________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जगन्माहिनी
७०६
जटाधारी जगन्मोहिनी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) “सुविपुल जघना बद्ध नागेंद्र काँची" दुर्गा, महामाया, विश्व-विमोहिनी। -हनु । जगबंद* - वि० ( दे० ) जगद्वंद्य। जघनचपला-संज्ञा, स्त्रो० यौ० (सं.) जगमग, जगमगा--वि० (अनु.) प्रकाशित, श्रार्या छंद का एक भेद ।। जिस पर प्रकाश पड़ता हो, चमकीला, जघन्य-वि० सं० ) अंतिम, चरम, गर्हित चमकदार, जगामग । स्त्री० जामगी। त्याज्य, अत्यन्त बुरा, नीच, निकृष्ट । संज्ञा, जगमगाना-अ० क्रि० ( अनु० ) खूब पु.--शूद्र, नीच जाति । चमकना, झलकना, दमकना। संज्ञा, स्त्री० जचना--अ० कि. (दे० ) अँचना । जगमगाहट-जगमगाने का भाव, चमक ।
जच्चा- संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा० जच्चः ) प्रसूता जगमगी (दे०)।
स्त्री, वह स्त्री जिसके हाल में बच्चा हुश्रा जगरमगर-वि० (दे०) जगमग ।
हो । यौ० ---जच्चाखाना-सूतिका-गृह, जगवाना-- स० क्रि० दे० (हि. जगना)
सौरी (दे० )। जगाने का काम दूसरे से कराना, जगाना ।
जच्छा -संज्ञा, पु० (दे०) यक्ष । 'कारज जगह-संज्ञा, स्त्री० दे० (फा० जायगाह )
सौं उनमत्त भयो इक जच्छ नै खोइ"
-हि० । मेघ० । स्थान, स्थल, मौका, अवसर, पद, मोहदा,
जजमान - संज्ञा, पु० ( दे० ) यजमान । नौकरी, जागह (दे०)।
जजिया-संज्ञा, पु० ( ० ) दंड, एक प्रकार जगाती--संज्ञा, पु० दे० (अ. जकात )
का कर जो मुसलमानी राज्य-काल में अन्य दान, खैरात, महसूल, कर।
धर्म वालों पर लगता था ( इति०)। जगाती--- संज्ञा, पु० दे० (हि. जगात )
जजीरा--संज्ञा, पु० (फा०) टापू, द्वीप । वह जो कर वसूल करे, कर उगाहने का -स. क्रि० दे हि जाट ) धोका काम । “बैठि जगाती चौतरा। देकर कुछ लेना, ठगना 18 - स० कि० दे. जगाना-स० क्रि० दे० (हि. जागना) (सं० जटन ) जड़ना। जागने या जगाने का प्रेरणार्थक रूप, नींद जटल-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० जटिल ) त्यागने को प्रेरणा करना, चेत में लाना, व्यर्थ और झूठ बात, गप्प, बकवाद। होश दिलाना, बोध कराना, फिर से ठीक
जटा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक में उलझे स्थिति में लाना, आग को तेज़ करना,
हुये सिर के बहुत से बड़े बड़े बाल, पेड़ सुलगाना । यंत्र-मंत्र श्रादि का साधन
की जड़ के पतले पतले सूत, झकरा, करना, जैसे मंत्र जगाना । जगाधना (७०)
एक साथ बहुत से रेशे आदि, शाखा, "कान्ह दिवारी की रैन चले बरसाने मनोज
जटामासी, जूट, पाट, कौंछ, केवाँच, वेदको मन्त्र जगावन ।"
पाठ का एक भेद । “जटा कटाह संभ्रम जगार-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० जागना ) निलिंप निरी"-शिव०। जागरण, सब का जाग उठना । जगहर जटाजूट--संज्ञा, पु० ( सं० ) बहुत से लंबे (ग्रा०)।
बालों का समूह, शिव की जटा।। जगीला-वि० दे० (हि० जागना ) जागने जटाधर-संज्ञा, पु० (सं० ) शिव, महादेव ।
के कारण अलसाया हुआ, उनींदा। जटाधारी-वि० (सं० ) जो जटा रखे हो। जवन-संज्ञा, पु. (सं०) कटि के नीचे संज्ञा, पु०-शिव, महादेव, मरसे की जाति आगे का भाग, पेडू, जंघा । नितंब, चूतड़।। का एक पौधा, मुर्ग केश, साधु ।
For Private and Personal Use Only