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गलतनी
गला
गलतनी - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) गल-बन्धन, सं०) शिवजी के पूजन के समय गाल बजाने गले का बँधना, गुलूबन्द ।
की मुद्रा, गलमुद्रा, गाल बजाना। ग़लत फ़हमी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (अ.) गलमुच्छा-संज्ञा पु. यौ० दे० (हि० गाल किसी बात को और से और समझना, भ्रम, +मूल) गाल पर के बढाये हुए बाल, गलभूल-चूक।
गुच्छा, गलमुच्छ। ग़लती--संज्ञा, स्त्री० ( अ. गलत+ई.) गलमद्रा- संज्ञा स्त्री० यौ० (सं० गल + मुद्रा) भूल-चूक, अशुद्धि, त्रुटि ।
गलमंदरी। गलथन, गलथना-- संज्ञा पु० दे० (स० गल+ गलवाना - स० कि० (हि० गलना का प्रे०
स्तन) वे थन जो बकरियों के गलों में होते हैं। रूप ) गलाने का काम दूसरे से कराना। गलथैलो-संज्ञा, स्रो० यौ० ( हि० गल+ गलशंडी--- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) जीभ जैसा थैली) मर्कस्कोष बन्दरों के गालों के नीचे मांस का एक छोटा टुकड़ा जो जीभ की जड़ की थैली जिसमें वे खाने के पदार्थ भर के पास रहता है। छोटी जीभ, जीभी, लेते हैं।
कौश्रा, एक रोग जिसमें तालू की जड़ सूज गलन-संज्ञा, पु० (सं.) गिरना, पतन, श्राती है।
गलना । (दे०) अत्यंत शीत, तुषार-पात । गलसुत्रा -- संज्ञा, पु० यौ० (हि. गाल+ गलना-अ० कि० दे० (सं० गरण ) किसो सूजना ) वह रोग जिसमें गाल के नीचे पदार्थ के घनत्व का कम या नष्ट होना, - सूज जाता है। पिघल कर द्रव या कोमल होना, अति गलसुई-संज्ञा, स्त्री० (दे०) गलतकिया। जीर्ण होना, शरीर का दुर्बल होना, देह गलस्तन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गले के सूखना, अधिक सरदी से हाथों-पैरों का थन (दे०)। ठिठुरना, व्यर्थ या निष्फल होना। गलस्तनी-संज्ञा स्त्री० (दे०) बकरी जिसके गलन्दा-संज्ञा पु० (दे०) कटुभाषी, मुखर, गले में थन होते हैं। दुर्मुख । वि०-बकवादी।
गलहँइ- संज्ञा पु० ( दे० ) घेघा रोग, गले गलफड़ा--संज्ञा, पु० दे० (हि. गाल+ __ का रोग । फटना) जल-जंतुओं का वह अवयव जिससे वे गला-संज्ञा पु० दे० (सं० गल ) गर्दन, पानी में भी सांस लेते हैं, गले का चमड़ा। कंठ । मुहा०-गला काटना-सिर काटना, गलफटाकी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) बड़ाई, गर्दन काटना, बहुत हानि पहुँचाना, सूरन घमंड, अपने मुख अपनी प्रशंसा ।
और बंडे श्रादि से गले में जलन होना। गलफाँसी-संज्ञा स्त्री० यौ० (हि. गला+ गला घुटना-दम रुकना, अच्छी तरह साँस फाँसी ) गले की फाँसी. कष्टप्रद वस्तु या न लिया जाना। गला घोटना-गले काम, जंजाल, आफ़त, गरफाँसी (दे०)। को ऐसा दबाना कि साँस रुक जाय, गलबल-संज्ञा, पु० (दे०) कोलाहल, हल- टेटुवा दबाना ( प्रान्ती० ) ज़बरदस्ती
चल । “भई भीर गलबल मच्यो.” छत्र० । करना, मार डालना । गला छूटनागलवाह गलवाँहो-संज्ञा स्त्रो० (हि. गला पीछा छूटना, छुटकारा मिलना । गले
+बाँह) गले में हाथ डालना, कंठालिंगन, तक आना-बहुत गहरा होना, कुछ वि० यौ० गरबाहीं।
स्मरण पाना, गलादबाना-अनुचित गलभंग-(सं०) स्वरबद्ध, बैठा हुआ कंठ ।। दबाव डालना। गला पड़ना-कंठ-स्वर गलमंदरी-संज्ञा स्त्री० ( हि० गल+मुद्रा- का बिगड़ जाना।
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