________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
चित्रना
चिदाभास चित्रना-स० कि० दे० (सं० चित्रण ) चित्रांगदा संज्ञा स्त्री. ( सं० ) अर्जुन की चित्रित करना।
स्त्री और बभ्रुवाहन की माता।। चित्रपट-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह कपड़ा, चित्रा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) २७ नक्षत्रों में
काग़ज, या पटरी जिस पर चित्र बनाया | से १४ वाँ नक्षत्र (ज्यो०), मूषिकपर्णी, जाय, चित्राधार, छींट, सेनिमा (आधु०)।। ककड़ी या खीरा, दंती वृक्ष, गंडदूर्वा, मजीठ, चलचित्र, छाया-चित्र ।
वायविडंग, मूसाकानी, पाखुपर्णी, अज. चित्रपदा - संज्ञा, स्त्री० (सं.) एक छंद। वाइन, एक रागिनी, १५ अक्षरों का एक चित्रमद-संज्ञा, पु० यो० (सं० ) किसी । वर्णवृत्त (पिं० ।। स्त्री का अपने प्रेमी का चित्र देख विरह- वित्रिणी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) पद्मिनी आदि भाव दिखाना (नाटक)।
स्त्रियों के चार भेदों में से एक । चित्रमग-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) चित्तीदार चित्रित-वि० (सं० ) चित्र में खींचा या हिरन, चीतल ( दे०)।
दिखाया हुआ, बेल-बूटेदार, जिस पर चित्रयोग--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) बुड्ढ़े चित्तियाँ या धारियाँ आदि हों। को जवान और जवान को बुड्ढा या नपुंसक चित्रोक्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) अलंबना देने की विद्या या कला।
कार युक्त भाषा में कहना, व्योम, आकाश । चित्ररथ-संज्ञा, पु० (सं० ) सूर्य । चित्रोत्तर-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) एक चित्रलेखा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) एक ! काव्यालंकार जिसमें प्रश्न ही के शब्दों में
वर्ण वृत्त, चित्र बनाने की कलम या फँची। उत्तर या कई प्रश्नों का एक ही उत्तर होता चित्रविचित्र-वि० यौ० (सं० ) रंगविरंगा, है (अ० पी०)। कई रंगों का बेल-बूटेदार।
चिथड़ा--संज्ञा, पु० दे० (सं० चीर्ण या चीर) चित्रविद्या--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) चित्र फटा-पुराना कपड़ा, लत्ता, लगुरा, गुदरा बनाने की विद्या।
(ग्रा० )। चित्रशाला-संज्ञा, स्त्रो० यौ० । सं० ) वह
चिथाड़ना--स० कि० दे० (सं० चीर्ण ) घर जहाँ चित्र बनते या रखे हों या जहाँ
चीरना, फाड़ना, अपमानित करना, लिथारंग-विरंग की सजावट हो।
डना, चिथोड़ना चित्थारना। संज्ञा स्त्री०
चित्थाड़। चित्रसारी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० चित्र।
चिद् ---संज्ञा, पु० (सं० ) चैतन्य, सजीव, शाला) वह घर जहाँ चित्र टँगे या दीवार पर __ जीवधारी। बने हों, सजा हुआ विलास-भवन, रंगमहल । निदाकाश--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चैतन्य, चित्रहस्त-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) वार,
अाकाश, ब्रह्म, परमात्मा, शिव । " चिदाहथियार चलाने का एक हाथ ।
काशमाकाशवासं भजेऽहं"-रामा० । चित्रांग- वि० यौ० ( सं० ) जिसके शरीर चिदात्मा-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) ब्रह्म, पर चित्तियाँ या धारियाँ आदि हों । स्त्री. ज्ञानरूप । चित्रांगी । संज्ञा, पु०-चित्रक, चीता चिदानन्द-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) आनन्द
(दे० ) एक सर्प, चीतल (दे० ) इंगुर। रूप, ब्रह्म, शिव । "चिदानन्द संदेह मोहाचित्रांगद-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) राजा पहारी"- रामा० ।
शान्तनु के पुत्र जो सत्यवती के गर्भ से चिदाभास-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चैतन्यउत्पन्न हुये और इसी नाम के गंधर्व से युद्ध स्वरूप परमात्मा का आभास या प्रतिबिम्ब में मारे गये ( महा० )।
जो अंतःकरण पर पड़ता है, जीवात्मा।
For Private and Personal Use Only