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पर्यवसान १०६५
पलंका पर्यवसान-संज्ञा, पु० (सं०) घरम, अंत, | पर्वतज-संज्ञा. पु० (सं०) पहाड़ से उत्पन्न । समाप्ति, शेष, परिमाण, मिलना अर्थ पचतनंदिनी- संज्ञा, स्त्री० या ० (स०, पार्वती। पाय निश्चित करना। वि०पर्य्यवसित। “सुत मैं न जायो राम-सम, यह कह्यो पर्यस्तापन्हुति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) एक पर्वतनंदिनी"--राम चं० । अर्थालंकार जिसमें वर्ण्य वस्तु का गुण छिपा- पर्वतराज--- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) हिमालय कर उसी का दूपरी पर प्रारोपण हो या सुमेरु पहाड़। (५० पी०)।
पर्वतारि - संज्ञा, पु० यौ० (सं.' इन्द्र । "वज्र पर्याप्त-वि० (सं० ) यथेष्ट, पूरा, काफ़ी __ को अखर्व गर्व गंज्यो जेहि पर्वतारि भागे हैं (फा०) श्रावश्यकतानुसार. प्राप्त. समथे।।
सुपर्व सर्व लै लै संग अंगना"-रामः । पर्याय - संज्ञा, पु० (सं०) तुल्यार्थवाची शब्द,
॥ शब्द, पवतास्त्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्राचीन काल समान अर्थ वाले शब्द, एकार्थी शब्द. एक ।
का एक अस्त्र जिसके फेंकने से शत्र-सेना अर्थालंकार जिसमें एक वस्तु का अनेक में
पर पत्थर पड़ने लगते थे या वह सेना पहाड़ों और अनेक वस्तुओं का एक में आश्रित होना
से घिर जाती थी। कहा जाये-(भ० पी० ) । पाला, क्रम,
पतिया-संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्वत+इयाश्रानुपूर्वी, परिवर्तन, प्रकार, अवसर,
प्रत्य.) लौकी, कद्दू । वि० (दे०) पहाड़ी। निमाण, भोसरी (दे०) बारी।
पर्वती-वि० दे० (सं० पर्वतीय) पर्वतीय, पर्याय वाचक (वाची)-संज्ञा, पु. (सं०)
पहाड़ी, पहाड़ पर रहने या होने वाला, एकार्थ बोधक। पर्यायशयन-संज्ञा, पु. यो० (सं०) पहरेदारों
पहाड़-संबंधी । “गंठ पर्वती नकुला घोड़ा
त्यों दरयायी पार के घोड़".-पाल्हा० । का बारी बारी से सोना। पर्यायोक्ति--संज्ञा, स्त्री० यौ० सं०) एक
पर्वतीय-वि० (स०) पहाड़ पर रहने या होने अर्थालंकार जिसमें घुमा-फिरा कर बात कही
वाले, पहाड़-संबंधी, पहाड़ी। जाये या किसी रोचक व्याज से कार्य-सिद्धि
पर्वतेश्वर-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) हिमालय, सूचित कीजिये ( अ० पी०)।
शिव जी। पोलाचना-संज्ञा, स्त्रीयो० (सं०) समीक्षा, | पूरी जाँच-पड़ताल, विचार-पूर्वक देखना,
पटोल (सं०), परवर (दे०) एक तरकारी। गुण-दोष ज्ञात करना।
परिश-संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) परवरिश, पर्युत्सुक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०, उद्विग्नचित्ता पालना, पोषना, पालन-पोषण । पर्युपासक - संज्ञा, पु० (सं.) दास, सेवक ।।
पर्व-संधि-संज्ञा, स्त्री० या० (सं.) प्रतिपदा पर्युपासन-पर्युपासना संज्ञा, स्त्री० यौ०
और पूर्णिमा या अमावस्य के बीच का समय, (सं०) सेवा, दासता।
सूर्य या चंद्र ग्रहण का समय । पर्व - संज्ञा, पु० (सं० पर्वत्र) पुण्य या धर्मः | पर्वाह- संज्ञा, स्त्री० दे० (फा० परवाह परवाह । काल, उत्सव-दिन, त्यौहार, टुकड़ा, भाग,
भाग पविणी-ज्ञा, स्त्री. (सं०) पर्व-सबधी, अध्याय ।
पर्व की। पर्वकाल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पुण्य या | पहेज, परहेज-संज्ञा, पु० (फा०) अपथ्य या धर्म-काल ।
बुराई का त्याग, अलग या दूर रहना, पर्वणी- संज्ञा, स्रो० (सं०) पूर्णमासी, पूर्णिमा छोड़ना, बचना, त्यागना । पर्वत-संज्ञा, पु० (सं०) पहाड़, एक प्रकार के | पलंका-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पर- लंका ) संन्यासी । वि० पर्वतीय ।।
। बहुत दूर का स्थान या जगह ।
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