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चंग
घोड़ी प्रत्य०) छोटी घोड़ी, दीवार में गड़ी खूटी, अहीर, गोशाला, तट, किनारा, आवाज़, छज्जे का भार सँभालने वाली टोड़ो। | नाद, गरजने का शब्द, शब्दों के उच्चारण घोड़ी-संज्ञा, स्त्री० (हि. घोड़ा ) घोड़े की में एक प्रयत्न । मादा, पायों पर खड़ी काठ की लम्बी पटरी, | घोषणा-संज्ञा, स्रो० (सं० ) उच्च स्वर से पाट, विवाह में दूल्हा के घोड़ी पर चढ़ | किसी बात की सूचना, राजाज्ञा आदि का कर दुलहिन के घर जाने की रीति । । प्रचार, मुनादी या डुग्गी, ढिंढोरा । घोर-वि० (सं० ) भयंकर, भयानक, विक- | घोषणा-पत्र-सर्वसाधारण के सूचनार्थ राल, घना, दुर्गम, कठिन, कड़ा. गहरा. राजाज्ञा-पत्र, गर्जन, ध्वनि, शब्द, आवाज़ । गादा, बुरा, बहुत ज़्यादा । संज्ञा, स्त्री० (सं० | घोषणीय-वि. (सं०) प्रचारित करने घुर) शब्द, गर्जन, ध्वनि ।
| योग्य, प्रकाशनीय, सूचनीय । घोरना-प्र. क्रि० दे० (सं० घोर) भारी घोसी-संज्ञा, पु. ( सं० घोष ) अहीर ।
शब्द करना, गरजना, घोलना, कष्ट देना। घौद-संज्ञा, पु. ( दे० ) फलों का गुच्छा। घोरिला*-संज्ञा, पु० (हि० घोड़ी) लड़कों घौदा-संज्ञा, पु० (दे० ) चुटैल, पाहत ।
के खेलने का घोड़ा ( मिट्टी श्रादि का) घ्राग-संज्ञा, स्त्री. (सं० वि० प्रेय ) नाक घोल-संज्ञा, पु० ( हि० घोलना ) घोल कर | के सूंघने की शक्ति, सुगंधि। बनाया गया पदार्थ ।
घ्राणेन्द्रिय-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० घाण + घोलना-स० क्रि० (हि. घुलना ) पानी इन्द्रिय) नासिका, नाक, गंध लेने की इन्द्रिय।
या किसी द्रव पदार्थ में किसी वस्तु को | घ्रात-वि० (सं०) गृहीत गंध, पुष्प आदि हिला कर मिलाना, हल करना, घोरना का गन्ध लेना । (विलो-अनाघ्रात )। (दे०)।
घ्रायक-वि० (सं० ) गन्ध-ग्राहक, सूंघने घोष-संज्ञा, पु० (सं० ) अहीरों की बस्ती, । वाला।
ङ-संस्कृत और हिन्दी में कवर्ग का अंतिम ङ- संज्ञा, पु० (सं० ) सूंघने की शक्ति, स्पर्श वर्ण, जिसका उच्चारण स्थान कंठ गंध, सुगंधि, भैरव ।
और नासिका है । "नमणनानाम् नासिका च"।
च-संस्कृत या हिन्दी भाषा की वर्णमाला चंक्रमण-संज्ञा, पु० (सं०) इधर-उधर का २२ वाँ अक्षर, द्वितीय वर्ग का प्रथम घूमना, टहलना। वर्ण जिसका उच्चारण स्थान तालु है। चंग-संज्ञा, स्त्री० दे० (फा०) डफ़ के श्राकार "इचुयशानाम् तालु"।
का एक छोटा बाजा । संज्ञा, पु०-गंजीफ़ा का चंक्र—वि० (सं० चक्र) पूरा पूरा, समूचा, रङ्ग । संज्ञा, स्त्री० (सं० चं चन्द्रमा) पतङ्ग, सारा, समस्त ।
गुड़ी। "नीच चंग सम जानिये" -तु० ।
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