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प्राकृत
संज्ञा,
प्राकृत - वि० ( सं० ) स्वाभाविक, नैसर्गिक, प्रकृति संबन्धी या जन्य, भौतिक स्त्री० - किसी समय किसी प्रांत में प्रचलित बोलचाल की भाषा, भारत की एक प्राचीन श्रार्य भाषा, वह प्राचीन बोली जिससे सब चार्य - भाषायें निकली हैं । प्राकृतिक - वि० (सं० ) प्रकृति का, प्रकृतिजन्य, प्रकृति-संबंधी, स्वाभाविक, नैसर्गिक, सहज, कुदरती ।
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प्राण
प्राचुर्य -- संज्ञा, पु० (सं०) बहुतायत, वाहुल्य, अधिकता, प्रचुरता । प्राचेतस् - संज्ञा, पु० (सं०) प्राचीन, वहि के पुत्र प्रचेतागण, वाल्मीकि मुनि, विष्णु, दक्ष, वरुण का पुत्र, प्रचेत के वंशज । प्राच्य - वि० (सं०) पूर्वका, पूर्व देश या दिशा में उत्पन्न, पूर्वीय, पुराना । ( विलो०पाश्चात्य ) ।
प्राच्य वृत्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वैताली वृत्ति का भेद ( साहि० ) ।
प्राजाक- संज्ञा, पु० (सं०) सारथी, रथ लाने वाला |
प्राजापत्य वि० (सं०) प्रजापति-संबंधी, प्रजापति का प्रजापति से उत्पन्न एक यज्ञ, ८ प्रकार के विवाहों में से एक जिसमें कन्यापिता वर-कन्या से ग्रार्हस्थ- धर्म - पालन का संकल्प कराता है ।
प्राकृतिक भूगोल- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) भूगोल का वह भाग जिसमें पृथ्वी की बनावट, वर्तमान स्थिति तथा स्वाभाविक दशा का वर्णन हो ।
प्राक् - वि० ( सं० ) प्रथम का अगला | संज्ञा, पु० पूर्व, पूरव । “प्राक पादयोः पतति खादति पृष्ठ- मांसम् -" भर्तृ० । प्राखर्य - संज्ञा, पु० (सं० ) प्रखरता । प्रागभाव - संज्ञा, पु० (सं० ) किसी विशेष | समय के पूर्व न होना, किसो वस्तु की उत्पत्ति के पहले का प्रभाव, जिसका यादि तो हो पर अन्त न हो ।
प्रागल्भ्य- संज्ञा, पु० (सं० ) प्रगल्भता, साहस, प्रबलता, चातुर्य, धृष्टता । प्राग्ज्योतिष – संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कामरूप देश ( महाभाग ) । प्राग्ज्योतिष पुर-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) गोहाटी ( वर्तमान ) प्राग्ज्योतिष देश की राजधानी ।
प्राघूर्णिक - संज्ञा, पु० (सं० ) पाहुन, श्र तिथि, अभ्यागत ।
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प्राङ्मुख - वि० (सं० ) पूर्वाभिमुख, पूर्व दिशा की थोर मुख वाला ।
प्राची -- संज्ञा, स्रो० (सं० ) पूर्व दिशा । प्राचीन - वि० (सं०) पुराना, पुरातन, पहले का, वृद्ध, पूर्व का | संज्ञा, पु० दे० प्राचीर । प्राचीनता संज्ञा, स्त्री० (सं०) पुरानापन | प्राचीर - संज्ञा, पु० (सं०) परकोटा, शहर
पनाह । भा० श० को ०
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प्राज्ञ - वि० (सं०) बुद्धिमान, चतुर, विद्वान, पंडित | ( स्रो० प्राशी ) ! अधीस्व भो महाप्राज्ञ - स्फु० 1 प्राड्विवाक -- संज्ञा, पु० (सं०) न्यायाधीश, न्याय कर्त्ता वकील ।
प्राण - संज्ञा, पु० (सं०) वायु, पवन, १० दीर्घ मात्रात्रों का उच्चारण-काल, श्वास, शरीर में जीव धारण करने वाला वायु, बल, शक्ति, जान, जीव, परान् प्रान (दे० ) । "बीच सुरपुर प्राण पठायेहु" - रामा० । यौ० प्राण पखेरू | मुहा० - प्राण उड़जाना हक्काका हो जाना, बहुत घबरा या डर जाना, यौ० प्राण-प्रण प्रय ठानना, प्राण देने को उद्यत होना | मुहा० - प्राण का गले तक थाना - मर णासन्न होना । प्राण या प्राणों का मुँह को आना या चले जाना - मरणासन्न होना
यन्त कष्ट या दुख होना प्राण जाना, ( छूटना, निकलना ) - जीवन का अंत होना, मरना, प्राण का चलना चाहना, मरने के निकट होना । प्राण डालना ( फूंकना ) -
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