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फटफटाना
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फतीलसोज फट पड़ना (फाट परना)-अचानक के लिये तैयार होना । " फेरि फरकै सो न श्रा जाना।
कीजै"- गिर। फटफटाना-स० क्रि० दे० ( अनु० ) फड फड़नवास-संज्ञा, पु० दे० (फा० फ़र्दनवीस) फड़ाना, व्यर्थ यत्न या बकबाद करना, हाथ- मरहटों के राज्य काल में एक राज-पद । पैर पटकना या मारना, परिश्रम करना, फड़फड़ाना-स० कि० अ० दे० ( अनु०) इधर-उधर टकर खाना । अ० क्रि०-फट फट
फटफटाना, फड़ फड़ शब्द करना । शब्द होना।
फड़वाज--संज्ञा, पु० दे० ( हि० फड़-फा०. फटा-संज्ञा, पु. (हि० फटना) छेद. छिद्र। वाज) वह व्यक्ति जो अपने घर में लोगों
को जुवा खिलाता हो, जुआरी। स्त्री० पटी। मुहा०-(भिसी के ) फटे में पाँव देना-दूसरे की विपत्ति अपने
M ण---संज्ञा, पु० (सं०) फन (दे०) साँप सिर पर लेना, यौ० । मुहः --- फटे हाल
का निर, रस्सी का फंदा। (फटीहालत)-दुर्दशा, गरीबी।
धर--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) साँप, नाग।
फागण - संज्ञा, पु० दे० (सं० फणी) फनिक फटिक-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्फटिक )
(दे०) साँप, नाग । “मणि बिन फणिक जिये एफटिक, संगमरमर, बिल्लौर ।
अति दीना"-रामा। फट्टा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० फटना ) बाँस ।
फणिपति--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शेषनाग, को चीड़ कर बनाया गया लहा, कपड़े का |
वासुकी. बड़ा साँप । “ मणि-बिहीन रह टुकड़ा । स्त्री० फट्टी
फणिपति जैसे- रामा० । फड - संज्ञा, पु० दे० (सं० पण ) जुए का शिका -संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) साँप की दाँव जिस पर बाजी लगाई जाती है, जुा । मणि । का अड्डा, बनिये का बैठ कर माल बैंचने, राणींद्र-संज्ञा, पु० (सं०) वासुकी शेषनाग, या लेने का स्थान, दल.पन । संज्ञा, पु० दे० बड़ाभारी सर्प, फनीन्द, फनिंद (दे०)। (सं० पटल या फल ) तोप चढ़ाने या रखने कण। --संज्ञा, पु. ( सं० फणिन् ) नो की गाड़ी, चरख । मुहा०-फाई पाना-- (दे०) साँप, नाग, नागफनी नामक वृक्ष । जीतना, बाजी मारना।
फणाश-संज्ञा, पु. यो० (सं० ) शेष नाग, फड़क, फड़कन-संज्ञा, स्त्री० दे० (अनु०) । वासुकी, हनोस (दे०)। " ईस लागे कसन
फरकना (दे०) फड़कने का भाव पा क्रिया।। फनीस कटि-तट मैं "... रखा। फड़कना--अ० क्रि० दे० (अनु०) फरकना फतवा-संज्ञा, पु. (अ.) अपने धर्म-शास्त्रा(दे०) उछलना, फड़फड़ाना, ऊपर-नीचे । नुकूल किसी कार्य के उचित या अनुचित होने या इधर-उधर बारम्बार हिलना । स० क्रि० की मोलबियों की दी हुई व्यवस्था (मुस०)। फड़काना, प्रे० रूप फडकघाना । फ़तह-संज्ञा, स्त्री० (अ०) जीत, जय, सफमुहा०-फड़क उठना या जाना-प्रसन्न, | लता, कृतार्थता, ते (दे०)। हर्षित या मुग्ध होना, किसी अंग का अचानक फतिंगा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० पतंत ) एक हिलना (शकुन, अशकुन)। "फरकहिं सुभग उड़ने वाला कीड़ा, पतिंगा, पतंग । स्त्री० अंग सुनु भ्राता "..- रामा० । मुहा०-- फतिंगी। बोटी-बोटी ( रग-रग ) फड़कना-फतीलसोज-संज्ञा, पु. ( फा०) एक या बहुत ही चंचलता होना किसी कार्य पर कई दिये (ऊपर नीचे) रखने की पीतल की उद्यत होना, लड़ाई, विरोध, या बदला लेने | दीवट, चौमुखी, चिरागदान ।।
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