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दाब
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दानधर्म
८६१ सिद्ध करने की विधि, शुद्धि । “बहै दान मिलना । दाने दाने को मुहताज-बहुत मदनीर -वि०।
कंगाल, अति दरिद्र । छोटी गोल वस्तु, जैसे दानधर्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दान करने मोती का दाना, माला की गुरिया, जीविका,
का धर्म, दान और धर्म यौ०-दानपुण्य। "जाना जरूर जहाँ दाना बिरझाना है"। दानपति-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नित्य या वि० (फ़ा. दाना) अक्लमन्द, बुद्धिमान, सदा दान देने वाला, दानी।
चतुर । "खाक में मिलता है दाना सब्ज़ होने दानपत्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वह पत्र के लिए"। जिसके अनुसार किसी को भूमि श्रादि सदा दानाई- संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) बुद्धिमानी, चतु. के लिये दी जाय।
राई अक्लमंदी। दानपात्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) दान पाने | दाना चाग-संज्ञा, पु० यौ० (फ़ा०) खानायोग्य।
पानी, अन्न-जल । दानलीला-संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) एक दानाध्यत--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) दान का पुस्तक, कृष्ण के दान की लीला।
प्रबन्धक, राज-कर्मचारी। दानव-संज्ञा,पु० (सं०) कश्यप की स्त्री, दनु दाना-पानी-संज्ञा, पु० यौ० (फ़ा० दाना+
के पुत्र, असुर, दैत्य । स्त्री० दानवी। हि. पानी) अन्न-जल, भोजन-जल, खानादानवज्र-संज्ञा,पु० यौ० (सं०) दान देने में पानी, श्रावदाना (उ०)। मुहा०-दानाबज्र के समान, वैश्य एक घोड़ा।
पानी छोड़ना- उपास करना, अन्न-जल दानवारि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दैत्यों और | न ग्रहण करना, पालन पोषण का यत्न, दानवों के शत्रु, विष्णु भगवान । यौ० । जीवका. रहने का संयोग। (दान - वारि) दान का जल, हाथी का मद। दानिनी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दान देने वाली। "पानवारि हाथी चढ़े दान-वारि-युत जोय" दानी- वि० (सं० दानिन् ) उदार, दाता,
दानशील । संज्ञा, पु० (सं० दानीय) महसूल दानवी-संज्ञा: स्त्री० (सं० दानव या दानव या कर लेने वाला, दान लेने वाला । माति की स्त्री, दैत्यनी राक्षसी। वि० सं० (स्त्री० दानेनी)। दानवीय) दानव का या दानव-सम्बन्धी। दानीय-वि० (सं०) दातव्य, दान के योग्य । "चली दानवी सेन धारे उमंगें"-मन्ना। दानेदार- वि० (फ़ा०) जिस वस्तु में दाने दानवीर-संज्ञा, पु. यो. (सं०) अति दानी, या रवे हों, रवादार । जो दान में हार न माने, बड़ा दानशील। दानो-दानौ! *-संज्ञा, पु० दे० (सं० दानव) 'दान-वीर हरिचन्द सत्य दुस्तर अपार दुख" दैत्य, राक्षस, दानव । -स्फु०।
दाप-संज्ञा, पु० दे० (सं० दर्प प्रा० दप्प ) दानवेन्द्र-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) राजा बलि। अभिमान, घमंड, शक्ति, बल, उमंग, उत्साह, दानशील-वि० (सं०) दानी, दान देने या श्रातंक, क्रोध, ताप। "भंजेउ चाप दाप बड़
करने वाला। संज्ञा, स्त्री० दानशीलता। बाढ़ा" रामा०। दाना-संज्ञा, पु. (फ़ा. दानः) अनाज का | दापक-संज्ञा, पु० दे० (सं० दर्पक ) दबाने एक बीज, अन्न का चबैना, प्रति दिन घोड़े वाला, घमंडी। को देने का अन्न । यौ० दाना-पानी, श्राब-दापना*--स० क्रि० दे० (हि. दाप) दबाना, दाना । मुहा०~-दाने दाने को तरसना रोकना, मना करना । (फिरना) अन्न का दुख सहना, खाना न ! दाब-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. दाप) दबने या
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