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तिलक
तिलावा सा गोदने का चिन्ह, आँख की पुतली के तिलपट्टी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० ( हि० तिल बीच का गोल काला विन्दु।
+पट्टी) चीनी या शक्कर में बना तिलों तिलक-संज्ञा, पु० (सं०) टीका, राज्याभिषेक, । का कतरा। राजतिलक, टीका ( व्याह का ) माथे का
तिलपपड़ी, तिलपट्टी-संज्ञा, स्त्री० यौ० दे०
( हि० तिल -+-पपड़ी ) शक्कर के साथ बना गहना, शिरोमणि, सिरताज, श्रेष्ठ, एक पेड़, एक प्रकार का घोड़ा, तिल्ल खेटकी, किसी
तिलों का कतरा, तिलपपरी। पुस्तक की अर्थ-सूचक व्याख्या या टीका ।
ति नपुष्प-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तिल का संज्ञा, पु० दे० ( तु० तिरलोक) औरतों का
- फूल, बघनखा, व्याघनख । एक कुरता, खिलत।
तिलभुगगा-संज्ञा, पु. यौ० दे० (हि. तिल तिलकना-अ० कि० दे० (हि० तड़कना)
+भुग्गा) शक्कर की चाशनी में मिले कुटे तिल। गीली मिट्टी सूखने पर जो फट जाती है, ।
तिलमिल-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० तिमिर)
तिरमिराहट, चकाचौंध । फिसलना। तिलक-मुद्रा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) केसर
तिलमिलाना- अ० क्रि० दे० (हि० तिमिर )
चौंधियाना, तिरमिराना, झपना। चंदन आदि का टीका और शंखादि का छापा ( वैष्णव)।
तिलवा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० तिल ) तिलों
का लड्डू। तिलकहार-संज्ञा, पु० यौ० (हि० तिलक +हार ) फलदनहा, तिलकहा, वर को
| तिलस्म-संज्ञा, पु० दे० (यू. टेलिस्म ) तिलक चढ़ाने वाला।
जादू, करामात, चमत्कार, करिस्मा ।
तिलस्मी-वि० दे० (हि. तिलस्म ) जादू तिलका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक वर्ण वृत्त. वसंततिलक (पिं०) तिल्लाना गीत, कन्नौज
संबंधी, करामाती, चमत्कारी ।
तिलहन-संज्ञा, पु० दे० (हि. तेल+धान्य) के राजा जयचन्द की रानी।।
उन पौधों के बीज जिनसे तेल निकलता है। तिलकुट-संज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० तिल)
जैसे तिल, सरसों। शक्कर की चाशनी में पागे कुटे तिल ।
ति नहा-तेलहा-वि० दे० (हि० तेल) तेल का तितचटा-संज्ञा, पु० यौ० दे० ( हि० तिल
पका, तेल में बना, तेलयुक्त, चिकना, तेली। +चाटना ) एक तरह का झींगुर, चिवड़ा ।
तिलांजली-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) तिलतिल छना - अ० क्रि० दे० (अनु०) छट
मिली पानी की अंजली. मृत या प्रेत को पटाना, विकल या बेचैन रहना।
अंजली में पानी भर तिल देना । मुहा०तिलड़ा, तिलरा-वि० दे० यौ० (हि.
तिलांजली देना-बिलकुल छोड़ या तीन+लड़) तीन लरों की रस्सी, तीन लड़ों
त्याग देना, सम्बंध तोड़ देना । का हार।
तिला-संज्ञा, पु. (दे०) सोना, पगड़ी का तिलड़ी-तिलरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तीन |
छोर जिसमें सोने के तार बुने रहते हैं, +लड़) ३ लड़ों का हार (गहना ) तीन
नपुंसकता मिटाने वाला एक तेल । लड़ों का माला, जिसके बीच में जुगुनी तिलाई-संज्ञा, स्त्री० (फा०) सेनिहला,
छोटी कड़ाही। तिलदानी- संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि. तिलाक-संज्ञा, पु. ( अ० तलाक ) स्त्री-पुरुष तिल्ला + सं० प्राधान) दरज़ियों के सूई. का सम्बन्ध टूटना, त्याग, तलाक । तागा रखने की थैली। वि०-तिल का दान । तिलाघा-संज्ञा, पु० (दे०) वह कुलाँ जिसमें करने वाला।
। तीन पुर चलें, रौंद, गश्त ।
रहती है।
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