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त्रिलोकपति
८५६
त्रैराशिक त्रिलोकपति- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) भगवान, त्रिशंकु-संज्ञा, पु० (सं०) बिजली, जुगनू, विष्णु, शिव ।
पपीहा. एक पहाड़, एक सूर्य वंशी राजा, त्रिलोकी, तिलोकी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) तीनों तीन तारों का समूह । लोकों का समूह, स्वर्ग, पाताल, मृत्यु लोक, त्रिशक्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) इच्छा, एक छंद (पिं०)।
ज्ञान और क्रिया तीनों शक्तियाँ, बुद्धि, त्रिलोकीनाथ–संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विष्णु, गायत्री। शिव, ईश्वर ।
| त्रिशिर--- संज्ञा, पु० (सं० त्रिशिरस ) रावण त्रिलोचन, तिलोचन--संज्ञा, पु० (सं०) शिव । का एक भाई जिसके तीन सिर थे । त्रिसिरा
जी जिनके तीन नेत्र हैं। "आये हैं त्रिलो- (दे०) । चन तें लोचन उघारि दै"-सरस। त्रिशूल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तीन फल का त्रिलोह-त्रिलोहक-संज्ञा, पु. (सं०) सोना, भाला, तिरसूल (दे०)। चाँदी, ताँबा, तीनों धातु ।।
त्रिशूली- संज्ञा, पु० (सं०) शिव जी।। त्रिवर्ग-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) अर्थ, धर्म निषित-वि० ( सं० तृषित ) प्यासा, तिरकाम, त्रिवर्ग हैं, त्रिफला (औष०), त्रिकुटा, षित (दे०)। “निषित बारि बिनु जो तनु स्थिति, वृद्धि, क्षय, सत्व, रज, तम, त्यागा"-रामा० । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ।
| त्रिष्टुभ-संज्ञा, पु० (सं०) एक छंद । त्रिवर्षात्मक वि. यौ० (सं०) तीन वर्ष या | त्रिसंगम-संज्ञा, पु० (सं०) त्रिवेणी। साल का, त्रैवार्षिक।
त्रिसंध्य-त्रिसंध्या-संज्ञा, पु०, स्त्री० यौ० (सं०) त्रिवार्षिका-संज्ञा, स्त्री. (सं०) तीन वर्ष प्रातः, सायं, मध्यान्ह, तीनों संध्या। की गौ।
त्रिस्थली-सज्ञा, स्त्री० (सं०) प्रयाग, गया, त्रिविक्रम-संज्ञा, पु० (सं०) बावनावतार । | काशी।
"जबहिं त्रिविक्रम भये खरारो"-रामा०। त्रिस्रोता-संज्ञा, स्त्री० (सं० त्रिस्रोतस्) गंगा। त्रिविध-वि० (सं०) तीन भाँति का। क्रि० । टि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कमी, हीनता, वि० (सं०) तीन भाँति से।
कसर, भूल-चूक, कसूर, गलती । त्रुटी। त्रिविष्टप---संज्ञा, पु० (सं०) स्वर्ग, तिब्बत त्रटित-वि० ( सं०) खंडित, भग्न, टूटा हुआ।
त्रेता युग--संज्ञा,पु० यौ० (सं०) द्वितीय युग । त्रिवृत्करण-संज्ञा, पु० (सं०) तत्वों के
- वि० (सं० त्रय ) तीन । मिलाने और अलगाने की क्रिया या काम ।
कालिक-सांज्ञा, पु० (सं०) सब कालों त्रिवेणो- संज्ञा, स्त्री० (२०) तीन नदियों का
में या सदा होने वाला। संगम, जैसे प्रयाग में. इडा, पिंगला और
त्रैगुण्य-सज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) तीनों गुणों सुपुग्ना तीनों नाड़ियों के मिलने का स्थान, |
का धर्म या स्वभाव।। जिसे त्रिकुटी कहते हैं, (हठयो०)। त्रिवेद-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) ऋग, यजुः,
त्रैमातुर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लचमण जी। साम, तीनों वेद।
त्रैमासिक - वि० यौ० ( सं० ) प्रत्येक तीसरे त्रिवेदी-संज्ञा, पु. (सं० त्रिवेदिन ) ब्राह्मणों महीने में होने वाला।
की एक जाति, तिरबेदी (दे०)। त्रैराशिक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तीन जानी त्रिवेनी, तिरबेनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० । राशियों से चौथी बिना जानी राशि के त्रिवेणी ) द्विवेणी।
निकालने की रीति (गणि०) तिरासिक(दे०)।
देश।
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