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पाशुपतास्त्र
११२४
पाहि-पाही दर्शन साप्रदायिक शास्त्र, ( स० द० सं० ) | पानी, पसन-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० नकुलीश पाशुपति दर्शन ।
प्राशन ) अन्न-प्राशन, लड़के को सर्व प्रथम पाशुपतास्त्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिव जी अन्न देने का संस्कार । का त्रिशूल।
पासमान*--संज्ञा, पु. (हि० ) पास रहने पाश्चात्य-वि० ( सं० ) पिछला, पीछे का, वाला. सेवक या दास, पार्श्ववर्ती । पश्चिम दिशा का. पश्चिम में उत्पन्न या पासवर्ती-वि० दे० (सं० पार्श्ववर्तिन् । निवासी । ( विलो०-मान्य )
पास रहने वाला, पासमान, दास । पाषंड-संज्ञा, पु० सं०) ढोंग. पाखंड (दे०)
पासा, पाँसा संज्ञा, पु० दे० ( सं० पाशक दिखावा. वेद-विरुद्ध मत या आचरण ।
फ़ा० पासा) चौपड़ या चौसर खेलने के पाषंडी-वि० (सं० पाषंडिन् ) वेद-विरुद्ध
हाथी-दाँत या हड्डी के चार या ६ पहलमत या श्राचार करने वाला धर्यादि का झूठ
वाले बिंदीदार पाँसे, पाँसों का खेल, आडवरी, ढोंगी, धूर्त, छली, ठग । स्त्री० ।
चौपड़. गुल्ली। लो० - " पासा परै सो पाषंडिनी।
दाँव" । महा०-- किसी का) पाँमा पाषर-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पाखर) पाखर।।
पड़ना-भाग्य खुलना या अनुकूल पाषाण-संज्ञा, पु० (सं० ) पत्थर, प्रस्तर,
होना. कार्य ( उपाय ) लगना सफल पखान (द०) वि०-कठोर, क्रूर ।
होना । पासा पलटना-भाग्य फूटना, पाषाण-भेद-संज्ञा, पु. (सं०) पाखान-भेद
युक्ति या उपाय का विरुद्ध फल देना। (दे०) पथरचटा (औष०)। पासंग, पासँग-संज्ञा, पु० ( फा०) पसंघा |
पासी-संज्ञा, पु० दे० ( सं० पाशिन् ) जाल,
फंदा या फाँसी लगा कर हरिण, पक्षी आदि (दे०), तराजू के पल्लों को बराबर करने के लिये भार । मुहा०-किसी का पासंग
का पकड़ने वाला, एक नीच जाति,बहेलिया।
संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० पाश, हि. पास + ई० भी न होना-बहुत कम होना। पासंग बराबर-स्वल्प, तुच्छ । (तराजू में) |
-प्रत्य०) फाँस, फंदा फाँसी घोड़े की पासंग होना-डंडी का बराबर न होना।
पिछाड़ी की रस्सी। पास-संज्ञा, (दे०) पु. ( सं० पार्श्व ) ओर, | पासुरी, पाँसुरी * -- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० तरफ, बग़ल, समीपता, निकटता. अधिकार, |
पार्श्व) पसली । “पासुरी उमाहि कबौं पल्ला, रक्षा ( के, से, में, विभक्तियों के | बाँसुरी बजावै हैं '--ऊ० श० । साथ) यौ० पास-पल्ले। पास वाले | पाहँ, पह* ---- अव्य० दे० ( सं० पार्श्व ) पास, समीपी मित्र । अव्य० - समीप, निकट ।।
निकट. समीप । विभ० ( अव० ) अधिकरणयौ० पास-पास-चारों ओर. समीप, लग
और कर्म की विभक्ति पर,पै, प्रति. से(व्या०)। भग, अगल-बग़ल । महा--(किसी के) पाहन--संज्ञा, पु० दे० (सं० पापाण ) पत्थर । पास बैठना-- संगति में रहना। पास न | "पाहन तें वन-बाहन काठ को-कवि० । फटकना-निकट न जाना । अधिकार, रक्षा पाहरू*--- संश, पु. दे० (हि० पहरा) पहरेया कब्ज़े पल्ले, में, समीप जा या सम्बोधित दार, पहरा देने वाला । “नाम पाहरू कर, किसी से या के प्रति । *संज्ञा, पु० | दिवस निसि",-रामा० ।
दिवस निसि", दे० (सं० पाश) पाश, फाँसी, रस्सी ।* संज्ञा, पाहि-पाहीं*-अव्य० दे० (सं० पार्श्व) पु० दे० (सं० पाशक ) पाँसा। वि० (अं०) समीप, निकट, पास, किसी के प्रति, किसी परीक्षा में उत्तीर्ण ।
__ से। " सो मन रहत सदा तोहिं पाहीं'।
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