारगाह-संज्ञा, स्त्री० दे० (फा० बारगाह ) ड्योढ़ी, द्वार, तंबू, डेरा, खेमा ।
दो अधिक दश, द्वादश, आभूपण । वि०
बारहवाँ । मुहा०-बारह बाट करना बारजा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बार द्वार)
या घालना-नष्ट-भ्रष्ट या छिन्न-भिन्न या द्वार पर का कोठा, अटारी, द्वार के ऊपर
इधर-उधर कर देना, तितर-बितर करना । बढ़ाया हुआ पाट कर बना बरामदा,
बारह बाट जाना या होना-तितिर. कमरे के धागे छोटा दालान ।
बितर होना, फुट-कैल होना, नष्ट-भ्रष्ट बारतिय, बारतिया - संज्ञा, स्त्री० दे०
होना। संज्ञा, पु०- बारह की संख्या या (सं० वारस्त्री ) वेश्या, रंडी, पतुरिया, अंक ( १२ )। वारवधू।
बारह-बड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० बारदाना-संज्ञा, पु. ( फा० ) व्यापार के द्वादशाक्षरी) व्यंजनों में से प्रत्येक के वे पदार्थों के रखने के पात्र, सेना के खाने- बारह रूप जो स्वरों की मात्राओं के योग पीने की सामग्री, रसद, राशन (अ.)। से बनते हैं। बारन*--संज्ञा, पु० दे० (सं० वारण) बारहदरी-संज्ञा, स्त्री० ( हि० बारह-+दरी. मनाही, रोक, निषेध, वाधा, कवच, हाथी। फा० ) वह खुला हुश्रा कमरा जिसमें तीन "बारन बाजि सरस्थै"-राम।
तीन द्वार चारों ओर हों। बारना-अ० क्रि० दे० (सं० वारण ) रोकना, बारहवान-संज्ञा, पु० दे० (सं० द्वादशवर्ण) निषेध या मना करना, निवारण करना।। बहुत ही बढ़िया एक तरह का सोना।। स० क्रि० दे० (हि० वरना) जलाना, बालना। बारहवाना-वि० दे० (सं० द्वादश वर्ण ) स० क्रि० दे० (सं० वारन) निछावर करना। सूर्य के समान चमकने वाला, बहुत ही "धारौं भीम भुजन पै करण करण पर- बढ़िया सोना, खरा, चोखा, सच्चा, निदोष, भुष।
पक्का, पूर्ण । बारनारी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० वार- बारहवानी-वि० दे० (सं० द्वादशवर्ण ) नारी ) वेश्या, रंडी, पतुरिया । " साह न सूर्य सा चमकने वाला, चोखा, खरा, सच्चा बसन बिना बरनारी"।
| सोना, निषि, पक्का । संज्ञा, स्त्री०-सूर्य बारबधू, बारबधूटी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० की सी दमक । (सं० वारवधू ) वेश्या, रंडी । “ बारवधू बारहमासा- संज्ञा, पु. यौ० दे० (हि.) नाचहि करि गाना"-रामा० । 'ज्ञास्यन्ति। वह विरह-गीत या पद्य जिसमें प्रत्येक महीने
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