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गणेश
गणेश – संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) शिव-पुत्र गणपति, जिनका शरीर तो मनुष्य का सा और मुख हाथी का सा है, वे मंगल कार्यों में प्रथम पूज्य और विघ्न नाशक हैं, विद्या बुद्धि के देने वाले हैं।
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गराय - संज्ञा, पु० (सं० ) गिनने योग्य | जिसे लोग प्रति योग्य समझें प्रतिष्ठित, विख्यात । यौ०—गण्य - सब से प्रथम गिनने योग्य, प्रधान । यौ० गरायमान्य-प्रतिष्ठित, सम्मानित ।
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गत - वि० (सं० ) गया हुआ, बीता हुआ, गुज़रा हुआ, मरा हुआ, रहित, हीन, विगत । ( विलो ० - भागत ) | संज्ञा, स्त्री० (सं० गति ) अवस्था, दशा, गति 1 मुहा०—गत बनाना - दुर्दशा करना । रूप, रंग, वेष । काम में लाना, सुगति, उपयोग, कुगति, दुर्गति, नाश । बाजों के बोलों का कुछ क्रम-वद्ध मिलना, नाच में शरीर का विशेष संचालन और मुद्रा, नाचने का ठाठ, स्वरों का साम्यपूर्ण प्रवाह |
गतका - संज्ञा, पु० (सं० गत) लकड़ी खेलने का दण्ड़ा जिसके ऊपर चमड़े की खोल चढ़ी रहती है ।
गतांक - वि० संज्ञा पु० यौ० (सं०) समाचार - पत्र का पिछला अंक गया, बीता, गुज़रा, निकम्मा ।
गति - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) चाल, गमन, हिलने-डोलने की क्रिया, हरकत, स्पन्द, अवस्था, दशा, हालत, रूप, रंग, वेष पहुँच, प्रवेश, पैठ. प्रयत्न की सीमा, अन्तिम उपाय, दौड़, तदबीर, सहारा, अवलम्ब, शरण, चेष्टा, प्रयत्न, लीला, माया, ढंग, रीति, मृत्यु के पीछे जीव की दशा, मोक्ष, मुक्ति, लड़ने वालों के पैर की चाल, पैतरा | गत्ता - संज्ञा पु० ( देश० ) काग़ज़ के कई
गदर - पचीसी
परतों को मिलाकर बनी हुई दफ़ती, कुट, गाता (दे० ) । गत्ताल खाता - संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० गर्त प्रा० गत+ खाता हि० ) बट्टा - खाता, खोई हुई या गई- बीती रक़म का लेख । गथ गत्थ - संज्ञा, पु० दे० (सं० ग्रन्थ ) धन, पूँजी, जमा, माल, झुंड, " माल बिन गथ पाइये - रामा० ।
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गथना- क्रि० स० दे० (सं० ग्रंथन ) एक में एक जोड़ना, आपस में गूंधना, बात गढ़ना, बात बनाना ।
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गढ़-संज्ञा, पु० (सं० ) विष, रोग, श्रीकृष्ण चन्द्र का छोटा भाई | संज्ञा, पु० ( अनु० ) वह शब्द जो किसी गुलगुली वस्तु पर या गुलगुली वस्तु का आघात लगने से होता है । गद्द (दे० ) यौ० गद-बद -
गद गद शब्द ।
गदका - संज्ञा, पु० (दे० ) " गतका 99 1 गदकारा - वि० पु० ( अनु० गद + काराप्रत्य० ) ( स्त्री० गदकारी ) नम्र, मुलायम, गुलगुला, दब जाने वाला पदार्थ, नरम | " गोरी गदकारी परै हँसत कपोलन गाद" । गदगद - वि० दे० ( सं० गद्गद ) गदगद वचन कहति महतारी रामा० । गढ़ना - स० क्रि० (सं० गदन ) कहना, बोलना |
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ग़दर - संज्ञा, पु० ( अ० ) हलचल, बलवा, खलबली, उपद्रव, क्रांति (सं० ) | संज्ञा, पु० (दे० ) गदगद शब्द करके गिरना, चलना, यौ० गदर-बदर | गदराना - प्र० क्रि० दे० (अनु० - गद) ( फल आदि का ) पकने पर होना, नवानी में अंगों का भरना, आँखों में कीचड़ आदि का थाना । वि० गदरा - गदराया हुआ । स्त्री० वि० गदरी ।
गदर - पचीसी -- संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि० गदहा + पचीसी ) १६ से २५ वर्ष तक की अवस्था
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