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केउ
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केदारनाथ केउ —सर्व० ( हि० के+उ ) कोई। कियत् ) कितना, कित्ता, केतो, कित्ती । केउर-संज्ञा, पु० दे० (सं० केयूर) विजायट, | स्त्री० केती, केतिक, किती, किती। वलय, एक बाँह का आभूषण ।
केतिक*-वि० दे० (सं० कति + एक ) केऊ-सर्व० (दे०) कोई, कई. कितने ही।। कितना, कितीक, केतिक, कितेक (व.)। केकड़ा-संज्ञा, पु० दे० ( स० कर्कट ) पाठ केतु --- संज्ञा, पु०( सं० ) ज्ञान, दीप्ति, प्रकाश, टाँगों और दो पंजों वाला एक जल-जन्तु या ध्वजा, पताका, निशान, एक राक्षस का कीड़ा, कर्क।
कबन्ध ( पुरा० ) पुच्छलतारा ( तारा, केकय-संज्ञा, पु. ( सं० ) व्यास और जिसके पीछे प्रकाश की एक पूँछ सी दीखती शाल्मली नदी के दूसरी ओर का देश है)। इसका उदय अनिष्ठसूचक माना गया (प्राचीन) जो अब काश्मीर में है और है, है ग्रहों में से एक जिसकी दशा ७ वर्ष कक्का कहलाता है। केकय देशाधिपति या रहती है, ( ज्यो० फ० ) चंद्र-कक्ष और वहाँ का निवासी।
क्रांति रेखा के अधः-पात का विन्दु (गणि. केकयो-केकई– संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० ज्यो० ) राहु का शरीर। वि० विनाशक, कैकेयी) राजा दशरथ की रानी और भरत जी । श्रेष्ठ । “लूक न असनि, केतु नहिं राहू-" की माता, यह केकय-राज ( पंजाब में | " कहि जय जय जय भृगु-कुल-केतू-" विपासा और शतद् के बीच का प्रदेश ) की रामा० । यौ० धूमकेतु--पुच्छल या धूमकन्या थीं । “ सुनतहि तमकि उठी केतु तारा। कैकेई -" रामा०।
केतुमती-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) एक वर्णार्ध केका-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) मोर की बोली। समवृत्त, रावण की नानी या सुमाली की
पत्नी। केकी-केकि- संज्ञा, स्त्री० पु. (सं० । केकिन ) मोर, मयूर । “अहि कराल केकी
केतुमान-वि० (सं० ) तेजस्वी, ध्वजावाला, भई-"" केकी कंठाभनील" रामा० ।
| बुद्धिमान ।
| केतुमाल - संज्ञा, पु. ( सं० ) जम्बुद्वीप के केचित-सर्व० (सं० ) कोई कोई । “केचिद् |
६ खंडों में से एक। वृष्टिभिरायंति धरणीम्-" भर्तु ।
केतुवृक्ष-संज्ञा, पु. (सं० ) मेरु पर्वत के केडा--संज्ञा, पु० दे० (सं० कांड ) नया चारों ओर के पर्वतों पर के वृक्ष-ये चार पौधा, अंकुर, कोंपल, नवयुवक ।
हैं --कदंव, जामुन, पीपल, बरगद । केत-संज्ञा, पु. ( सं० ) घर, निकेत, केत-वि० दे० ( सं० कियत् ) कितने स्थान, बस्ती, केतु, ध्वजा, क्रीड़ा, कोड़ा, (केतो-ब० ब० ) कित्ते (दे० ) किते (७०) चिन्ह ।
केतो*—वि० (सं० कति ) कितना, स्त्री० केतक-संज्ञा, पु० (सं० ) केवड़ा। केती (व.), कित्ती (दे० )। केतकर-केतकी * --संज्ञा, स्त्री० दे० केदली-संज्ञा, पु० ( दे० ) कदली (सं०) (सं०) एक छोटा पौधा जिसमें तलवार के से |
केला। लम्बे काँटेदार पत्ते और कोश में बन्द | केदार ---संज्ञा, पु. (सं०) धान बोने या मंजरी जैसा अति सुगन्धित फूल होता है, रोपने का खेत, क्यारी, खेत, वृक्ष के नीचे केवड़ा "भौंर न छाँडै केतकी"..''। का थाला, शिव ।। केतन-संज्ञा, पु० (सं०) निमंत्रण, ध्वजा, | केदारनाथ-संज्ञा, पु० (सं०) हिमालय के चिन्ह, घर, स्थान।
अंतर्गत एक पर्वत जिस पर केदार नाथ केता-केती *(ब्र.)-वि० दे० ( | नामक शिवलिंग है, शिव ।
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