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पायक १११८
पारग का कपड़ा । " निरमल राखै चाँदनी, जैसे से उस किनारे तक । यौ० वार-पार । पायंदाज”–।
महा-पर उतरना (उतारना)--किसी पायक-संज्ञा, पु० दे० (सं० पादातिक, पा- कार्य से छुट्टी मिलना, सफलता या सिद्धि यिक) दूत, दास, सेवक, धावन, प्यादा । प्राप्त करना, ठिकाने लगना, ( लगा देना) पायताबा-संज्ञा, पु. (फा०) पैर का मार डालना, पूरा करना, मुक्त होना, निकल मोज़ा, जुर्राब।
जाना । पार करना---पूर्ण करना, बिताना, पायदार-वि० (फा० ) टिकाऊ, दृढ़, मज़- तय करना, सह या झेल जाना, नदी आदि बूत । संज्ञा, स्त्री० पायदारी।
तैर कर दूसरे तट पहुँचना, निबाहना। पापरा--- संज्ञा, पु० (हि. पाय+रा ) पार लगना-नदी के एक तट पैकड़ा, रकाब।
से दूसरे पर पहुँचाना, निवाहना, पायल--संज्ञा, स्त्री० (हि. पाय+ल+) निर्वाह होना। पार पाना-सफलता प्रत्य० ) पाज़ेब, नूपुर, तेज चलने वाली | या मुक्तिपाना, जीतना । " धीरज धरिय तौ हथिनी, उलटा उत्पन्न होने वाला लड़का।। पाइय पाह" ---रामा० । किसी से पार पायस--संज्ञा, स्त्री० (सं०) खीर, सलई का |
लगना-पूरा होना, हो सकना, निर्वाह गोंद, सरल-निर्यास ।
होना, सफल या पूर्ण (सिद्ध ) होना। पायसा *-संज्ञा, पु० दे० (सं० पार्श्व ) |
पार लगाना-मुक्तया उद्धार करना, निर्वाह पड़ोस, परोस (दे०)।
करना, दुःख या कष्ट से निकालना, पार पाया-संज्ञा, पु० दे० (सं० पाद ) पावा,
उतारना, पूरा करना । पार होना-किसी मचवा (प्रान्ती०) गोड़ा, पद खंभा, श्रोहदा,
कार्य को पूरा करना, मुक्त होना, किसी सीढ़ी, सहारा, अाधार । स० भू० स० क्रि०
वस्तु के बीचसे होकर दूसरी भोर पहुँचना । (हि. पाना) पागया । मुहा०. पाया
मुहा०- पार पाना- समाप्ति या मजबूत होना (करना) --आधार या
पूरा होने तक पहुँचना । किसी सहारा, दृढ़ होना (करना) । (किसी का)
से पार पाना--जीतना, हरा देना
विरुद्ध सफलता प्राप्त करना । ओर, छोर, मजबूत पाया पकड़ना-दृढ़ सहारा लेना। मुहा०—पाया दूढ़ करना (होना )
अंत,सीमा. दूसरा पार्व, दो तटों में कोई आधार या स्थिति को सुदृढ़ करना (होना)।
(एक की अपेक्षा दूसरा)। अन्य-श्रागे, आधार । पाया पकड़ना-सहारा या
परे, दूर अलग। सहायक पाना या बनाना ।
पारई -संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० परई) परई । पायी-वि० (सं० पाइयेन ) पीने वाला। पारख - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पारिख ) पारंगत-वि. (सं०) पूरा ज्ञाता या
पारिख, परख, पारखी। पंडित, पार गया हुआ, मर्मज्ञ पारगामी। पारखद*- संज्ञा, पु० दे० (सं० पार्षद ) पारंपर्य-संज्ञा, पु० (सं०) परंपरा का क्रम,
सेवक, मंत्री, साथ रहने वाला, अंग-रक्षक । वंशपरंपरा, कुल की सदा की रीति। पारखी---संज्ञा, पु० दे० ( हि. पारख -- ई. पार-संज्ञा, पु० (सं०) नदी आदि के दूसरी ---प्रत्य० ) परीक्षक, परखैया, परखने वाला।
ओर का तट या किनारा । . जो तुम अवसि! "बचन पारखी होहु तुम पहलेाप नभाखा" पार गा चहहू "-रामा०। यो०- पारग--वि० पु० (सं.) कार्य पूर्ण करने आर-पार-दोनों किनारे, इस किनारे | वाला, पार जाने वाला, पूर्ण ज्ञाता, समर्थ ।
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