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मका
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नख
-किसी पर सब तरह का अधिकार होना। नक्ल-संज्ञा स्त्रो० दे०.(अं० नफल) अनुकरण, नकेल न मानना--प्राज्ञा या शासन न | नकल, अभिनय । मानना, मनमानी उइंडता करना। नकश-वि० ( अं० ) जो चित्रित या अंकित नक्का-संज्ञा, पु० दे० (हि. नाक ) नाका. ! किया गया हो, लिखा या बनाया हुआ। सुई का वह छेद जिसमें डोरा रहता है। मुहा०- मन में नक्श करना या कराना नक्कारखाना संज्ञा, पु. ( फा० ) नौवत । --अपने या दूसरे के मन में कोई बात भलीखाना, वह स्थान या ठौर जहाँ नगाड़ा भाँति बैठाना । नकश होना-प्रगट होना। बजता हो । मुहा०-नक्कारखाने में तूती | संज्ञा, पु. (अ.) चित्र, तसबीर, किसी वस्तु की श्रावाज़ ( कौन सुनता है )--बड़ों पर खोद या लिख कर बनाये गये बेल-बूटे, के संमुख छोटों की कौन मानता है। मोहर, छाप । मुहा०-नकश. बैठाना - नक्कारची-रांझा, पु० (फ़ा०) नगाड़ों का |
अधिकार या हक जमाना या स्थिर करना, बजाने वाला।
तावीज़, टोना-टोटका, जादू । नक्कारा--संज्ञा, पु० (फा०) नगाड़ा, डंका।
नक्शा -संज्ञा, पु० ( अ०) चित्र, प्रतिमूर्ति, नकाल-संज्ञा, पु० (अ०) नकल या अनुकरण
तसवीर, शकल, ढाँचा, प्राकृति, स्वरूप, करने वाला, भौड़।
तर्ज, दशा, उप्पा, देशों के चित्र । नक्काश-संज्ञा, पु० (अ.) नक्काशी करने
नकशानवीस-संज्ञा पु० यौ० (प्र. नकशा
+नवीस फ़ा० ) नकशा बनाने या खींचने वाला। नक्काशी-- संज्ञा, स्त्री० (अं० ) पत्थर, काष्ठ
वाला संज्ञा, स्त्री० नकशानवीसी । और धातु धादि पर खोद खोद कर बेल
नकशी-वि० (अ. नक्श+ई---प्रत्य० ) बूटे श्रादि बनाने का कार्य या विद्या, खोद
नक्काशीदार, बेल बूटेदार वस्तु । कर किसी पदार्थ पर बनाये गये बेल-बूटे ।
नक्षत्र-संज्ञा पु० (सं०) २७ तारे, जो चंद्र
मार्ग में स्थित हैं, मघा, पुष्प, पुनर्वसु वि० नक्काशीदार ।
श्लेषादि, नछत्तर । यो० नक्षत्र-मंडल । नक्की-संज्ञा स्त्री० दे० (हि. नाक) नाक-स्वर
नक्षत्रनाथ--संज्ञा, पु० यो० (सं०) चन्द्रमा, से सानुनासिक बोलना, निश्चय, स्थिर, दृढ़ । |
नक्षत्रेश, नक्षत्रपति । नाक (दे०) ।
नक्षत्र-पथ-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नक्षत्रों के नक्कीमूठ---संज्ञा, पु. यौ० (दे०) एक प्रकार
चलने का मार्ग। के जुये का खेल।
नक्षत्र-राज---संज्ञा, पु. यौ० (सं०) चन्द्रमा। नक-वि० दे० (हि. नाक) बड़ी नाक वाला, नक्षत्र-लोक---संज्ञा, पु. यौ० (सं०) जिस अपने को माननीय या प्रतिष्ठित जानने लोक में नक्षत्र हैं। वाला, सब से भिन्न और उलटे कार्य करने नक्षत्रवृष्टि--संज्ञा,स्री० यौ०(सं०) उल्कापात. वाला, आत्माभिमानी, बदनाम, अपयशी। । तारा टूटना। नक्त-संज्ञा पु० (सं०)संध्या का समय, रात्रि नक्षत्री-संज्ञा, पु० (सं० नक्षत्रिन्) चन्द्रमा । एक वृत ( पिं०) शिव । “नक्तं भीस्यं त्वमेव | वि० ( सं० नक्षत्र + ई प्रत्य० ) भाग्यवली । तदिमम् राधे गृहं प्रापय"-गीतः। नख-संज्ञा, पु० (सं०) नाखून, नहँ ( ग्रा० ) नक्र--संज्ञा पु० (सं०) नाक या नाका नामक
___एक औषधि, टुकड़ा, भाग, खंड । यौ० पानी का जंतु, मगर, घड़ियाल, नाक, |
नख-शिव-नख से शिख तक। संज्ञा, नासिका।
स्त्री० दे० (फा. नख ) पलंग की डोरी।
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