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खेल
खेजड़ी
५४१ है। ( तंत्र०)। यौ०-खेचरी मुद्दा- खेतीबारी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि. खेती+ संज्ञा, स्त्री० (सं०) जीभ को उलट कर बारी ) किसानी, कृषि-कर्म । ताल में लगाने और दृष्टि को मस्तक पर खेद -संज्ञा, पु० (सं० ) दुःख, शिथिलता, रखने की एक मुद्रा ( योग-साधन)। अप्रसन्नता । वि० खेदित, खिन्न । खेजड़ी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) शर्म का पेड़। खेदना-स० कि० दे० (सं० खेट ) भागना, खेट-संज्ञा. पु. ( सं० ) ग्रह, अहेर, नक्षत्र, | खदेरना शिकार के पीछे दौड़ना। ढाल, का, लाठी, चमड़ा, तृण, घोड़ा, खेरा । | खेदा--संज्ञा, पु. ( हि० खेदाना) किसी खेटक--संज्ञा, पु० (सं०) खेड़ा, गाँव, | बनैले पशु को मारने या पकड़ने के लिये सितारा, बलदेव की गदा. अहेर, ढाल, | घेर कर एक निश्चित स्थान पर लाने का तारा, आखेट (सं० )
काम, शिकार, अहेर. आखेट ।। खेटकी-संज्ञा, पु० (सं० ) शिकारी, बधिक | खेदित-वि० (सं० ) दुखित, शिथिल । (आखेट ) संज्ञा, पु० (सं०) भडुरी, भड्डर । | खेना-स० कि० दे० (सं० क्षेपण ) डाँड़ों खेटिक-संज्ञा, पु. ( सं० ) बधिक, व्याध, को चलाकर नाव चलाना, कालक्षेप करना, बहेलिया।
बिताना, काटना। खेड़ा-संज्ञा, पु० दे० (सं० खेर ) छोटा खेप --संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० क्षेप ) एक बार गाँव, पुरवा (दे०) खेरा।
में ले जाने योग्य वस्तु, लदान गाड़ी श्रादि खेड़ी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) झरकटिया (कान्ति की एक बार की यात्रा। सार ) या ईस्पात लौह, जरायुज जीवों के खेपना - स० कि० दे० (सं० क्षेपण) गुज़ारना, बच्चों की नाल के दूसरे छोर का माँस खंड । बिताना। खेड़ी (दे० ) गर्भावरण।
खेम-संज्ञा, पु० ( दे०) क्षेम (सं.)। खेत-संज्ञा, पु० दे० (सं० क्षेत्र ) अनाज खेमटा-संज्ञा, पु. ( दे० ) १२ मात्राओं के लिये जोतने-बोने की भूमि, खेत की की एक ताल,इसी ताल का गान या नाच । खड़ी फसल, किसी चीज़ ( पशुधों आदि ) | खेमा --संज्ञा, पु. (अ.) तंबू, डेरा कनात । के उत्पन्न होने का स्थान, समर-भूमि, | यो० डेरा-खेमा। तलवार का फल, पावन भूमि, योनि । खेरी-संज्ञा, स्त्री. (प्रान्ती०) बंगाल का मुहा०-खेत करना-समथल करना, | गेहूँ, एक पक्षी। उदय-काल में चंद्रमा का प्रथम प्रकाश | खेल-संज्ञा, पु० दे० (सं० केलि ) व्यायाम फैलना। खेत पाना-- रहना ) युद्ध या मनोरंजनार्थ उछल-कूद, दौड़-धूप जैसा में मारा जाना । खेत रना--समर में कृत्य, क्रीड़ा हार-जीत वाले कौतुक, मामला, जीत जाना, खेत लेना--युद्ध छेड़ना । हलका ( तुच्छ ) काम, अभिनय, तमाशा, "सानुज निदरि निपातउँ खेता" लीन्यौ स्वांग, करतब, अद्भुत बात, लोला । खेत भारी कुरुराज सों अकेले जाइ "- | मुहा० --खेल करना-व्यर्थ का विनोद अ० व०।
या मज़ाक के लिये छोटे काम करना । खेल खेतिहर - संज्ञा, पु० दे० (सं० क्षेत्रधर ) समझना- तुच्छ या साधारण बात कृषक, किसान।
जानना। खेल खेलाना -बहुत तंग करना, खेती-संज्ञा, स्त्री० (हि० खेत+ ई-प्रत्य०) खेल बिगड़ना -काम बिगड़ना, रंग-भंग, कृषि, किसानी, खेत की फसल, खेत का | होना । खेल न होना- साधारण बात काम । " उत्तम खेती, मध्यम बान"। । न होना । यौ० हँसी-खेल । बायें हाथ का
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