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चढ़ाव
चतुर्दशी ऐसा काम करना जिससे मन चढ़े, पी जाना, प्रत्य०) चतुराई, प्रवीणता । संज्ञा, स्त्री. भेंट करना, उन्नत करना, प्रशंसा करना, चातुरी । संज्ञा, पु० ( दे०) चतुरपना । बढ़ावा देना, बाढ़।
चतुरस्र--वि० (सं० ) चौकोर । चढ़ाव--संज्ञा पु० (हि. चढ़ना ) चढ़ने की चतुरसमां--संज्ञा, पु० (दे०) चतुस्सम । क्रिया का भाव, देवार्पित वस्तु, चढ़ाई । | चतुराई --- संज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० चतुर + भाईयौ० चढ़ाव-उतार-ऊँचा-नीचा स्थान, प्रत्य० ) होशियारी, निपुणता, दक्षता, बढ़ने का भाव, वृद्धि, बाढ़, न्यूनाधिक्य धूर्तता, चालाकी । “सुन रावण परिहरि यौ० चढ़ाव उतार-एक सिरे पर मोटा चतुराई ".---रामा ।
और दूसरे सिरे की अोर क्रमशः पतले होते चतुरानन संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) चार जाने का भाव गावदुम प्राकृति, चढ़ावा, मुख वाले ब्रह्मा जी । " चतुरानन बाइ वह दिशा जिधर से नदी की धारा भाई हो रह्यौ मुख चारौ"-के० । (बहाव का उलटा )।
चतुराश्रम--संज्ञा पु० यौ० (सं०) चार चढावा-संज्ञा पु० दे० (हि० चढ़ाना) आश्रम-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वाणप्रस्थ, संन्यास।
दूल्हे की ओर से दुलहिन को विवाह के चतुरास--संज्ञा स्त्री. यो. (सं० ) चारों दिन पहिनाया गया गहना, किसी देवता दिशा, चारों ओर। पर चढ़ाई गई वस्तु, पुजापा, बढ़ावा, दम। चतुरासी--वि० दे० (हि० चतुर+अस्सी) मुहा०-चढ़ावा-बढ़ावा देना-उत्साह | चौरासी, चौरासी लाख योनि । बढ़ाना, उसकाना, उत्तेजित करना। चतुरिद्रिय-संज्ञा, पु० यो० (सं०) चार चढ़त, चढता-संज्ञा, पु० दे० (हि० चढ़ना) इन्द्रियों वाले जीव जैसे मक्खी, धादि। चढ़ाई करने या धावा मारने वाला, सवार, चतुरुपवेद-संज्ञा, पु. यो० (सं०) चार घोड़ा फेरने वाला।
उपवेद, धनुर्वेद, आयुर्वेद, गंधर्वेद, शिल्प चणक-संज्ञा, पु० (सं० ) चना । चतुरंग---संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वह गाना चतुर्गुण- वि० यो० (सं०) चौगुना, चार जिस में चार प्रकार के बोल गठे हों, सेना गुणों वाला । "पूर्ण के मूल को घात के चार अँग, हाथी, घोड़े, रथ, पैदल। चतुर्गुण"-कुं० वि० ला० । यौ० खो० चतुरंगिणी सेना । शतरंज, चतुर्थ--वि० (सं० ) चौथा। संज्ञा पु. "राघव की चतुरंग चमूचय धूरि उठी" यौ० (सं० ) चतुर्थाश-चौथाई।। -रा. चं० ।
चतुर्थाश्रम-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) चौथा चतुरंगिणी-वि० स्त्री० (सं० ) चार अंगों आश्रम, संन्यास । वाली सेना, चतुरंग चम्।
चतुर्थी--संज्ञा, स्त्री. (सं० ) किसी पक्ष चतुर-वि. पु. (सं० ) ( स्त्री. चतुरा) की चौथी तिथि, चौथ (दे०) विवाह के टेढ़ी चाल चलने वाला, वक्रगामी, तेज़, चौथे दिन का संस्कार। फुरतीला, प्रवीण, निपुण, धूर्त, चालाक । चतुर्दश-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) चार संज्ञा, पु० श्रृंगार रस में नायक का एक और दश अर्थात् चौदह, १४ विद्या, १४ भेद । चातुर (दे०) संज्ञा, स्त्रो० चतुरई, भुवन । चतुराई।
चतुर्दशी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) किसी पक्ष की चतुरता-संज्ञा, स्त्री. (सं० चतुर+ता | चौदहवीं तिथि, चौदस (दे०)।
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