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sesमयक
जामेवार
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जालदार जामेवार - संज्ञा, पु. (फा० जमा+वार)। उपपति से उत्पन्न पुत्र । “जारज जाइ
एक सर्वत्र बुटेदार दुशाला, ऐसी हो छींट : कहावहु दोऊ '' ... राम । जाम्बूनद-... सज्ञा, पु० (स.) सोना, सुवर्ण । जारजया-पंज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्त्री के जाय -प्रव्य० दे० ( फ़ा. जा ) वृथा, ज़ार या उपपति से पुत्र की उत्पत्ति के निष्फल । वि. उचित, वाजिब, ठीक । जानने का नियम फ़. ज्यो०)। " जाय कहब करतूति बिन, जाय योग विन जारण--संज्ञा, पु. (सं०) जलाना, भस्म छम"।
करना, जारन (दे०)। जायका-- संज्ञा, पु० ( ० ) खाने पीने की जानी-संज्ञा, पु. (हि. जलाना ) इंधन, चीज़ों का मज़ा, स्वाद । वि. जायके- जलाने की क्रिया या भाव । दार।
जारना ---- स० कि० (दे०) जलाना, (जराना जायचा-संज्ञा, पु. ( फा० ) जन्म-पत्री का प्रे० रूप ) जराना। जायज-वि० ( अ० ) उचित, मुनासिब । जारल-संज्ञा, पु० (दे०) काष्ठ विशेष । जायजा ... संज्ञा, पु. ( अ०) जाँच-पड़ताल, जारिणी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) व्यभिचारिणी, हाज़िरो, गिनती।
दुश्चरिका या बदचलन स्त्री। जायद-वि० ( ० ) अधिक अतिरिक्त । जारी-वि० (प्र.) बहता हुआ, प्रवाहित, जायदाद - संज्ञा, स्त्री० ( फा०) भूमि, धन चलता हुश्रा, प्रचलित । संज्ञा, स्त्री० ( सं० या सामान आदि जिस पर किसी का | जार - ई-- प्रत्य० ) परस्त्रीगमन, छिनाला, अधिकार हो, सम्पत्ति ।
व्यभिचार । जाय-नमाज-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( फा० ) जारीब-संज्ञा, स्त्री० (फा०) झाडू, बदनी। नमाज़ के लिये बिछाने का छोटी दरी या जालंधर-संज्ञा, पु० (दे०) जलंधर। बिछौना ( मुस० )
जालंधरी विद्या--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० जायपत्री-संज्ञा, स्त्री० (दे०) जावित्री। जालंधर दैत्य ) मायिक विद्या, माया, प्रपंच, जायफल-संज्ञा, पु० दे० (सं० जातीफल ) इन्द्रजाल । अखरोट सा एक छोटा सुगधित फल जो जालंध्र-संज्ञा, पु. (स०) झरोखे की जाली। औषधि, मसाले में पड़ता है।
! जाल-संज्ञा, पु० (सं०) मछलियों और जाया-पंज्ञा, स्त्री० (सं०) विवाहिता स्त्री, पत्नी, जोरू, उपजातिवृत्ति का सातवाँ भेद।।
का पट, एक में श्रोत-प्रोत बुने या गुथे
हुये बहुत से तारों या रेशों का समूह, ज़ाया-- वि० ( फा० ) खराब, नष्ट ।
किसी को फंसाने या वश में करने की जाये-संज्ञा, पु. ( हि० जाना ) उत्पन्न किया
युक्ति, मकड़ी का जाला, समूह, इन्द्रजाल, हुश्रा, बेटा, पुत्र । " कौशलेश दशरथ के
एक तोप । संज्ञा, पु. (अ. जमल, मि० जाये".-रामा० ।
सं० जाल ) फरेब, धोखा, झूठी कार्रवाई । जार-संज्ञा, पु० (सं०) पर-स्त्री से प्रेम यौ०--जालफरेव । करने वाला पुरुष, उपपति, यार, प्राशना। जालगि-सर्व० (दे०) जिसके लिये, जिस वि० मारने या नाश करने वाला !
___ कारण, जिस हेतु। जारकर्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) व्यभिचार, जाल गोगिकी--- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) छिनारा !
दधिमंथन भाण्ड, मथेड़ी, मथनी । जारज-ज्ञा. पु० (सं.) किसी की स्त्री का जालदार-वि० ( सं जाल-+दार हि० )
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