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प्रकाशक
प्रकाशक -संज्ञा, पु० ( सं० ) प्रकट, प्रकाश, या प्रसिद्ध करने वाला, प्रकाश करने वाला । प्रकाशधृष्ठ - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) प्रकट रूप से ढिठाई करने वाला नायक ! प्रकाशन - संज्ञा, पु० (सं०) प्रगट या व्यक्त करना, प्रकाशित करना, फैलाना, विष्णु । वि० 1 प्रकाशनीय ।
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प्रक्रमभंग
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प्रकृत - वि० (सं०) यथार्थ, सच्चा, विकाररहित | संज्ञा, स्रो० प्रकृतता । पु० प्रकृतत्व | संज्ञा, पु० (सं०) श्लेष अलंकार का एक भेद । प्रकृतार्थ - वि० यौ० (सं०) उचित या ठीक ठीक अर्थ, यथार्थ, उपयुक्त, मूल भाव । प्रकृति - संज्ञा, खो० ( सं०, स्वभाव, मिजाज, माया, मूल गुण, प्रधान प्रवृत्ति | प्रकृति मिले मन मिलत हैं "वृं० । प्रकृति भाव- संज्ञा, १० यौ० (सं०) स्वभाव, विकार-रहित दो पदों की सन्धि का नियम | प्रकृति शास्त्र - संज्ञा, ५० यौ० (सं०) वह शास्त्र जिसमें प्राकृतिक या स्वाभाविक बातों या पदार्थों का वर्णन हो जैसे- भूगर्भ शास्त्र । प्रकृतिसिद्ध - वि० यौ० (सं०) स्वाभाविक, नैसर्गिक, प्राकृतिक । प्रकृति- सिद्धमिदं हि महात्मनाम् " भर्तृ प्रकृतिस्थ - वि० ( रहने वाला, प्राकृतिक |
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० ) स्वाभाविक दशा में
प्रकृष्ट- संज्ञा, पु० (सं०) उत्तम, श्रेष्ठ, प्रशस्त, उत्कृष्ट, मुख्य, प्रधान ।
प्रकृता - संज्ञा, खो० (सं०) श्रेष्ठता, उत्तमता । प्रकोट - संज्ञा, पु० (सं०) परिखा, परिकोटा । (सं० ) सोभ, अधिक क्रोध, बीमारी की ज्यादती, देह में बात, पित्त, कफ का रोगकारी विकार, चंचलता । प्रकोछ - संज्ञा, पु० सं०) फाटक के पास की कोठरी, कोठा, बड़ा श्राँगन, हाथ की कलाई । " ततः प्रकोष्टे हरि-चंदनांकिते - रघु० । प्रकोपण -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक अप्सरा | प्रक्रम संज्ञा, पु० सं०) उपक्रम, क्रम खिलसिला, अनुष्टान, श्रारम्भ, उद्योग, अवसर । प्रक्रमण -- संज्ञा, पु० (सं० ) भली भाँति, श्रागे घूमना, पार करना, आरम्भ करना, बढ़ना । वि० प्रक्रमणीय |
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प्रक्रमभंग - संज्ञा, पु० (सं०) काव्य में यथेष्ट क्रम के न होने का एक दोष, व्यतिक्रम, सिलसिला का नष्ट होना | संज्ञा, त्रो०प्रक्रमभंगता |
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चप
अवसर
प्रकाशमान - वि० (सं०) विख्यात, शोभायमान, प्रसिद्ध चमकीला, थालोकित, कता हुआ, रोशन । प्रकाशवियोग – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) केशव दास के मतानुसार वह विछोह जो पर प्रकट हो जावे । प्रकाश-संयोग - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सब पर प्रकट हो जाने वाला मिलाप ( केश० ) । प्रकाशित - वि० (सं० ) प्रकाश युक्त, चमकता हुआ, प्रकट, प्रसिद्ध व्यक्त । प्रकाशी- संज्ञा, पु० (सं०) चमकता हुआ । वि० प्रकाशित करने वाला, प्रकाशक । प्रकाश्य - वि० (सं० ) प्रकट या प्रकाश करने योग्य । क्रि० वि० प्रकट या स्पष्ट रूप से, स्वगत का विलोम (नाट्य ० ) । प्रकास -संज्ञा, पु० (दे०) प्रकाश (सं० ) प्रकोप - संज्ञा, पु०
परकाश परकास (दे०) ।
प्रकासना - स० क्रि० दे० (सं० प्रकाश ) प्रकाशित या उजेला करना, व्यक्त या प्रकट करना, परकासना (दे०) । प्रकीर्ण - वि० (सं० ) विस्तृत, मिश्रित, ग्रंथ- विच्छेद |
प्रकीर्णक- संज्ञा, पु० (सं०) फैलाने वाला प्रकरण, श्रध्याय, मिलित, स्फुट या फुटकर | प्रकीर्तन - संज्ञा, पु० (सं०) प्रस्तावन, वर्णन,
कथन । वि० प्रकीर्तनीय |
प्रकीर्तित - वि० सं०) कथित, भाषित, उक्त, वर्णित, निरूपित |
प्रकुपित - वि० (सं०) कोध-युक्त, प्रकुप्त, कुपित | प्रकुप्त - वि० (सं० ) प्रकोप-युक्त, उग्र, विकार
को प्राप्त ।
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