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घाघ
घाना घाघ-संज्ञा, पु० (दे०) गोंडा निवासी नीचता, घटियाई-घटिहई ( ग्रा० ) बम्बई एक चतुर और अनुभवी पंडित जिनकी में कुलियों की एक जाति । बहुत सी कहावतें उत्तरीय भारत में प्रसिद्ध घाटिया--संज्ञा, पु० (हि० घट +- इया-प्रत्य०) हैं, एक पक्षी । वि०-चालाक, खुर्राट, घाटवाल, गङ्गापुत्र, घटवार (ग्रा.)। चतुर, अनुभवी, बुद्धिमान ।। | घाटी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० घाट ) पर्वतों घाघरा-संज्ञा पु० दे० (सं० घर्घर = तुद्र के बीच का सङ्कीर्ण मार्ग, दर्रा। " तव घंटिका ) ( स्त्री० अल्पा० घाघरी ) घेरदार प्रताप महिमा उदघाटी"-रामा०। पहनाव (स्त्रियों का ) लहँगा, घांघरा। घात-संज्ञा, पु० (सं०) (वि० घाती) संज्ञा स्त्री. (सं० घर्घर ) सरयू नदी। प्रहार, मार, चोट, धक्का, जरब, हत्या, बध, घाघस--संज्ञा, पु० (दे०) एक प्रकार की
अहित, बुराई, गुणनफल (गणि०)। संज्ञा, मुरगी।
स्त्री० कार्य की अनुकूल स्थिति, दाँव, घाट-संज्ञा, पु० दे० (सं० घ) किसी जला
सुयोग । मुहा०-यात पर चढ़ाना या शय के नहाने, धोने या नाव पर चढ़ने का
घात में आना--अभिप्राय साधन के स्थान । लो०-"धोबी का कुत्ता न घर
अनुकूल होना, दाँव पर चढ़ना, हाथ में का न घाट का" | "धोबी कैसो कूकुर न
आना। घात लगना-मौका मिलना । घर को न घाट को"-तु.। मुह०--घाट
घात लगाना- युक्ति भिड़ाना, ताक घाट का पानी पीना=चारों ओर देश
लगाना, किसी पर आक्रमण करने या देशान्तर में घूम फिर कर अनुभव प्राप्त
किसी के विरुद्ध कुछ करने के लिए अनुकूल करना, इधर-उधर मारे मारे फिरना,
अवसर देखना। मुहा०—घात में
ताक में, दाँव-पेंच, चाल, छल, चालबाज़ी, चढ़ाव-उतार का पहाड़ी मार्ग, पहाड़, भोर, तरफ़, दिशा, रंग ढंग, चाल-ढाल, डौल,
रङ्ग ढंग, तौर तरीका । " ऐसे नर सों बचि ढब, तौर-तरीका, तलवार की धार । " यहि
रहौ, करै न कबहूँ घात"-वृं० । घाट तें थोरिक दूरि है...' क. रामा।
घातक-संज्ञा, पु. (सं०) मार डालने " बोलत ही पहिचानिये, चोर साहु के |
वाला, हत्यारा, नाशक, हिंसक, वधिक । घाट"-वृं० ।। संज्ञा, स्त्री० (सं० घात या
घातकी ( दे०) घातुक ( ग्रा.)।
घातिनि, घातिनी-वि० स्त्री० (सं०) मार हि. घट = कम ) धोखा, छल, बुराई । +वि० दे० (हि० घट ) कम, थोड़ा।
डालने या बध करने वाली, विनाशिनी।
घाती-वि० दे० (सं० घातिन् ) (स्त्री० घाटवाल-संज्ञा, पु० दे० (हि. घाट+
घातिनी) घातक, संहारक, नाश करने वाला, वाला प्रत्य०) घाटिया, गंगा-पुत्र, घटवई । __“खोजत रहे तोहि सुत-घाती"-रामा। घाटा-संज्ञा, पु० दे० (हि० घटना ) घटी, | घात्य-संज्ञा, पु० (सं० ) हनन योग्य, हानि, क्षति ।
__मारने योग्य । घाटारोह*-संज्ञा, पु. (हि. घाट । रोध | धान-संज्ञा, पु० दे० (सं० घन-समूह ) -सं०) घाट रोकना, घाट से जाने न देना।
एक बार में कोल्हू में पेरी या चक्की में पीसी “बाँस सहित बोरहु तरनि कीजै घाटारोह' | जाने की मात्रा, एक बार में पकाई जाने की -रामा० ।
मात्रा। संज्ञा, स्त्री० घानी। संज्ञा, पु० घाटि*-वि० (हि. घटना ) कम, न्यन, (हि. घन ) प्रहार, चोट । घटका, घटी । संज्ञा, स्त्री. (सं० घाट ) | घाना*- स० कि० दे० (सं० घात) मारना
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