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नाट्यरासक
नदिन नाट्यरासक-संज्ञा, पु. (सं०) वह रूपक वह स्थान जहाँ से नाड़ियाँ या रगें सब
या दृश्य काव्य जिसमें एक ही अंक हो। अंगों-प्रत्यङ्गों को जाती हैं। नाट्यशाला-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वह नाड़ो मंडल--संज्ञा, पु. या० (सं०) विषुवत् स्थान जहाँ पर नाटक का खेल या अभिनय रेखा, देह का नाड़ी समूह । किया जावे।
नाडी-वलय--संज्ञा, पु. यो ० (सं०) समय नाट्यशास्त्र-संज्ञा, पु. यो० (सं०) नाच. जानने का एक यंत्र। गाना और अभिनय की विद्या की पुस्तक, नाता-संज्ञा, पु० दे० (सं० जाति) सम्बन्धी, भरत मुनि-प्रणीत एक प्राचीन ग्रंथ । नाते या रिश्तेदार, सम्बन्ध, रिश्ता । नाट्यालंकार --- संज्ञा, पु. (सं०) नाटक में नातो (ब्र०) । यो० (ग्रा०) नातगोत ।
रोचकता या सौंदर्य बढ़ाने वाला विधान। नातर-नातरु*-अव्य० दे० या ० (हि. ना+ नाट्योक्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) नाटकों
तर, तरु) नहीं तो, और नहीं तो, अन्यथा, में विशेष विशेष पुरुषों के लिये संबोधन,
"नातरु नेह राम सों साँचो"-वि०।। जैसे-(पति के लिए)-भार्य-पुत्र।
नातवाँ-वि० (फा०) निर्बल, कमज़ोर, होन । नाठ - संज्ञा, पु० दे० (सं० नष्ट ) ध्वंस,
नाता-संज्ञा, पु० (सं० जाति) जाति-सम्बन्ध,
लगाव, सम्बन्ध, रिश्ता। नाश, अभाव।
| नाताकत-वि० (फा० न+ताकृत-प्र.) पाठना* -- स० क्रि० दे० (सं० नष्ट) नाश,
निर्बल, हीन, क्षीण। संज्ञा, स्त्री० नाताकती। नष्ट या ध्वस्त करना, नठाना (ग्रा०)।
नाती-संज्ञा, पु० दे० (सं० नप्त ) लड़के या माठा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० नष्ट ) जिसके
| लड़की का लड़का। स्त्री० नतिनी, नातिन । गरिस या दायभागी न हो, अकेला, अस- नाते-क्रि० वि० दे० (हि. नाता ) सम्बन्ध
से, हेतु, वास्ते, लिये। नाठिया, नठिया-वि० (दे०) नष्टी, (२०) नातेदार-वि० दे० (हि. नाता+दार फ़ा०) नष्ट, बुरा. नठेल (ग्रा.)।
सगा, सम्बन्धी, रिश्तेदार । ( संज्ञा, स्त्री० नाड़-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० नाल ) गरदन, । प्रीवा।
नाथ-संज्ञा, पु० (सं०) स्वामी, मालिक, नाड़ा-संज्ञा, पु० दे० (सं० नाड़ी) इजारबंद, प्रभु, पति । सज्ञा, स्त्री० दे० (हि. नाथना ) नीवी, देवताओं को चढ़ाने का रंगीन गंडे- नाथने का भाव या क्रिया, पशुओं की नकेल दार तागा।
. या नाक की डोरी। नाड़ी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) नली, धमनी, रग, नाथना-स० कि० दे० (हि. नाथ्य) पशुओं "नाही धत्ते मरुत्-कोपे जलौकासर्पयोर्ग- की नाक छेद कर उसमें रस्सी डालना, नत्थी तिम्"-भाव० । मुहा०-नाड़ी चलना करना, लड़ी जोड़ना। - हाय की नाड़ी का हिलना, डोलना। नाथद्वारा-संज्ञा, पु. यौ० (सं० नाथद्वार) जयनाड़ी छूट जाना-नाड़ी का न चलना।। पुर राज्य में वल्लभ-संप्रदाय का एक स्थान । नाड़ी देखना-नाड़ी से रोगी की दशा | नाद-संज्ञा, पु. (सं०) धावाज़, शब्द, का विचार करना । घाव या नासूर का छेद, संगोत, वणेचारण-स्थान, अर्ध चन्द्र । बंदूक की नली, समय का मान जो छै क्षण यो०-नादविद्या--संगीत-शास्त्र । का होता है।
नादन-संज्ञा, पु० दे० (सं० नदन) शब्द या नाडी-चक्र-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शरीर का वनि करना, गरजना।
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