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दुःसह- वि० (सं०) जो कठिनता से सहा द्वितीया द्वीज, दूज (ग्रा०) । संज्ञा, पु. (सं. जा सके।
द्विज) द्वितीया का चन्द्रमा, दूज का चाँद । दुःसाध्य- वि० सं०) जो कठिनता से सिद्ध हो। दुऊ-दोऊ* --- वि० दे० (हि. दोनों ) दोनों। दुःमाहम--संज्ञा, पु० (सं०) बुरा या अनु- दुकड़ा-दुकरा-संज्ञा, पु० दे० (सं० द्विक+ चित साहस, पृष्टता, ढिठाई।
डा-प्रत्य० ) एक साथ दो, जोड़ा, युग्म, दुःसाहसो-- वि० (सं०) बुरा या अनुचित छदाम । स्त्री० दुकड़ी, दुकरी। साहस करने वारा।
दुकड़-दुकरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) दो दो दुःस्वप्न -संज्ञा, पु० (सं०) बुरा स्वप्न या बाधों से चारपाई की बुनावट, दो बूटियों सपना।
वाला ताश, दुकी, दो घोड़े जुती बग्घी, दुःस्वभाव-संज्ञा, पु० (सं०) बुरी आदत या
जोड़ी, दो का पाँसा, युग्म ।। टेंव, बदमिजाजी । वि० (सं०) बुरे स्वभाव
दुकान-संज्ञा, स्त्री० दे० ( फ्रा० अ० दुकान ) वाला।
हह, हटिया, हट्टी । मुहा०-दुकान उठना दु-वि० दे० हि० दो दो का संनिप्त रूप. द्वै।
(उठाना)-दुकान बन्द करना या तोड़ना। दुअन—संज्ञा, पु० दे० (सं० दुर्मनस् ) दुष्ट,
दुकान बढ़ाना-दुकान बन्द करना। खल, बैरी, दैत्य । वि० (दे०) दोनों, दुहुन
दुकान लगाना- दुकान की सब वस्तुयें दुहूँ (ग्रा.)।
ठीक ठीक पानी अपनी जगह पर रखना, दुपा-संज्ञा, स्त्री० ( अ०) विनती, प्रार्थना,
वस्तुएं फैलाना। याचना । महा०-दुआ माँगना-प्रार्थना,
दुकानदार- संज्ञा, पु० (फा०) सौदा बेचने करना, अपीस, आशीर्वाद चाहना। दुआ
वाला ढोंगी. दुकन्दार (दे०)। देना-शुभाशीष देना। मुहा०-दुश्रा
दुकानदारी-संज्ञा, स्त्री० (फा०) दुकान पर लगना-असीस फलना, आशीष का
माल बेचने का काम, ढोंग या पाखण्ड से फलीभूत होना।
रुपया कमाने का कार्य । दुकन्दारी (दे०)। दुादस- संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं०
| दुकाल~ संज्ञा, पु० दे० (सं० दुष्काल ) द्वादश ) बारह । स्त्री० दुादसी-- द्वादशी।
अकाल, दुर्भिक्ष, सूखा। दुआब-दुप्राधा-संज्ञा, पु. (फा०) दो नदियों के मध्य का देश, द्वाब, द्वाबा।
दुकूल-संज्ञा, पु० (सं०) धोती श्रादि वस्त्र,
तौम या रेशमी कपड़ा, महीन वस्त्र, नदी दुपारी-संज्ञा, पु० दे० (सं० द्वार ) द्वार,
के दोनों किनारे, माता-पिता के वंश ।। दरवाज़ा। दुधागे-संज्ञा स्त्री० (हि. दुआर ) छोटा दुकेता- वि० दे० (हि. दुक्का + एलाद्वार, छोटा दरवाज़ा। वि० ( यौ० में ) द्वार प्रेत्य० ) जो दो हों, एक न हो। यौ०वाली-जैसे-बारह दुधारी।
अकेला-दुकेला-एक या दो पुरुष । क्रि० दुाल- संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) चमड़ा, रकाब, वि. अकेले-दुकेले। तसमा।
दुकेले-क्रि० वि० दे० ( हि० दुकेला ) दूसरे दुआली- संज्ञा, स्त्री० (फा० द्वाल-- तसमा) पुरुष को साथ लिये हुए।
खराद घुमाने वाला चमड़े का तसमा। दुक्कड़-संज्ञा. पु० दे० (हि. दो+ कॅड़) दुइ-दुई-वि० दे० (हि० दो ) दो। “दुइ सहनायी के साथ बजने वाला एक बाजा के चारि माँगि किन लेहू "-राम। जो तबले सा होता है, नगड़िया. साथ दुइज*-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० द्वितीय) | जुड़ी दो नावें ।
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