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प्रेत-कर्म ११६०
प्रेषण प्रेत-कर्म-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० प्रेत कर्मन् ) प्रेमवारि-संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) प्रेमाश्रु, प्रेत कार्य : (हिन्दू)।
। प्रेमान्छु, आँसू, नेह-नीर, स्नेह-सलिल । प्रेतकार्य-संज्ञा, पु० यौ० सं०) प्रेत कर्म। प्रेमा--संज्ञा, पु. ( सं० प्रेमन ) स्नेह, इन्द्र, प्रेतगेह-प्रेतगृह - संज्ञा, पु. ( सं० ) प्रेतगृह, वायु, उपजाति वृत्त का 1 वाँभेद। मरघट, श्मशान।
प्रेमाक्षेप-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) आक्षेपाप्रेतत्व-संज्ञा, पु. ( सं०) प्रेतता, प्रेत का लंकार का वह भेद जिसमें प्रेम के वर्णन में भाव या धर्म।
बाधा सी सूचित हो ( केश० )। प्रेतदाह -- संज्ञा, पु. यौ० ( सं० ) मृतक के प्रेमालाप-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) स्नेहजलाने श्रादि का कार्य ।
संलापन, प्रेम वार्ता। प्रेतदेह-संज्ञा, पु० यौ० (सं०, मृतात्मा का | प्रेमालिंगन -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्नेह से मरण से सपिंडी के समय तक का करिपत
। गले लगाकर मिलना। शरीर।
प्रेमाश्र ----संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्नेह के प्रेतनी-संज्ञा, स्त्री. ( सं० प्रेत+नी- कारण निकले आँस् ।
प्रत्य०) भूतिनी, चुडैल, पिशाचिनी। प्रेमास्पद -- वि० यो० (सं०) स्नेहभाजन, प्रेतयज्ञ- संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) प्रेत योनि प्रणयपात्र, प्रणयो, स्नेही।
प्रेमिक-संज्ञा, पु. (सं०) प्रेमी, स्नेही । स्त्री० को प्राप्त कराने वाला यज्ञ :
प्रेमिका। प्रेतलोक-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) यमलोक।। प्रेता-संज्ञा, पु. (सं०) पिशाची, भूतिनी,
प्रेमी-संज्ञा, पु० (सं० प्रेमिन्) स्नेही, मित्र । कात्यायिनी देवी।
प्रेय, प्रेयस- - संज्ञा, पु. (सं०) एक अलंकार,
जिसमें एक भाव दूसरे भाव या स्थायी का प्रेत-विधि ( गति )-संज्ञा, स्त्री० यौ०।
अंग हो, (काव्य०) प्यारा। (सं०) मृत का दाहादि संस्कार ।
प्रेयसी-संक्षा, स्त्री० (सं०) प्रमिका, प्यारी । प्रेतराज-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) यमराज ।
प्रेरक-संज्ञा, पु० (सं०) प्ररणा करने वाला। प्रेताशिनी-संज्ञा, स्त्री० [सं०) देवी, भगवती।
प्रेरण---संज्ञा, पु० (सं०) आज्ञा देना, भेजना। प्रताशोच-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) किसी के
प्रेरणा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) जोर या दबाव मरने पर लगी अशुद्धता, शूदक (हिन्दु )।
उत्तेजना, कार्य में प्रवृत्त करना। प्रेती-संज्ञा, पु. ( सं० प्रत+ ई-प्रत्य०)
प्रेरणार्थ क्रिया-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) प्रेत-पूजक, प्रेतोपासक ।
क्रिया का वह रूप जो यह सूचित करे कि प्रेतोन्माद-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) एक |
कर्ता किसी की प्रेरणा से कार्य करता है प्रकार का उन्माद, भूतोन्माद ।
कभी कभी क्रिया में एक साधारण और प्रेम-संज्ञा, पु. (सं० )रूप, गुण या काम- | दुसरा प्रेरक दो कर्ता होते हैं, जैसे राम ने वासना जनित, अनुरक्ति, स्नेह, प्रीति, अनु- मोहन से पत्र लिखवाया है।
राग, प्यार, एक अलंकार ( केशव ) । प्रयिता--- संज्ञा, पु० (सं०) प्रेरणा करने या प्रेमगर्विता--संज्ञा, स्त्री० यौ० सं० ) पति कार्य में लगाने वाला, भेजने वाला।
से प्रेम रखने वाली नायिका का धमंड।। प्रेरित-वि० (सं०) प्रपित, भेजा हुआ । प्रेमपात्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्नेह करने | प्रेषक-संज्ञा, पु० (सं०) भेजने वाला।
योग्य, स्नेह-भाजन, जिससे प्रेम किया जाय। प्रेपण-संज्ञा, पु० (सं०) भेजना, प्रेरणा प्रेमभक्ति-- संज्ञा, स्त्री० यौ० (स.) स्नेह, श्रद्धा करना । वि० प्रेषित, प्रेषणीय ।
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