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पटकनिया
पटरी किसी ( के सिर ) पर पटकना-बिना | पटपट- संज्ञा, स्त्री. ( अनु० पट ) हलके मन काम कराना, कोई वस्तु बे मन सौंपना। पदार्थ के गिरने के शब्द का अनुकरण । कि० अ० कि० (दे०) सूजन बैठना या पचकना, वि० लगातार पट पट शब्द करता हुश्रा । भावाज के साथ फटना । " पटकत बाँस, पटपटाना-अ० कि० दे० (हि० पटकना ) काँस, कुस ताल " -सूर० । यौ०- भूख आदि से दुख पाना, किसी वस्तु से पटक-पटका-कुश्ती।।
पट पट शब्द निकलना, पानी बरसना, शब्द, पटकनिया-पटकनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. जलना, भुनना । क्रि० वि० (दे०) पट से पटकना) पटकने का भाव, ज़मीन पर गिर पट शब्द उत्पन्न करना, शोक या खेद करना। कर पछाड़ खाने या लोटने की दशा या पटपर-वि० दे० (हि. पट-+ अनु० पर) भाव।
चौरस, हमवार, बराबर, समतल । पटका-संज्ञा, पु० (दे०) (सं० पट्टक) कमर. | पटबंधक-संज्ञा, पु० दे० (हि. पटना। सं० पेच, कमर-बंद, पटुका (व.) एक वस्त्र । बंधक ) दखली रेहन, दखली गिरवी, जिस पटकाना-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पटकनी) में लाभ या व्याज निकालने के पीछे मूल पटकने का भाव, पृथ्वी पर पछाड़ खाकर धन में शेष रुपया मिनहा दिया जाता है । लोटने की दशा, पचकाना।
पटवास-संज्ञा, पु० (सं०) कपड़े के सुगंपटतर*-संज्ञा, पु० दे० (सं० पट्ट- तल ) धित करने की गंध-द्रव्य या वस्तु। “निजरजः उपमा, समता, तुल्यता, समानता, मिसाल पटवासमिवाकिरत् " धृतपटोऽयम वारि(फ़ा०) " पटतर-जोग न राजकुमारी"- मुचां दिशाम्--माव० । जल, थल, फल, रामा० ।। वि० चौरस, बराबर, समतल । फूल भूरि अंवर पटवास धृरि० के० । पटतरना-प्र. क्रि० दे० ( हि० पटतर) पटवीजना-संज्ञा, पु० सं० ( हि० जुगुन् )
उपमा देना, समान करना । "केहि पटतरिय जुगनू । विदेह कुमारी"-रामा० ।
पटमंजरी- संज्ञा, स्त्री. (सं०) एक रागिनी पटतारना-स० क्रि० दे० (हि. पटा+ (संगी० ) तारना ) मारने को अस्त्र सुधार कर लेना पटमंडप ( मंडप)- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) या निकालना, सँभालना । स० क्रि० (हि. खेमा, डेरा, तंबू, एट-भवन । पटतर ) सम या बराबर करना, पड़तालना। पटरा--संज्ञा, पु० दे० ( सं० पटल ) तस्तापटधारी-वि० पु० (सं०) वस्त्रधारी, कपड़े पल्ला । स्त्री० अल्पा०-पटरी।मुहा०--पटरा पहने हुये।
होना-- नष्ट या उजाड़ होना। पटरा कर पटना-स. क्रि० दे० ( हि० पट = भूमि के | देना- मार काट कर बिछा या फैला देना, घराबर ) किसी गढ़े का भरना, समतल चौपट कर देना । धोबी का पाट, पाटा । होना, भर जाना, परिपूर्ण होना, छत | पटरानी - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पट्टरानी ) बनाना, सींचा जाना, मन मिलना, निभना, | पाट-महिषी, खास रानी। तै हो जाना, ऋण चुक जाना । " खूब | पटरो-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पटरा ) लंबा पटती है जो मिल जाते हैं दीवाने दो"- पतला काठ का तख्ता, १ फुट के नाप संज्ञा, पु. एक शहर, पाटलीपुत्र (प्राचीन)। की इंच के निशानों वाली लकड़ी। मुहा० पटनी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पटना ) वह -पटरी जमाना या बैठाना-दिल या भूमि जो सार्वकालिक ( इस्तमरारी) प्रबंध, मन मिलना, मेल होना या आपस में पटना । (बंदोबस्त) पर मिली हो।
लिखने की तख़्ती, पटिया, सड़क के दोनों
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