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पंच १०४४
पंचता पंच-वि० (सं०) पाँच । संज्ञा, पु. पाँच की पंचकोश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शरीर बनाने संख्या का अंक, लोक, जनता, समाज, सभा । वाले पाँच कोश-अन्नमय, प्राणमय, मनोझगड़ा निबटाने वाले मुखिया, समुदाय । | मय, विज्ञानमय, आनन्दमय कोश । " पंच कहैं शिव सती विवाही'-रामा०। पंचकोस-संज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० पंचपंचायत का सदस्य, पंचायत । यौ०-पंच- क्रोश ) पाँच कोस की लंबाई-चौड़ाई के नामा-पंचों का निर्णय । मुहा० - मध्य में स्थित पवित्र भूमि, काशी। स्त्री० पंच की भीख-सब की दया या कृपा, | पंचकोसी। सब की असीस । पंचकी दुहाई-अन्याय
पंचकोसी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि. पंच मिटाने या सहायता करने की पुकार । पंच
कोस ) काशी की परिक्रमा । परमेश्वर-समुदाय-कथन परमेश्वर वाक्य
| पंचकोशा-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) पंचकोस, सामान्य है। पंचायत, न्याय सभा। लो०- काशी जी। "पंचै मिलिक कीजै काज । हारे-जीते।
पंचगंगा--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं.) गंगा, होयन लाज"। मुहा०-किसी को पंच
यमुना, सरस्वती, किरणा, और धूतपापा मानना या बदना-झगड़ा के निपटारे |
नामक पाँच नदियों का समुदाय, पंचनद । के हेतु किसी को नियत करना । जज के |
पंचगन्य-- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) गाय के असेसर लोग।
दूध, घी, दही, गोबर, मूत्र पाँचो पदार्थों पंचक-संज्ञा, पु. (सं०) पाँच का समुदाय ।
का समूह । यौ० पंचगव्यघृत। या समूह, धनिष्ठा से ५ नक्षत्र, पाँचक
पंचगौड़-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सारस्वत, (दे०) इनमें शुभ कार्य का निषेध है,
कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिली, उत्कल नामक पंचायत । “ मघपंचक लै गयो साँवरो तातें
पाँच ब्राह्मणों का समुदाय । जिय घबरात "-सूर० ।
पंचचामर---संज्ञा, पु० यौ० (सं०)ज, र, ज, पंच-कन्या-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) अहल्या,
र, गु गु युक्त एक छंद ( पिं० ) चामर या तारा, कुंती, द्रौपदी, मंदोदरी, जो विवाह होने पर भी कन्या रहीं।
नाराच छंद, गिरिराज । पंचकल्याण-संज्ञा, पु. (सं०) ऐसा घोड़ा |
पंचजन-- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गंधर्व, देव, जिसके चारों पैर सफ़ेद हों और माथे पर |
पितर, राक्षस और असुर या ब्राह्मण, क्षत्रिय, सफ़ेद तिलक हो, शेष शरीर का रंग लाल
वैश्य, शूद्र, निषाद का वृंद, मनुष्य समुया काला कोई हो। “ तुर्की, ताजी और दाय, पाँच प्राणों का समूह । कुमैता, घोड़ा अरबी पंच-कल्यान ... पंचजन्य-संज्ञा, पु० (सं.) श्रीकृष्ण का शंख श्राव्हा० ।
"पंचजन्यं हृषीकेशो"--गीता । पंचकवल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) भोजन के | पंचतत्व--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्राकाश, पहले पाँच ग्रास जो कुत्ते, कौए, रोगी, तेज, वायु, जल, पृथ्वी का समुदाय, पंचभूत। पतित और कोढ़ी के हेतु निकाले जाते हैं, “पंच-रचित यह अधम शरीरा"-रामा० । अग्रासन, अग्राशन, आत्म-नैवेद्य के पाँच | पंचतन्मात्र-संज्ञा, पु. यो० (सं०) शब्द, ग्रास, पंचकौर (दे०)। "पंचकवल करि रूप, स्पर्श, रस, गंध का समूह । जेवन लागै"-रामा०।
| पंचतपा-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० पंचतपस) पंचकोण-वि० यौ० (सं०) पाँच कोनों का पंचाग्नि तापने वाला। क्षेत्र, पँचकोन (दे०)।
पंचता--संज्ञा, स्त्री० (सं०) मृत्यु, विनाश ।
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