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निकाय
निधान
१००० निपान-संज्ञा, पु० दे० (सं० निदान) । उदय होना । मुहा० - निकल जाना
अंत, अखोर । अव्य० (दे०) अंत में। आगे बढ़ जाना या चला जाना, नष्ट हो निआमत-संज्ञा, स्त्री. (अ.) अलभ्य, | जाना घंट या भाग जाना,अलग या पार हो अमूल्य; बहु मूल्य या बढ़िया वस्तु । “तंदुरु- जाना । स्त्री का निकल जाना-किसी स्ती हजार न्यामत है"-लो।
पुरुष के साथ अपना घर-वर छोड़ निकंटक—वि० (दे० सं० निष्कंटक ) कर चली जाना। पार होना। निकल निष्कंटक, शत्रु-रहित निर्वाध ।
चलना-अति करना, इतराना, अपनी निकंदन-संज्ञा, पु. यौ० (सं० नि+कंदन सामर्थ्य से अधिक कार्य करना, भाग
=नाश बध ) नाश, विनाश, वध । " कंस- चलना । किसी नदी आदि से पार निकन्दन देवकिनंदन"--- स्फु० ।
होना, उतरना, नाना, उदय होना, दिखाई निकट-वि. ( सं०) समीप, पास का ।। पड़ना, निश्चित, प्रारम्भ या सिद्ध होना, क्रि० वि० (सं०) समीप, पास, लिये, वास्ते । फैलाव होना, छूटना, मुक्त होना, आविष्कृत मुहा०—किसी के निकट किसी के होना, देह के ऊपरी भाग में उत्पन्न होना, विचार, समझ या लेखे में ।
बचा जाना, कह कर न करना, नटना निकटता-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) नज़दीकी, ( प्रांती० ) खपना, बिकना, व्यतीत होना, समीपता, नैकट्य (सं.)।
। घोड़े बैल आदि को सिखाना। निकटवर्ती-वि० ( सं० निकट+वर्तिन् ) निकलवाना-स० कि० दे० (हि. निकालना
समीप, निकट या पास वाला । स्त्री का प्रे० रूप) निकालने का कार्य दूसरे से निकटपत्तिनी।
कराना। निकटस्थ-वि० (सं०) समीप या पास का। निकसना-अ.क्रि.० दे० (हि० निकलना) निकम्मा-वि० दे० (सं० निष्कर्म) बे काम, | निकलना । (प्रे० रूप-निकसाना, नि
ब्यर्थ,बेमसरफ, निष्प्रयोजन । स्त्री निकम्मी। __ कसवाना) निकासना । निकर-संज्ञा, पु. ( सं०) समूह, राशि, निकाई*-संज्ञा, पु. दे० (सं० निकाय )
निधि । “निश्चर-निकर-पतंग'---रामा० । समूह । संज्ञा, स्त्री० (हि० नीक ) भलाई, निकरना-अ० कि० (हि. निकलना) सुन्दरता, खेत से घास आदि काट कर साफ़ निकलना (t० रूप०) निकराना, निकर- करना, निकवाई (ग्रा०)। वाना, निकारना।
निकाज-वि० दे० (हि. निकाज) निकर्मा-वि० दे० (निष्कर्म ) पानसी, निकम्मा, बेकाम | निकम्मा।
निकाना- स० कि० (दे०) खेत से घास आदि निकलंक-वि० दे० (सं० निष्कलंक) निर्दोष। | छील कर साफ करना, निकावना (ग्रा०) । "जिमि निकलंक मयंक लखि, गनै लोग | " हेरि अंतराय लौं निकाय हरयौ तल तें" उतपात" -वृ।
-सरस । प्रे० रूप निकवाना। निकलंकी-संज्ञा, पु० (सं० निष्कलंक) निकास-विदे
निकाम-वि० दे० (हि० नि+ काम) खराब, विष्णु का अवतार, कल्कि अवतार । वि.
बुरा, निकम्मा, व्यर्थ । क्रि० वि० (दे०) (दे०) कलंक-हीन ।
व्यर्थ, इच्छा या कामना-रहित, परिपूर्ण । निकल-संज्ञा, स्त्री० (अं०) एक धातु । "निपट निकाम बिन राम बिसराम कहाँ" निकलना-अ० कि० (हि. निकालना) कहीं से बाहर आना, प्रगट या निर्गत होना, निकाय-संज्ञा, पु. (सं०) समूह, राशि,
-पद्मा।
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