________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
HODooreeMe
प्रतिश्रुत १९७२
प्रतीप प्रतिश्रुत-वि. ( सं० ) प्रतिज्ञा या स्वीकृत प्रतिहारी-संज्ञा, पु. ( सं० प्रतिहारिन् ) किया हुआ।
ड्योढ़ीवान, द्वारपाल । स्रो० प्रतिहारिणी। प्रतिषिद्ध - वि० (सं०) जिसके लिथे रोक- प्रतिहिंसा- संज्ञा, स्त्री० (सं०) बदला लेना, टोक या मनाही की गयी हो।
वैर चुकाना, प्रतिशोध । वि० प्रतिहिम्क । प्रतिषेध-संज्ञा, पु. (सं०) निषेध, रोकटोक, प्रतीकः- संज्ञा, पु० (सं.) चिन्ह, पता, मुख, मनाही, खंडन, एक अर्थालंकार, जिसमें किसी | रूप, आकृति, प्रतिरूप, स्थानापस, प्रतिमा, प्रसिद्ध अन्तर या निषेध का ऐसा उल्लेख हो | व्याख्या में किसी श्लोकादि का उद्धत एक कि उससे कोई विशेष अर्थ प्रगट हो। "हरि । अंश या चरण। विप्रतिषेधं तम् पाचचक्षे विचक्षणः'- प्रतीकार-संज्ञा, पु० (सं०) प्रतिकार, बदला, माघ । वि० प्रतिषिद्ध, प्रतिषेधक । निवारण, चिकित्सा । प्रतिष्क-संज्ञा, पु० (सं०) दूत । प्रतीकाश-संज्ञा, पु० (सं०) तुल्य, समान, प्रतिष्ठा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्थापना, ( देव- सदृश, तुलना, उपमा । प्रतिमादि का) गौरव, मान-मर्यादा. कीर्ति, प्रतीकोपासना-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सत्कार, श्रादर, व्रत का द्यायन, एक छंद. किसी विशेष वस्तु में ईश्वर की भावना से चार वर्णों का वृत्त (पि.)।
उसे पूजना मूर्ति-पूजा प्रतिष्ठान--संज्ञा, पु० (सं०) बैठाना, रखना, प्रतीक्षक- संज्ञा, पु० (सं०) राह देखने वाला।
स्थापित या प्रतिष्ठित करना, एक नगर। प्रतीक्षा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) किसी कार्य के प्रतिष्ठानपुर-संज्ञा, पु. (सं.) एक प्राचीन होने या किसी के भाने की राह या बाट नगर जो गंगा-यमुना के संगम पर आज देखना, प्रत्याशा, धौलारे करना, ठहरे रहना, कल के झूसी के पास था, गोदावरी-तट पर आसरा । वि० प्रतक्षमागा । एक नगर (प्राचीन)।
प्रतीची-संज्ञा, स्त्री० (सं०) पश्चिम दिशा, प्रतिष्ठा-पत्र--संज्ञा, पु० यौ० सं०) सम्मान (विलो. प्राची)। पत्र, सनद, सार्टीफिकेट (अं.)। प्रतीचीन- वि० (सं.) पश्चिम दिशा में प्रतिष्ठित- वि० (सं०) श्रादर-सत्कार प्राप्त, उत्पन्न या स्थित, हाल का, अर्वाचीन । स्थापित किया हुआ, सम्मानित।
(विलो. प्राचीन)। प्रतिसीरा-संज्ञा, स्त्री० (दे०) परदा। प्रतीच्य- वि० (सं०) पश्चिमी। ( विलो. प्रतिस्पर्धा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) लाग-डोट, । प्राच्य )। चढ़ा-ऊपरी, दूसरे से किसी कार्य में प्रागे प्रतीत-वि० (सं०) विदित, ज्ञात, प्रसिद्ध, बढ़ने का यन या इच्छा ।
श्रानन्द, प्रपन्न । प्रतिस्पर्धी-संज्ञा, पु. (सं० प्रतिस्पर्द्धिन् ) प्रतीति- संज्ञा, स्त्री० (सं०) विश्वास, ज्ञान,
बराबरी या मुकाबला करने वाला। प्रसन्नता । “मोहि अतिसय प्रतीति जिय प्रतिहत- वि० (सं०) निराश प्रतिरुद्ध, निरा- केरी।"-रामा० । कृत, । 'प्रतिहत भये देखि सब राजा'- प्रतीप---संज्ञा, पु० (सं०) महाराज शान्तनु के रामा।
पिता, एक अर्थालङ्कार, जिसमें उपमान को प्रतिहार--संज्ञा, पु० (सं०) ड्योढ़ी, द्वार, ही उपमेय बनाते या उपमेय से उपमान दरवाज़ा, द्वारपाल, ड्योढ़ीवान, नक़ीब, को तिरस्कृत सा दिखाने हैं-अ० पी०। चोबदार, छड़िया, समाचारादि देने वाला | वि० प्रतिकूल, विपरीत, आशा से विरुद्ध । राजकर्मचारी ( प्राचीन )।
| "प्रतीपभूपैरिव किं ततो भिया'–नेप० ।
For Private and Personal Use Only