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घूरना।
गुरूपदेश
गुलचना गुरूपदेश-संज्ञा, पु० यो० (सं० गुरु - श्रादमियों के बाद एक बचे हुए व्यक्ति का उपदेश) गुरु की शिक्षा।
भी मर जाना, घर में कोई न रह जाना । गुरेरना-स० क्रि० दे० (सं० गुरु =बड़ा+ चिराग गुल करना-दिया बुझाना या हि०-हेरना ) आँखें फाड़ कर देखना, ठंढा करना। पीने की तमाकू का जला
हुआ भाग, किसी वस्तु पर भिन्न रंग का गुरेरा --संज्ञा, पु० (दे० ) गुलेला। गोल निशान जलता हुश्रा कोयला। संज्ञा, गुर्गरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) कम्पज्वर, जूड़ी। पु० कतरटी। गुर्ज-संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) गदा, सोंटा : यौ० गुल---संज्ञा, पु. ( फा० ) शोर, हल्ला । गुर्ज-बरदार = गदाधारी सैनिक । संज्ञा, यो० गुलगपाड़ा-हल्लागुल्ला, शोरगुल | पु० (दे० ) बुर्ज ।
गुल अ-बास--संज्ञा, पु० यौ० ( फ़ा० गुल गुर्जर --- संज्ञा, पु० (सं० ) गुजरात देश, +- अब्बास-प्र. ) एक पौधा जिसमें
वहाँ का निवासी, गूजर ( दे०)। बरसात में लाल या पीले फूल लगते हैं। गुर्जरो- संज्ञा, स्त्री० [सं० ) गजरात देश | गुलाबास ( दे०)।
की स्त्री, भैरव राग की रागिनी। गुलकन्द--संज्ञा, पु० यौ० (फ़ा०) मिश्री या गुर्राना-अ. कि० दे० ( अनु० ) डराने के चीनी में मिला कर धूप में सिझाई हई लिये घुर घुर या गम्भीर शब्द करना। गुलाब के फूलों की पखुरियाँ जिनका व्यव(जैला-कुत्ते-बिल्ली करते हैं ) क्रोध वा हार प्रायः दस्त को साफ़ लाने के लिये
अभिमान से कर्कश स्वर से बोलना। होता है। गुर्रा--संज्ञा, स्त्री० (दे० ) भूना तथा कूटा गुनकारी-संज्ञा, स्त्री(फा० ) बेल-बूटे हुअा जव, रस्सी या तागे की ऐंठन जो | का काम । श्राप से श्राप बन जाये।
गुलकेश-संज्ञा, पु. ( फ़ा० गुल + केश ) गुर्वागना--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० गुरु+ ! मुर्गकेश का पौधा या फूल, जटाधारी। अंगना ) गुरु-पत्नी, माननीय स्त्री। गुलखेरा-संज्ञा, पु० या० (फा० गुल + खैर) गुर्विणी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) गर्भवती। एक पौधा जिसमें नीले फूल होते हैं। गुर्वी-वि० स्त्री० (सं०) गर्भवती, भारी गुलगपाड़ा-संज्ञ, पु० यौ० (अ० गुल+ या श्रेष्ठ वस्तु ।
गप ) बहुत अधिक चिल्लाहट, शोर, गुल | गुल-संज्ञा, पु० ( फा० ) गुलाब का फूल, गुलगुल-वि. (हि. गुलगुला ) नरम, फूल, पुष्प । मुहा०-गुलखिलना- मुलायम, कोमल । विचित्र घटना होना, बखेड़ा खड़ा होना। गुलगुला-वि० पु० (दे०) गुलगुल, नरम । गुल खिलाना—कोई ख़ास या विचित्र संज्ञा, पु. ( दे० ) एक पक्वान्न । बात करना, उपद्रव खड़ा करना । पशु शरीर ! गुलगुलाना-स० क्रि० दे० (हि० गुलगुल) में फूल जैसा भिन्न रंग का गोल दाग़, । गूदेदार चीज़ को दबाना, मलकर मुलायम गालों में हँसने पर पड़ने वाला गडढा, करना या होना। शरीर पर गरम धातु से दागने से पड़ा गुलगोथना-संज्ञा, पु० दे० (हि. गुलगुल हुआ चिन्ह, दाग, छाप, दीप-बत्ती का जल +तन ) नाटा और मोटा व्यक्ति जिसके कर उभरा भाग। मुहा०---चिराग गुल गाल प्रादि अंग फूले हों। होना-( घर का) किसी ख़ास प्रिय गुलचना -- स० क्रि० (दे०) गुलचे का व्यक्ति का मरना, (दीपक) घर के सब | आघात करना. गालों में प्राघात करना।
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