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चिमटा
चिरौंजी कर दृढ़ता से पकड़ना, गुथना, पीछा या चिरना-अ० कि० दे० ( सं० चीर्ण) फटना, पिंड न छोड़ना।
सीध में कटना, लकीर के रूप में घाव होना। चिमटा -- संज्ञा, पु० दे० (हि. चिमटना ) | चिरमिटी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) गुंजा, एक यंत्र जिससे उस स्थान पर की वस्तुओं | धुंधुची । को पकड़ कर उठाते हैं जहाँ हाथ नहीं ले चिरवाई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० चिरवाना) जा सकते, दस्त-पनाह, कर-रक्षक । स्त्री० चिरवाने का भाव, कार्य या मज़दूरी। अल्पा० चिमटी । “चाह चिमटी हूँ सों | चिरवाना-स० कि० ( हि० चरिता का प्रे०) न बँचे खसकत है'-रत्ना।
चीने का काम कराना, फड़वाना । चिमटाना-स० कि० दे० ( हि० चिमटना )
चिरस्थायी-वि० यौ० (सं० चिर स्थायिन् ) चिपकाना, सटाना, लिपटाना।
बहुत दिनों तक रहने वाला, दृढ़। चिमड़ा--वि० (दे० ) चीमड़, कठिनता
चिरस्मरणीय-वि० यौ० (स० ) बहुत से टूटने वाला। चिरंजीव-वि० यौ० ( सं० ) बहुत काल
दिनों तक स्मरण रखने योग्य, पूजनीय । तक जीते रहो, पाशीर्वाद का शब्द यौ०
चिरहटाा-संज्ञा, पु० ( दे. ) चिड़ीमार । चिरंजीवी भव, भूयात् ।।
चिराई-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. चोरना) चिरंतन वि० ( सं० ) पुराना।
चीरने का भाव, क्रिया या मज़दूरी, चिर-वि० (सं० ) बहुत दिनों तक रहने ।
चिरवाई। वाला । क्रि० वि० बहुत दिनों तक । संज्ञा,
चिराग-संज्ञा, पु० (फा० ) दीपक, दिया। पु० तीन मात्रामों का ऐसा गण जिसका
__ " था वही ले दे के उस घर का चिराग़ " प्रथम वर्ण लघु हो।
चिराना–स० क्रि० (हि. चीरना का प्रे० चिरई -- संज्ञा, स्त्री. ( दे० ) चिड़िया, रूप) चीरने का काम दूसरे से कराना, चिरैय्या ( दे० )। " गगन चिरैय्या उड़त | फड़वाना लखावति'-सू०।
चिरायध--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चर्म + चिरकना-अ. नि० दे० ( अनु० ) थोड़ा गंध ) चमडे, बाल, मांस श्रादि के जलने थोड़ा मल निकालना या हगना।
की दुर्गधि । चिरकाल --- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) दीर्घ चिरायता--संज्ञा, पु० दे० (सं० चिरतिक्त या काल, बहुत समय । वि० चिरकालीन
चिरात् ) एक कड़वा पौधा (औष० )। बहुत समय का।
चिरायु-- वि० यौ० (सं० चिरायुस् ) बड़ी चिरकीन-वि० (फा० ) गेंदा ।
उम्र वाला, दीर्घायु । चिरकुट-संज्ञा, पु० दे० सं० दिर। कुट्ट = | चिरारी- संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) चिरौंजी ।
काटना) फटा-पुराना कपड़ा, चिथड़ा, गूदड़। चिरया - संज्ञा स्त्री० (दे०) चिड़िया । चिरचिटा--- संज्ञा, पु० (दे० ) चिचड़ा, अपामार्ग।
चिरिहार--संज्ञा, पु० ( दे० ) चिड़ीमार । चिरजीवी-वि० यौ० (सं० ) बहुत दिनों चिरेता-संज्ञा, पु० (दे० ) एक औषधि,
तक जीने वाला, अमर । संज्ञा, पु० ----विष्णु, कैफर कायफल । कौत्रा, मार्कंडेय ऋषि, अश्वत्थामा, वलि, चिरौंजी--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चार+वीज) व्याल, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और पियाल वृक्ष के फलों के बीजों की गिरी परशुराम चिरजीवी माने गये हैं, (पु.)।। (मेवा)।
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