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हिंगोट ।
गोंदनी
५१८
गोधात चिपा या लसदार पसेव, लासा, निर्यास, गोई-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) गोइयाँ । वि० तृण विशेष । यौ० गेांददानी-गोंद भिगो (दे० ) गुप्त की, छिपाई हुई। रखने का पात्र ।
गोऊ- वि० दे० (हि. गाना-ऊ गांदनी- संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) तृण विशेष, (प्रत्य०)) चुराने वाला, छिपाने वाला। नरकट, एक पेड़, लहरगोंदी।
गोप–स० क्रि० दे०) गुप्त किये, छिपे हुये। गेांदपंजीरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. गांद -+ | "चंचल नैन हैं नहिं गोए'.- स्फु० । पंजीरी ) प्रसूता के खिलाने की गोंद मिली गोकर--संज्ञा, पु० (सं० गो-+-कर ) सूर्य । हुई पंजीरी।
गोकणी--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मलावार में गेदरी ---संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० गंदा ) पानी हिन्दुओं का एक शैव क्षेत्र की शिव-मूर्ति ।
की एक घास जिसकी चटाई बड़ी मुलायम वि० ( सं० ) गऊ के से लम्बे कान वाला। होती है, गोंद (ग्रा०)।
गोकर्णी--संज्ञा, स्त्री. यौ० (सं० ) एक गांदा--संज्ञा, पु. । दे०) पक्षी के खाने लता, मुरहरी, चुरनहार प्रान्ती० )।
और फंसाने की लोई, लभेरा, लसोड़ा। गोकुल-संज्ञा पु० यौ० (सं०) गौओं का झंड, गोंदी संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० गावंदनी = गोसमूह, गोशाला, एक प्राचीन प्रसिद्ध प्रियंगु ) मौलसिरी सा एक पेड़, इँगुदी, । व्रज ग्राम ।
| गोकुलेश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) (गोकुल + गर-संज्ञा स्त्री. (सं० ) गाय गो, गऊ, ईश) गोकुल का अधिपति, श्रीकृष्ण ।। धेनु, किरण, वृषराशि, इन्द्रिय, वाणी, गोकोस-संज्ञा, पु० यौ० (सं० गा+ काश) बोलने की शक्ति, वाक, सरस्वती, आँख, उतनी दूरी जहाँ तक गाय के बोलने का दृष्टि, बिजली, दिशा पृथ्वी, जमीन, माता, शब्द सुन पड़े, छोटा कोस, दो मोल । दूध देने वाले पशु-जैसे, बकरी, भेंडी, भैस गोचर--संज्ञा, पु० (सं० ) गोखरू (हि. प्रादि, जीभ । संज्ञा. पु. (सं.) बैल.. " उच्चटा मटी गोक्षुरैश्चूर्णितैः " वै० जी०। नन्दीनामक शिवगण, सूर्य, चन्द्रमा घोड़ा, गोखरू-संज्ञा, पु० दे० (सं० गोक्षुर एक बाण, तीर, आकाश, स्वर्ग, वन, जल,
प्रकार का क्षुप्र जो काँटेदार होता है, पत्ते नौका शब्द, अंक, अव्य. (फा०) यद्यपि ।
चने के से होते हैं, एक बनौषधि, लोहे के यौ० गाकि-अव्य. (फा० ) यद्यपि, गोल कँटीले टुकड़े जो प्रायः हाथियों के अगर्चि । प्रत्य० (फा० ) कहने वाला।
पकड़ने के लिये उनके रास्ते में फैला दिये ( यौ० में ) जैसे-बदेगो।
जाते हैं, गोटे और बादले के तारों से गूंथ गोपाल--संज्ञा, पु० दे० (हि. ग्वाल )। कर बनाया हुआ एक साज़, कड़े का सा गोपाल, गोप, अहीर । “ नन्दराय के द्वारे । श्राभूषण ।
आये सकल गोपाल "-सू०। | गो -संज्ञा, पु० (दे० ) झरोखा, गौखा गोइँठा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० गा+विष्टा ) (दे० ) अरवा, ताक ।
सुखाया हुआ गोबर, उपला, कंडा। गोखग-संज्ञा, पु. ( सं० ) थलचारी पशु । गाइदा-संज्ञा, पु. ( फा० ) गुप्त भेदिया, गोग्रास-संज्ञा, पु० या० ( सं० ) पके हुये गुप्तचर, जासूस ।
अन्न का भाग जो भोजन या श्राद्धादिक के गोइ-संज्ञा पु० दे० ) गोय, गोप। प्रारम्भ में गाय के लिये निकाला जाता है। गोइयाँ-संज्ञा, पु० दे० स्त्री० (हि. गोहनिया) गोग्रास (दे०)। साथ रहने वाला, साथी, सहचर। गाघात --- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) गोहत्या,
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