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चित
चित्रगुप्त हरकारा औ कव्व"। स्त्री -चितेरिन | चित्तोन्नति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) गर्व,
"चित्र तै दीठि चितेरिन पै"-रत्ना। अहंकार, अभिमान, घमंड । चितै-स० कि० दे० (हि. चितवना ) देख | चित्तौर---संज्ञा, पु० दे० (सं० चित्रकूट) उदय
कर, ताककर । "प्रभुतन चितै प्रेमप्रण पुर के महाराणाओं की प्राचीन राजधानी । ठाना" रामा० ।
चित्य-संज्ञा, पु० (सं०) समाधि का स्थान। चितौन-संज्ञा, स्त्री. ( दे०) चितवन,
| चित्र-संज्ञा, पु० (सं० ) (वि० चित्रित ) चितौनि, चितवनि ( दे.)।
चंदन आदि का माथे पर चिन्ह, तिलक, चितौना-स० कि० (दे० ) चितवना।।
किसी वस्तु का स्वरूप और श्राकार जो चित्त-संज्ञा, पु० (सं० ) अंतःकरण का
कलम और रंग श्रादि से बना हो, तसवीर। एक भेद, मन, दिल । मुहा० -चित्त |
मुहा० -चित्र उतारना-चित्र बनाना, चढ़ना-अति प्रिय या अभीष्ट होना ।
तसवीर खींचना, वर्णन आदि के द्वारा ठीक चित्त पर चढ़ना--मन में बसना, बार
ठीक दृश्य सामने उपस्थित कर देना। बार ध्यान में श्राना, स्मरण होना, याद
यो-चित्र काव्य-काव्य के तीन भेदों पड़ना। चित्त बँटना-मन एकाग्र न
में से एक जिसमें व्यंग की प्रधानता नहीं रहना । चित्त में धंसना, जमना, पैठना,
रहती, अलंकार, काव्य में एक प्रकार की बैठना-हृदय में दृढ़ होना, मन में धंसना
रचना जिसमें पद्यों के अक्षर इस क्रम से या गड़ना, समझ में आना, असर करना ।
लिखे जाते हैं कि खड्ग, कमल श्रादि के चित्त से उतरना-ध्यान में न रहना, भूल जाना, दृष्टि से गिरना । चित्त चुराना
श्राकार बन जाते हैं, एक वर्ण वृत्त, मन मोहना। चित्तदेना . ध्यान देना, मन अाकाश, देह पर सफ़ेद दाग़वाला कोद, लगाना । चित्त हटाना-ध्यान या रुचि चित्रगुप्त, चीते का पेड़, चित्रक। वि० हटाना।
अदभुत, विचित्र, चितकबरा, कबरा। चित्तभूमि- संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) योग | चित्रक -- संज्ञा, पु० (सं०) चित्र, तिलक, चीते में चित्त की पाँच अवस्थायें, क्षिप्त, मूढ, का पेड़, चीता, बाव, चिरायता, चित्रकार । विक्षिप्त, एकाग्र, निरुद्ध ।।
"काजर लै भीति हू पै चित्रक बनायौ है" चित्तविक्षेप-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) चित्त चित्रकला-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) चित्र
की चंचलता या अस्थिरता।। | बनाने की विद्या। चित्तविभ्रम-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) चित्रकार-संज्ञा, पु० (सं.) चित्र बनाने
भ्रांति, भ्रम, भौचक्कापन, उन्माद। वाला, चितेरा, मुसौविर । चित्तवृत्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) चित्त | चित्रकारी-- संज्ञा, स्त्री० (हि. चित्रकार -
की गति या अवस्था, मनोवृत्ति । ई० प्रत्य० ) चित्रविद्या, चिन्न बनाने की चित्ता-संज्ञा, पु० दे० (सं० चित्र ) एक | कला, चितेरे का काम।।
पौधा (औषधि) बाघ का सा जन्तु, चीता। चित्रकूट-संज्ञा, पु. ( सं० ) एक प्रसिद्ध चित्ती- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चित्र ) रमणीय पर्वत जहाँ वनवास के समय राम
छोटा दाग़ या चिन्ह, छोटा धब्बा, बँदकी। और सीता ने निवास किया था, चित्तौर। संज्ञा, स्त्री० (हि. चित ) जुएँ खेलने की चित्रगुप्त --- संज्ञा, पु० (सं० ) १४ यमराजों कौड़ी, टैंया ( ग्रा० )।
में से एक जो प्राणियों के पाप-पुण्य का चित्तोद्वग-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) मन का लेखा रखते हैं । "केती चित्रगुप्त जम श्रौधि उद्वेग, विरक्ति, व्याकुलता, धबराहट । कुटि जायगी"-रखा।
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