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जमामार ७१४
जयदेव जमामार-वि० दे० यौ० (हि. जमामारना) जम्हाना (दे०)। संज्ञा, स्त्री. जमुहाई। दूसरों का धन दबा रखने या ले लेने वाला। जमूरक-जमूरा-संज्ञा, पु० दे० (फा० जमालगोटा-संज्ञा, पु० दे० (सं० जयपाल) जंबूरक ) एक छोटी तोप ।।
एक पौधे का रेचक बीज, जयपाल, दंतीफल। जमोगा--- संज्ञा, पु० दे० (हि. जमोगना) जमाव-संज्ञा, पु० दे० (हि. जमाना) जमने | ___ जमोगने अर्थात् स्वीकार करने की क्रिया।
या जमाने का भाव, समूह, हुंड । जमांगना-स० कि० दे० ( फ़ा. जमा+ जमावट-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० जमाना ) योग ) हिसाब किताब की जाँच करना, जमने का भाव ।
स्वयं उत्तरदायित्व से मुक्त होने के लिये जमाकड़ा-संज्ञा, पु० दे० (हि. जमना = दूसरे को भार सौंपना, सरेखना, तसदीक
एकत्र होना) बहुत से लोगों का समूह, भीड़। । करना, बात की जाँच करना । जमीकंद-संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा० ज़मीन + | जयंत---वि० (सं०) बहुरूपिया । संज्ञा, पु० कंद) सूरन, श्रोल (प्रान्ती०)। (सं०) रुद्र, इन्द्र के पुत्र, उपेंद्र का नाम, जमीदार-संज्ञा, पु. ( फ़ा०) नम्बरदार, स्कंद, कार्तिकेय, जयंता । " नारद देखा ज़मीन का मालिक, भूमि का स्वामी । स्त्री० विकल जयंता'-रामा० । (स्त्री. जयंती)। जमींदारिन ।
जयंती--संज्ञा, स्त्री. (सं०) विजय करने जमींदारी-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) ज़मींदार की | वाली, विजयिनी, स्वजा, पताका, हलदी, जमीन, ज़मीदार का पद।
दुर्गा, पार्वती, किसी महात्मा की जन्मतिथि जमीन-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) पृथ्वी (ग्रह) | पर उत्सव, वर्ष-गाँट का उत्सव, एक बड़ा भूमि, धरती (दे०) सु० (घरों तले से) पेड़, जैत या जैता, बैजंती का पौधा, जौ जमीन खिसकना-पाश्चर्य या भय के छोटे पौधे जिन्हें विजया दशमी के दिन लगना । मुहा०—जारान आसमान एक ब्राह्मण यजमानों को देते हैं। जई (दे०)। करना, जमीन आसमान के कुला जय-संज्ञा, स्त्री० (०) युद्ध, विवाद आदि मिलाना-बहुत बड़े बड़े उपाय करना। में विपक्षियों का पराभव, जीत । यौ०जमीन आसमान का फरक-बहुत जयपत्र-विजय की स्वीकृति का लेख । अधिक अंतर । जमीन देखना (दिखाना) मुहा०—जय मनाना--विजय की कामना गिरना (गिराना ) पटकना, नीचा देखना करना, समृद्धि चाहना । यो जयजर्यात( दिखाना)। जमीन पर आना-गिर जय हो (श्राशीष ), विष्णु के एक पार्षद जाना । अभी जमीन से उठना-अल्प महाभारत का पूर्व नाम, जयंती, जैत का वयस्क होना । कपड़े श्रादि की वह सतह पेड़, लाभ, अयन । यौ-जयकाव्य जिस पर बेल-बूटे श्रादि बने हों, वह (गीत) वीर-विजय-कान्य । सामग्री जिसका व्यवहार किसी द्रव्य के | जयकरी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) चौपाई छंद । प्रस्तुत करने में आधार-रूप से किया जाय, वि०-विजय कराने वाली। डोल, भूमिका, प्रायोजन ।
जयजीव*--संज्ञा, पु. यौ० (हि० जयजानुकना-अ० क्रि० दे० ( ? ) पास पास जी) एक प्रकार का अभिवादन या प्रणाम होना, सटना जमकना (दे०) चिपकना, जिसका अर्थ है जय हो और जियो । दृढ़ होना।
“कहि जयजीव सील तिना नावा" रामा० । जरंद-संज्ञा, पु० (फा०) पन्ना ( रन)।। जयदेव--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गीत-गोविंदजमुँहाना-अ० कि० (दे०) अँभाना | कार एक संस्कृत-कवि ।
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