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पावडा
११२३
पाशुपत-दर्शन फैलाना या मुंह बाना, पा कर और माँगना, | पावदान ( पायदान )-संज्ञा, पु० (हि.) मचलना। पाव बढ़ाना-पावं आगे रखना, गाड़ी-इक्के में पैर रख कर चढ़ने का पटरा, तेज़ी से चलना, ज्यादा बढ़ना । पाच भाग पैर रखने का स्थान (वस्तु) । (हलका) पड़ना-जोर से (धीरे ) | पावन -~-वि० (सं०) पवित्र करने वाला, पुनीत, चलना । पाचँ भर जाना-पैर थक जाना। पवित्र, शुद्ध ! स्त्री० पावनी। संज्ञा, पु० पाय भारो होना-गर्भ या हमल होना।। अग्नि, जल, विष्णु, रुवात, गोबर, व्यास पाय (पद, पग) रोपना-प्रतिज्ञा या प्रण मुनि, प्रायश्चित । करना । "बहुरि पग रोपि कह्यो"--रत्ना० । पावनता-संज्ञा स्त्री० (सं०) पवित्रता। पालगना--प्रणाम करना. विनय करना। | पावना*---स० क्रि० दे० (सं० प्रापण) पाना, पा से पाच बाँध कर रखना-सदा | समझना, भोजन करना। संज्ञा, पु. लहना अपने निकट रखना चौकपी या रहा रखना।
(ब) पाने का एक हक, जो पाना हो । पाव सो जाना—पैर झन्ना जाना, शून्य | पावसा-संज्ञा, स्रो० दे० ( सं० प्रवष ) वर्षाहो जाना । पाव (पैर) होना (हो जाना), काल, बरसात । "तुलसी पावस प्राइगै"। चलने या काम करने में समर्थ होना । पाव | पावा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पाद ) पावं, न होना-ठहरने का बल या साहस न पैर, गोड, चारपाई या पलँग का पाया। सा. होना । घरता (जमीन) पर पाय (पैर) भू० स० क्रि० (हि. पाना) पाया। न रखना--प्रति अभिमान करना, अति | पाश-संज्ञा, पु० (सं०) डोरी, फाँसी, रस्सी, या ज़्यादती करना।
पशु-पक्षी श्रादि के फंसाने का जाल, बंधन, पावंडा-संज्ञा, पु० दे० (हि. पावं +डा | फंसाने वाली वस्तु । प्रत्यः किसी के पादरार्थ बिछाया गया | पाशक-संज्ञा, पु० (सं०) चौपड़ के पाँसे । मार्ग-विस्तर, पायंदाज़।
पाशकेरली-- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) वह पाडी (पावरी) म्हा, स्त्री० ( हि० पाएँ । ज्योतिष-विद्या जिसमें पासा फेंक कर
+ही–प्रत्य०) जूता, पादत्राण, खड़ाऊँ। विचार किया जाता है, रमल (ज्यो०)। पार*-- वि० दे० ( सं० पामर ) दुष्ट, | पाशभृत--संज्ञा, पु० (सं०) वरुण, पाशी। नीच । " ते नर पार पाप-मय, देह धरे "पाशभृतः समस्य"-रघु०। मनुजाद"-रामा० । संज्ञा, पु० (हि. पाशव-वि० (सं० ) पशुओं का, पशु जैसा, पाड़ा) पावडा । संज्ञा, सी० (हि०) शवड़ी। पशु-संबंधी । वि०-पाशविक । पाव-संज्ञा, पु० दे० (सं० पाद ) चतुर्थाश, पाशा-संज्ञा, पु. (तु० फा० पादशाह) तुर्की चौथाई, एक सेर का चौथाई भाग, सरदारों की उपाधि । संज्ञा, पु० (दे०) चौपड़, ४ छटाँक, पौवा (ग्रा०)।
जुआ, कर्ण-भूषण विशेष । पावक- संज्ञा, पु. ( सं०) अग्नि, आग, पाशित-संज्ञा, पु० (सं० ) पाशयुक्त, बँधा। सदाचार, ताप, अग्नि-मन्थ ( अगेथू ) वृत्त, पाशी-संज्ञा, पु. ( सं० पाशिन् ) वरुण । सूर्य, वरुण ! वि० शुद्ध या पवित्र करने | पाशुपत-वि० (सं०) शिव का, शिव संबंधी, वाला । " तुम पावक महँ करहु निवासू” त्रिशूल । मंज्ञा, पु० शिव या पशुपति का -रामा०
उपासक, पशुपति का कहा तंत्र-मंत्र-शास्त्र, पावकुलक--संज्ञा, पु० यौ० ( सं० पादा- अथर्ववेद का एक उपनिषद् । कुल क ) एक तरह की चौपाइयों का समूह। | पाशुपत-दर्शन-संज्ञा, पु. ( सं० ) एक
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