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चलकना
चलनी
छंद-भेद, शिव, विष्णु | यौ० - चलाचल, यौ०-चलन-कलन-गणित की किया जंगम, स्थावर।
विशेष । संज्ञा, पु. ( स०) गति, भ्रमण । चलकना-अ. क्रि० ( दे० ) चमकना। चलन-कलन-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) दिन चलचलाव-संज्ञा पु० दे० (हि० चलना ) रात के घटने-बढ़ने की गणित, ( ज्यो०)। प्रस्थान, यात्रा, चलाच ती, मृत्यु । चलनसार- वि० ( हि० चलन + सार चलचाल-वि० यौ० (सं० ) चल-विचल, प्रत्य० ) प्रचलित, उपयोग या व्यवहार चंचल, चपल, यो० चलचलातू ।
वाला, टिकाऊ ( दे०)। चलचूक-संज्ञा स्त्री. यौ० (सं० चल = चलना-अ० कि० दे० (सं० चलन ) एक चंचल+चूक = भूल ) धोखा, छल, कपट । स्थान से दूसरे स्थान को जाना, गमन या चलता-क्रि० वि० (हि. चलना) चलता प्रस्थान करना, हिलना, डोलना। मुहा०हुआ। मुहा०-चलता करना-हटाना, पेटचलना--- दस्त श्राना, अतिसार होना, भगाना, भेजना, किसी प्रकार निपटाना । निर्वाह या गुज़र होना । मन चलना चलता बनना-चल देना । यौ०- .... इच्छा या लालसा होना । चल बसना चलता-फिरता । मुहा०-चलते फिरते - मर जाना। जीभ चलना-बहुत बकना, नज़र आना-चला जाना । जिसका क्रम बढ़ बढ़ कर बात करना, कुत्सित बकना । भंग न हुआ हो, जो बराबर जारी हो, अपने चलते-भरसक, यथाशक्ति । हाथ जिसका रिवाज या चलन बहुत हो, प्रचलित, चलना-मारने-पीटने का स्वभाव होना। काम करने योग्य, जो अशक्त न हुआ हो, कार्य-निर्वाह में समर्थ होना, निभना, चालाक । यौ०-चलता-पुर्जा-चालाक, प्रवाहित या वृद्धि पर होना, बदना, किसी चतुर । संज्ञा पु० ( दे० ) बेल केसे फलों- कार्य में अग्रपर होना, किसी युक्ति का वाला एक बड़ा सदाबहार पेड़, कवच, काम में आना, श्रारम्भ होना, छिड़ना, झिलम । यौ०-चलता काम करना । जारी रहना. क्रम या परम्परा का निर्वाह साधारण रूप से काम करना, जो काम होना, बराबर काम होना, टिकना, ठहराना, जारी हो । संज्ञा, स्त्री. (सं० ) चल होने लेन-देन में प्राना, प्रचलित या जारी होना, का भाव, चञ्चलता, अस्थिरता। यो०- प्रयुक्त या व्यवहृत होना, तीर, गोली श्रादि चलता खाता।
का छूटना, लड़ाई-झगड़ा या विरोध चलती-संज्ञा स्त्री० यौ० (हि. चलना)
होना, पढ़ा या बाँचा जाना, कारगर होना, मान, मर्यादा, अधिकार । लो०---"चलती
उपाय लगाना, वश चलना, आचरण या का नाम गाड़ी है।"
व्यवहार करना, निगला या खाया जाना । चलतू-चलातू-वि० दे० यौ० (हि० चलना) मुहा०-नाम चलना. संघत चलना-- प्रचलित, टिकाऊ, अस्थिर ।
कीर्ति होना। सिक्का चलना-राजा होना, चलदल-संज्ञा पु. यौ० (सं० ) पीपल । प्रभाव फैलना । स० क्रि० शतरंज या चौसर चलन-संज्ञा, पु. ( हि० चलना) चलने आदि खेलों में किसी मोहरे या गोटी आदि का भाव, गति, चाल, रिवाज, रस्म, रीति, को अपने स्थान से बढ़ाना या हटाना, ताश चलनि (दे०) किसी वस्तु का व्यवहार, और गंजीफे आदि खेलों में किसी पत्ते उपयोग, या प्रचार । संज्ञा, स्त्री० (सं०) को खेलने वालों के सामने रखना। संज्ञा, ज्योतिष में विषुवत् पर समान दिन और पु० (हि. चलनी) बड़ी चलनी। रात के समय, भू-विषुवत-गति ( ज्यो०) | चलनी-संज्ञा, सी० (दे०) छलनी,
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