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छादित छाछ-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० एच्छिका )। दुख से कलेजा दहल जाना, मानसिक मक्खन निकाला पनीला दूध या दही, व्यथा होना, ईर्ष्या से हृदय व्यथित होना, मट्ठा, मही, छांछी (दे० ) " चहिय जलन होना। छाती पीटना-दुख या अमिय जग जुरै न छाँछी"--रामा० । शोक से व्याकुल होकर छाती पर हाथ "पीवत छाँछहि कि"-
पटकना। छाती फटना (विदरना)बाज-संज्ञा, पु० दे० (सं० छाद) अनाज दुख से हृदय व्यथित होना, लजा या संताप फटकने का सींक का बरतन, सूप, छाजन, होना । “बल बिलोकि विदरति नहिं छप्पर, छज्जा, शोभा। "पूंछ बाँधियो
छाती"-रामा० । छाती से लगानाछाज"-वृं। " श्रोही छाज छत्र अरु आलिंगन करना, गले लगाना । वज्र की पाटू"-१०।
छातो--कठोर हृदय जो दुःख सह सके, छाजन-संज्ञा, पु० दे० (सं० छादन)
सहिष्णु हृदय । कलेजा, हृदय, मन, जी। आच्छादन, वस्त्र, कपड़ा । यो०-भाजन
मुहा०-छाती जलना--अजीर्ण आदि छाजन - खाना-कपड़ा। संज्ञा, स्त्री० दे०)
के कारण हृदय में जलन होना, शोक से छप्पर, छानी, खपरैल, छाने का काम या
हृदय व्यथित या सन्तप्त होना, डाह या ढंग, छवाई।
जलन होना। छाती जडाना-(दे०) हाजना--अ. क्रि० दे० (सं० छादन ) शोभा देना, अच्छा या भला लगना,
छाती ठंढी करना। छाती ठंढी करनाफबना । वि० छाजित । “माथे मोर-मुकुट
चित शान्त और प्रफुल्लित करना, मन अति छाजत"- स्फु० ।
की अभिलाषा पूर्ण करना। छाती धड़छाजा*-संज्ञा, पु० (दे०) छन्जा ।
कना (धरकना )-खटके या भय से प्र० कि० (दे०) शोभा देता है। "जो
कलेजा जल्दी जल्दी उछलना, जी दहलना । कुछ करहिं उन्हें सब छाजा"--रामा० ।।
छाती पसीजना--मन में करुणा आना, छात*-संज्ञा, पु० (दे० ) छाता, छत ।।
स्तन, कुच, हिम्मत, साहस । मुहा०छाता-संज्ञा, पु० दे० (सं० छत्र ) बड़ी |
छाती ठोंक कर-साहस करके। छतरी, छत्र, मेह, धूप आदि से बचने के छात्र-संज्ञा पु० (सं०) शिष्य, चेला । यौ०लिये पाच्छादन, खुमी।
छात्र-धर्म। छाती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० छादिन् ) छात्रवृत्ति-संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) वह वृत्ति हड्डी या ठठरियों का पल्ला जो पेट के या धन जो विद्यार्थी को विद्याभ्यास के उपर गर्दन तक होता है, सोना, वक्षस्थल । सहायतार्थ दिया जाय। "तोहिं देखि सीतल भई छाती"--रामा। छात्रालय-संज्ञा पु० यौ० (सं०) विद्या. मुहा०-छाती कड़ी या पत्थर की करना र्थियों के रहने का स्थान, वोर्डिंग हाउस
-भारी दुःख सहने के लिये हृदय कठोर हास्टिल (अं०) छात्रावास । करना । छाती पर मँग या कोदो दलना छादन--संज्ञा पु. (सं० ) छाने या ढकने
-किसी को कठोर बात कहना, दिल का काम, जिससे छाया या ढाका जाय । दुखाना, उपद्रव करना । छाती पर होला प्रावरण, आच्छादन, छिपाव, वन । ( वि. भूनना--पास ही उपद्रव करना, दुख छादित ) यो०---भोजन-छादन । देना । शती पर पत्थर रखना- छादान-संज्ञा पु० (दे०) जल-पात्र, मसक । दुख सहने के लिये हृदय कठोर करना। छादित-वि० (सं० छादन ) ढका हुआ, छाती पर सांप लोटना या फिरना- आच्छादित । वि० छादनी ।
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