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कान।
गोलाई
गोसाई है, काँड़ी, बल्ला, रस्सी, सूत आदि की गोल गोवशा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) बंध्या या पिंडी, पिंडा । स्त्री० अल्प० गोली। बहिला गाय । गोलाई-संज्ञा, स्त्री. ( हि० गोल+ आई। गोविंद-संज्ञा, पु० (सं.) श्रीकृष्ण, वेदान्त
प्रत्य० ) गोल का भाव, गोलापन। वेत्ता, तत्वविद् । गोलाकार-गोलाकृति-वि० यौ० (सं०) गोश-संज्ञा, पु० (फ़ा० ) सुनने की इंद्रिय, जिसका आकार गोल हो, गोल शक्ल वाला। | गोलाध्याय --संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ज्योतिष गोश-गुज़ार-संज्ञा, पु० यौ० ( फा० ) विद्या, ज्योतिष का एक ग्रंथ ।।
सुनाना, कहना का कर्ता । गोलार्द्ध-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) गोले गोशमाली--संज्ञा, स्त्री. (फा० ) कान का आधा भाग, पृथ्वी का प्रार्ध भाग जो उमेठना, ताड़ना, कड़ी चेतावनी देना। ध्रुवों के बीचों बीच से काटने पर बने । गोशवारा .. संज्ञा, पु० (फा० ) खंजन नामक गोली-संज्ञा, स्त्री० (हि० गोला का अल्पा०) पेड़ का गोंद, कान का बाला, कुण्डल, छोटा गोलाकार पिंड, बटिका, बटिया, सीप का अकेला बड़ा मोती, कलाबत्तू औषधि की बटिका, बटी, खलने की मिट्टी, से बना हुआ पगड़ी का अंचल, तुर्रा, काँच आदि का छोटा गोला, गोली का कलगी, सिरपंच, मीज़ान, जोड़, वह संक्षिप्त खेल, सीसे आदि का ढला हुआ छोटा । लेख जिसमें हर एक मद का अाय व्यय गोल पिण्ड जो बन्दूक में भर कर चलाया | पृथक् पृथक् लिखा गया हो (पटवारी० )। जाता है, छर्रा । वि० स्त्री० गोलाकार।
गोशा--संज्ञा, पु० (फा० ) कोना, अन्तराल, गोलोक-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सब लोकों
__एकान्त स्थान, तरफ़, दिशा, भोर, कमान से ऊपर, श्रीकृष्ण जी का निवास स्थान । की दोनों नोकें, धनुष्कोटि । “ पीतम चले मुहा०—गालोक वासी होना.... मर कमान, मोंकहँ गोशा सौंपिक --स्फु० । जाना। वि० गोलीक वासी-स्वर्गीय, गोशाला संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) गायों मृत, मरा हुआ।
के रहने का स्थान, गोष्ट, गो-स्थान । गोलोमा-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) औषधि
गोश्त-संज्ञा, पु. (फ़ा० ) मांस । यौ० विशेष, बच।
गोश्तखोर-मांस-भक्षक ! गोवध-संज्ञा, पु० यो० (सं० ) गोहत्या, गौ का वध । संज्ञा, पु० गोवधिक।
| गोष्ट-संज्ञा, पु० (सं०) गोशाला, परामर्श, गोवना-स० क्रि० ( दे० ७.) छिपाना, सलाह, दल, मंडली।
लुकाना, ढाँकना, गाना (व.)। गोष्टी--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) बहुत से लोगों गोवर्द्धन-संज्ञा, पु० (सं०) वृन्दावन का का समूह, सभा, मंडली, समाज, वार्तालाप, एक पवित्र पर्वत जिसे श्री कृष्ण जी ने व्रज बातचीत, एक अङ्क का एक रूपक-भेद रक्षार्थ अँगुली पर उठाया था।
( नाट्य० )। गोवर्द्धनधारी-संज्ञा, पु. (सं.) श्री. गोसमावल- संज्ञा, पु० (दे०) गोशवारा । कृष्ण जी, गिरिधारी।
गोसाई-संज्ञा, पु० दे० (सं० गोस्वामी ) गोवर्द्धनाचार्य-संज्ञा, पु. ( सं० ) श्री गायों का स्वामी या अधिकारी, ईश्वर, नीलाम्बरात्मज संस्कृति के एक कवि जो संन्यासियों का एक संप्रदाय, विरक्त, साधु, शृंगार रस की कविता में सिद्ध-हस्त थे अतीत, प्रभु, गोसैयां (ग्रा.)। " धर्म ( १२ वीं शताब्दी)।
हेतु अवतरेहु गोसाँई "-रामा० ।
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