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गमी
गरजना
गमी --संज्ञा, पु० (सं० ) आगे जाने वाला, | गरई-प्र० कि० (हि. गलना ) गल जाता चलने वाला, गमनकर्ता।
है, पिघल जाता। गम्भारी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) वृक्ष विशेष गरक-वि० दे० (म. ग़र्क ) डूबा हुआ,
जो औषधि के काम में आता है। निमग्न, विलुप्त, नष्ट, बरबाद । स० कि.. गम्भीर-संज्ञा, पु० (सं.) गहिरा, अथाह ।। गरकना - डुबोना, छिड़कना ।... " गरके वि० गहन, गूढ़ ।
गुबिंद के धौं गोरी की गोराई मैं"। गम्मत-संज्ञा, स्त्री. ( दे० ) विनोद, हँसी, | ग़रकाब--वि. ( फा० ) पानी में डूबा
मौज, बहार, गाना-बजाना । गमत (दे०)। हुआ, किसी वस्तु में डूबा हुआ । गम्य-वि० सं०) जाने योग्य, गमन-योग्य, गरकी ... संज्ञा, स्त्री. (फा० ) डूबने की प्राप्य, लभ्य, संभोग या मैथुन करने योग्य क्रिया या भाव, डूबना, बूड़ा, बाढ़, योग्य, साध्य । स्त्री० गम्या ।।
वह भूमि जो पानी के नीचे हो, नीची गयंद-संज्ञा, पु० दे० (सं० गजेन्द्र) बड़ा हाथी। भूमि, खलार, अति वर्षा । गय-संज्ञा, पु. (सं०) घर, मकान, आकाश, गरगज-संज्ञा, पु० दे० (हि. गढ़ -। गज ) धन, प्राण, पुत्र, एक राजा, एक दैत्य | किले की दीवालों पर बना हुआ बुर्ज़, जिस एक तीर्थ का नाम, हाथी (सं० गज )। पर तापें चढ़ी रहती हैं, वह ढूह या टीला गयनाल-संज्ञा, स्त्री० यौ० (दे० ) गज- | जहाँ से बैरी की सेना का पता चलाया नाल (सं.)।
जाता है, तख्तों से बनी हुई नाव की गयल-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) गइल मार्ग, छत, फाँसी की टिकटी। ॐ वि०-बहुत रास्ता, "गैल" (व्र०) "कुल-गैल गहिबेको बड़ा, विशाल, (प्रान्ती० ) ढेर, समूह, हठि हटकत आवै है" रत्ना। गयशिर--संज्ञा, पु० (सं० ) आकाश, गया गरगरा-संज्ञा, पु० (अनु०) गराड़ी, घिरनी। के निकट का एक पहाड़।
गरगराना-प्र. क्रि० (दे०) गर्जना, ज़ोर गया-रंज्ञा, पु. ( सं० ) एक तीर्थ का नाम से बोलना, शोर करना, गर गर शब्द जो बिहार में है, जहाँ पिंड-दान किया | करना। जाता है, एक शहर, जो बिहार में है। | गरगाव- वि० (दे० ) ग़रकाव, पानी क्रि० प्र० (हि. जाना, सं० गम) जाना में डूबा हुआ। क्रिया का भूत कालिक रूप, प्रस्थानित हुआ। गरज - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० गर्जन ) बहुत मुहा---गया-गुज़रा या गया-चीता- गम्भीर शब्द, बादल या सिंह का शब्द । बुरी दशा को पहुँचा हुआ, नष्ट-भ्रष्ट, निकृष्ट। (दे०) ग़रज़ (म.)। गयाघाल-संज्ञा, पु० ( हि० गया+वाल ) गरज-संज्ञा, स्त्री० (१०) श्राशय, प्रयोजन, गया तीर्थ का पंडा, गया वाला।
मतलब, श्रावश्यकता, ज़रूरत, चाह, गर-संज्ञा, पु० (सं० ) रोग, बीमारी, विष, इच्छा । ... " गरज न जानै मेरी गरजन ज़हर । अव्य० (फा० अगर ) अगर का जानैरी" । अव्य०-निदान.अाखिरकार, अन्तसूचम रूप । संज्ञा, पु० दे० ( हि० गला) तोगत्वा, अन्त को जाकर, मतलब यह कि, गला, गर्दन, गरो।(व.) यौ० ( दे०) तात्पर्य यह कि, सारांश यह कि। यौ० गरबहियाँ-गलबाही - गले में हाथ डाल | अलग़रज-तात्पर्य यह कि । वि० ग़रज़कर भेंटना । (फा० प्रत्य०) किसी काम को मंद, स्वार्थी । लो०-ग़रज़मंद घावला। बनाने वाला जैसे-कलईगर, ज़रगर, सौदागर ।। गरजना-प्र० क्रि० दे० (सं० गर्जन ) बहुत
राशि।
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