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फगुनाहट
प्रमोद, फाग, फाग खेलने पर दिया गया उपहार, होली के अश्लील गीत । महा०फगुआ खेलना या मनाना - होली के उत्सव में दूसरों पर रंग-गुलाल डालना । फगुनाहट - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० फागुन + हट --- प्रत्य० ) फागुन की तेज़ हवा, फागुन- सम्बन्धी
१९६३
फगुहरा, फगुहारा - संज्ञा, पु० दे० ( हि० फगुआ + हारा - प्रत्य०) फाग खेलने वाला । स्त्री० फगुहारी, फगुहारिन । फ. जर – संज्ञा, खो० ( ० ) सबेरा, तड़का फजिर (दे० ) ।
फज़ल - संज्ञा, पु० दे० ( अ० फ़जूल ) कृपा, दया, धनुग्रह |
फजीलत - संज्ञा, स्त्री० ( ० ) श्रेष्ठता, उत्कृष्टता मुहा०--जीलत की पगड़ी - श्रेष्ठता या विद्वत्ता सूचक चिन्ह या पदक | फज़ीहत- संज्ञा, स्त्री० ( ० ) फजीहत, (दे०) दुर्गति, दुर्दशा, बेइज्जती | संज्ञा, स्त्री० (दे०) फजिहतताई - - "अब कविताई कहा फजिहतताई है" ।
फजूल - वि० ( ० ) व्यर्थ, बाकीवचा, काम, बहुत, निरर्थक |
फजूल खर्च - वि० यौ० ( फा० ) बहुत ख़र्च करने वाला, अपव्ययी | संज्ञा, खी० फ़ज़ूलखर्ची ।
फट - संज्ञा, स्त्री० ( अनु० ) हलकी या पतली वस्तु के गिरने का शब्द, एक अस्त्र, मंत्र (तंत्र) 'जैसे- ऊं हुं फट स्वाहा " । क्रि० वि० ( हि०) फट से झट से । फटक – संज्ञा, पु० दे० (सं० स्फटिक ) बिल्लौर, संगमरमर, फटिक (दे० ) | क्रि० वि० (अनु० ) झट, तत्क्षण | फटकन - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० फटकना )
अनाज के फटकने पर निकला भुसा या कूड़ा । फटकना - स० क्रि० दे० (अनु० फट ) पट
कन', झटकना, फटफटाना, फेंकना, चलाना, मारना, हिलाकर सूप से अन्न साफ़ करना,
फटना
रुई धुनना। मुहा० - फटकना -पछोरनासूप से साफ करना, जाँचना या परखना । अ० क्रि० दे० (अनु०) जाना, पहुँचना, अलग होना, हाथ पाँव हिलाना या पटकना, श्रम करना, तड़फड़ाना । स० रूप-फटकाना, प्रे० रूप-- फटकवाना |
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फटका - संज्ञा, पु० दे० ( अनु० ) रुई धुनने की धुनकी, रस- गुण रहित कविता, तुकबंदी | संज्ञा, पु० (दे०) फाटक | फटकाना स० क्रि० दे० ( हि० फटकना ) फटकने का कार्य्यं दूसरे से कराना, फेंकाना, अलग कराना, पत्रोरवाना | फटकार - संज्ञा, त्रो० दे० (हि० फटकारना) झिड़की दुतकार, डाँट, उलटी, कै । फटकारना - स० क्रि० दे० ( अनु० ) चादर आदि को झटका देकर उसमें लगे पदार्थ को गिराना, झाड़ना, लाभ उठाना, वस्त्रादि को पटक पटक कर भली भाँति धोना,
टके से दूर फेंकना, किसी को डाँटना या झिड़कना, कड़ी या खरी बात कह कर चुप कराना, प्राप्त करना, लेना, ( अनादि से ) मारना, चलाना, छितराना यौ० डाँटनाफटकारना । फटना - अ० क्रि० दे० (हि० फाड़ना) किसी पोले पदार्थ का ऐसा दरक जाना कि उसके भीतर की वस्तु बाहर याजायें या दिखाई देने लगे, फाट्ना (दे० ) । मुहा०छाती फटना - दुसह दुख पड़ना, लज्जा थाना । (किसी से) मन, दिल या वित्त का फटजाना ( फटना) - मन हट जाना, संबन्ध की रुचि न रहना, बिरक्ति होना, किसी बिकार से दूध आदि के पानी और सारभाग का पृथक हो जाना, छिन्न भिन्न, विलग या पृथक हो जाना, कटकर छिन्नभिन्न, हो अलग होना, अति कष्ट या पीड़ा होना, दीवाल आदि का टूट-फूट जाना ( पड़ना ) किसी बात या वस्तु का प्रति अधिक होना, सहसा टूट पड़ना। मुहा०
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