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ग्रहपति ६०१
ग्लान किसी मनुष्य की अच्छी या बुरी अवस्था, | दोष, अश्लील शब्द या वाक्य, जैसे-मैथुन, अभाग्य, कमबख़्ती।
स्त्री प्रसंग आदि के सूचक । ग्रहपति-संज्ञा० पु० यौ० (सं० ) सूर्य, | ग्राम्यधर्म--संज्ञा पु० यौ० (सं० ) मैथुन, शनि, आकाश का पेड़।
स्त्री प्रसंग। ग्रहवेध-संज्ञा०, पु० यौ० (सं० ) ग्रह की | ग्राव--संज्ञा पु० (सं०) पत्थर, पर्वत, श्रोला। स्थिति आदि का जानना।
ग्रास-संज्ञा पु० (सं०) एक बार मुँह में डालने ग्रहस्थापन--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नवग्रहों योग्य भोजन, कौर, निवाला, गस्सा (दे०) की स्थापना, एक पूजा विशेष ।
पकड़ने की क्रिया, पकड़, ग्रहण लगना । ग्रहीत-वि० (सं०) गृहीत, पकड़ा हुआ। " मधुर ग्रास लै तात निहोरे' व्र० वि०।
" ग्रह ग्रहीत पुनि बात-बस"-रामा। ग्रासक-वि० (सं० ) पकड़ने या निगलने ग्रहीता-वि० (सं०) ग्रहण-कर्ता, ग्राहक, | वाला, छिपाने वा दबाने वाला।
पकड़ा हुआ । स्त्री० ग्रहण की हुई। ग्रासना-स० कि० (दे०) ग्रसना, भक्षण ग्रांडील-वि० (अं० ग्रेडियर ) लम्बे और | _करना।
ऊँचे कद का, बहुत बड़ा या ऊँचा। ग्राह -- संज्ञा पु० (सं० ) मगर, घड़ियाल, ग्राम-संज्ञा, पु. (सं० ) छोटी बस्ती, गाँव। ग्रहण, उपराग, पकड़ना, लेना। गाम ( दे० ) मनुष्यों के रहने का स्थान, |
ग्राहक-संज्ञा पु० (सं० ) ग्रहण करने या बस्ती, श्राबादी, जनपद, समूह, ढेर, शिव,
मोल लेने वाला, ख़रीदार, लेने या पीने की क्रम से सात स्वरों का समूह, स्वर-सप्तक
इच्छा वाला, चाहने वाला, बँधा दस्त (संगी०) स, र, ग, म, प, ध, नी, आदि ।
लाने की औषधि, गाहक (दे०)। " गिरिग्राम लै लै हरिग्राम मारै ।”
नाही-संज्ञा पु. ( सं० ) ( स्त्री० ग्राहिणी) " स्फुटी भवद् ग्राम विशेष मुर्छनाम् " |
ग्रहण या स्वीकार करने वाला, मलावरोधक -माघ।
पदार्थ । ग्रामणी-संज्ञा, पु० (सं.) गाँव का स्वामी,
ग्राह्य–वि० (सं० ) लेने या स्वीकार करने मुखिया (दे० ) प्रधान, अगुवा।
योग्य, जानने योग्य ।
ग्रीखम-संज्ञा स्त्री० (दे० ) ग्रीषम, ग्रीष्म ग्रामदेवता-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) किसी
(सं० )..." भीषम सदैव रितु ग्रीखम बनी एक गाँव में पूजा जाने वाला देवता, गाँव
रहै"- रत्ना० का रक्षक, देवता, डीहराज, ग्राम-देव ।
ग्रीवा-संज्ञा स्त्री० (सं० ) गर्दन, गला । ग्रामिक-वि० (सं० ) ग्राम का, देहाती, |
__ "उर मनि-माल कंबु कल ग्रीवा'-- रामा०। गँवइँया।
ग्रीष्म- संज्ञा स्त्री० ( सं० ) गरमी की ऋतु, प्रामीण-वि० (सं०) देहाती, गवार, मूर्ख ।
जेठ असाढ़ का समय, उष्ण, गरम । ग्रामेश-संज्ञा पु. यौ० (सं० ग्राम + ईश) वेय-संज्ञा पु. (सं० ) कंठभूषण, कंठा,
गाँव का मालिक, ज़मीदार, ग्रामपति । हँसुली आदि। ग्राम्य-वि० (सं० ) गाँव से सम्बन्ध रखने ग्लपित-वि० (सं.) श्रवसन्न,थकित, श्रान्त । वाला, ग्रामीण, मूर्ख, बेवकूफ़, प्राकृत, ग्लह- संज्ञा पु० (सं०) जुए की बाजी पण, असली । "अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है" | दाँव । मै० श० । संज्ञा पु० (सं० ) काव्य में भद्दे | ग्लान-वि० (सं० ) रोगद्वारा दुर्बल शरीर, या गँवारू ( ग्रामीण ) शब्दों के आने का रोगी, खिन्न, कमजोर, उद्विग्न, लज्जित । भा० श० को०-७७
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