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चटु
चढ़ाना चटु-संज्ञा पु० (सं० ) खुशामद, उदर, चढ़ना---० क्रि० दे० (सं० उच्चलन ) नीचे यतियों का एक आसन, सुन्दर, मनोहर से ऊपर उँचाई पर जाना, ऊपर उठना, बिजली । संज्ञा स्त्री० चटुता।
उड़ना, ऊपर की ओर सिमिटना, ऊपर से चटुल-वि० (सं०) चंचल, चपल, चालाक, ढंकना, उन्नति करना, बढ़ जाना । मुहा० सुन्दर, मनोहर । संज्ञा, स्त्री. चटुलता। -चढ़ बनना-सुयोग मिलना, नदी या " छायां निजस्वी चटुलालसानां मदेन किंचि- पानी का बाढ़ पर पाना, धावा या चढ़ाई चटुलालसानाम् "-माध०।
करना, लोगों का एक दल में किसी काम चटोरा-वि० दे० ( हि० चाट+ ओरा के लिये जाना, महँगा होना, स्वर ऊंचा प्रत्य० ) अच्छी चीज़ों के खाने की होना, धारा था बहाव के विरुद्ध चलना, लत वाला, स्वाद-लोभी, लोलुप। स्रो० ढोल, सितार आदि की डोरी या तार का चटोरी।
कस जाना, तनना । आँखें चढ़ना-क्रोध चटोरापन- संज्ञा पु० (हि. चंटारा-+-पन श्राना, नशा हो जाना। नस चढ़ना--- प्रत्य०) स्वाद लोलुपता।
नस का अपने स्थान से हट जाने के कारण चट्टा-वि० दे० (हि० चाटना ) चाट पोंछ तन जाना । दिमाग़ चढ़ना-धमड होना, कर खाया हुश्रा, समाप्त, नष्ट, ग़ायब, चट (दिन) सूरज चढ़ना-दिन के समय का कर जाना यो०-बट्टपट्ट-चटपट ।। आगे बढ़ना । देवार्पित होना, सवार होना, चट्टा-संज्ञा पु. (दे०) चटियल मैदान, | वर्ष, मास, नक्षन्न श्रादि का प्रारम्भ होना, शरीर पर कुष्ट श्रादि के दाग ।
ऋण होना, बही या कागज़ आदि पर चट्टान-संज्ञा स्त्री० दे० (हि. चट्टा ) पत्थर
लिखा जाना, दर्ज होना, किसी वस्तु का का चिपटा बड़ा टुकड़ा, विस्तृत शिल-पटल
बुरा और उद्धंग-जनक प्रभाव होना, या खंड।
पकने या प्राँच के लिये चूल्हे पर रख
जाना, लेप होना, पोता जाना। चट्ट-बट्टा-संज्ञा पु० दे० (हि. चट्ट+बट्टा
चढ़वाना-स० क्रि० (हि० चढ़ाना का प्रे० गोला ) छोटे बच्चों के लिये काठ के खिलौनों
रूप ) चढ़ाने का काम दूसरे से कराना । का समूह, बाज़ीगर की गोले और गोलियाँ
चढ़ाई - संज्ञा स्त्री. ( हि० चढ़ना ) चढ़ने की मुहा० एक ही थैली के चट्टे-बट्टे-एक
क्रिया का भाव, उँचाई की ओर ले जाने मेल के मनुष्य । चट्टे बट्टे लड़ाना-इधर
वाली भूमि, शत्रु से लड़ने के लिये प्रस्थान, की उधर लगा कर लड़ाई कराना।
धावा, अाक्रमण, हमला। चट्टी- संज्ञा स्त्री० (दे०) टिकान, पड़ाव । चढा-उतरी-संज्ञा स्त्रीयो० (हि० चढ़ना+ संज्ञा स्त्री० (हि. चपटा व अनु० चट चट)। उतरना ) बारबार चढ़ने उतरने की क्रिया । एंडी पर खुला जूता, स्लिपर ( अं० )।
चढ़ाऊपरी-संज्ञा स्त्री. यौ० दे० (हि. चट्ट-वि० दे० (हि० चाट) स्वाद-लोलुप चढ़ना - ऊपर ) एक दूसरे के आगे होने या चटोरा । संज्ञा पु० ( अनु० ) पत्थर का बड़ा बढ़ने का प्रयत्न, लाग-डाँट, होड़। खरल।
चढ़ाचढ़ी-संज्ञा स्त्री० यौ० (दे०) चढ़ा चड़ढी-संज्ञा स्त्री० (दे० ) एक खेल जिसमें | ऊपरी परस्पर वृद्धि । “ जानै न ऐसी चढ़ा जीता हुआ लड़का हारे लड़के को पीठ पर चढ़ | चढ़ीते "-पद्मा० । कर पूर्व निर्दिष्ट स्थान तक जाता है। मुहा० चढ़ाना-स० कि० (हि० चढ़ना का प्रे०रूप) चड्ढी गाँठना-अधिकार जमाना। चढ़ने में प्रवृत्त करना, या सहायता देना,
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