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चक्की पहिया, चाका, पहिये सी गोल वस्तु, बड़ा चक्रवर्ती वि० (सं० चक्रवर्तिन् ) श्रासचिपटा टुकड़ा या कतरा।
मुद्रांत भूमि पर राज्य करने वाला, सार्वचक्की-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० चक्री ) श्राटा भौमराजा, चक्कवइ, चक्कचे ( दे०) स्त्री० पीसने या दाल दलने का यंत्र, जाँता। चक्रवर्तिनी।। "घर की चक्की कोई न पूजै"--कवी०। चक्रवाक-संज्ञा, पु० (सं० ) चकवा पक्षी। मुहा०-चक्की पीसना-कड़ा परिश्रम | यौ० चक्रवाक-बन्धु-सूर्य । “देखिय करना । संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चक्रिका ) पैर
चक्रवाक खग नाही"-रामा० । के घुटने की गोल हड्डी, बिजली, वन ।।
चक्रवात-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वेग चक्कू-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) चाकू, छुरी।।
से चक्कर खाती हुई वायु, वात-चक्र, चक्र--संज्ञा, पु. (सं.) पहिया, चक्का,
बवंडर। चाका (दे०) कुम्हार का चाक चक्की,
चक्रवृद्धि- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) व्यान जाँता, तेल पेरने का कोल्हू, पहिये सी
पर भी व्याज लगाने का विधान, सूद दर गोल वस्तु, एक पहिये सा लोहे का अस्त्र,
सूद, व्याज पर व्याज । विष्णु ( कृष्ण ) का अस्त्र, पानी का
चक्रव्यूह-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) प्राचीन भँवर, वायुचक्र, ववंडर, समूह, मंडली, |
युद्ध में किसी व्यक्ति या वस्तु की रक्षा एफ व्यूह या सेना की स्थिति, मंडल, प्रदेश,
के लिये उसके चारों ओर कई घेरों में सेना राज्य, एक सिन्धु से दूसरे तक फैला हुश्रा |
की चक्करदार या कुंडलाकार स्थिति । प्रदेश, पासमुद्रांत भूमि, चक्रवाक, चकवा,
चक्रा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) समूह, गिरोह । योग के अनुसार शरीरस्थ पद्म, अँगुलियों चक्रांकित-संज्ञा, पु० या० (सं० चक्र+ के सिरों पर चक्र चिह्न ( सामु०) फेरा,
अंकित ) बाहु पर चक्र-चिन्ह छपाये वैष्णव, भ्रमण, घुमाव, चक्कर, दिशा, प्रांत, एक
रामानुजानुयायी। वर्ण वृत्ति । यौ० काल-चक्र ।
चक्रायुध-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) विष्णु, चकतीर्थ-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) दक्षिण
कृष्ण, चक्रधारी। में ऋष्यमूक पर्वतों के बीच तुंगभद्रा नदी के
चक्रित*-वि० (सं०) चकित ।। घुमाव पर एक तीर्थ, नैमिषारण्य का कुंड।
चक्री-संज्ञा, पु० (सं० चकिन् ) चक्रधारी चक्रधर-वि० यौ० (सं.) जो चक्र धारण
विष्णु, गाँव का पंडित वा पुरोहित, चक्रकरे ! संज्ञा, पु० (सं० ) विष्णु, श्रीकृष्ण,
वाक, कुम्हार, सर्प, जासूस, मुखविर, चर,
तेली, चक्रवर्ती, चक्रमई, चकवड़ । बाज़ीगर, इन्द्र-जाल करने वाला, कई ग्रामों या नगरों का स्वामी । चक्रधारी।
चक्रेला--वि० (सं०) चकाकार, गोल : चक्रपाणि-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) विष्णु,
चतु-संज्ञा, पु० ( सं० चक्षुस् ) दर्शनेंद्रिय,
आँख, चख, वर्तमान पाकसस या चेहूँ नदी। श्री कृष्ण।
चनुष्य-वि० (सं०) नेत्र-हितकारी औषधि चक्रपूजा-संज्ञा, स्त्री० या० (सं०) तांत्रिकों
आदि, सुन्दर, नेत्र-सम्बन्धी, चाक्षुष ।। की एक पूजा विधि ।
चख -संज्ञा, पु० दे० (सं० चक्षुस्) आँख । चक्रमर्द-संज्ञा, पु० (सं० ) चकवँड (दे०)। संज्ञा, पु. (फ़ा०) झगड़ा, कलह । वक्रमद्रा-संज्ञा, स्त्री. यो. (सं०) चक्र यौ०-खचख-तकरार, कहा सुनी,
आदि विष्णु के श्रायुधों के चिन्ह जो वैष्णव | व० ब०-चखन-"दिये लोभ चसमा अपने बाहु श्रादि अंगों पर छपवाते हैं। चखन"-वि०। भा० श. को०-८०
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