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कौलेय ५०६
क्या कौलेय-संज्ञा, पु. ( सं० ) कूकुर ( दे०) कौशांब की नगरी, वत्सपट्टन (प्रयाग से कुत्ता।
३० मील दक्षिण-पश्चिम में )। कौलेली-संज्ञा, पु० (दे० ) गंधक। | कौशिक-संज्ञा, पु० (सं० ) इंद्र, कुशिक कौवा-( कौा )-संज्ञा, पु० दे० (सं० नृप-पुत्र, गाधि, विश्वामित्र, कोषाध्यक्ष, काक) काक, काग, कागा । मु०-कोवा- कोशकार रेशमी वस्त्र, शृंगार रस, एक उपगुहार ( कौवारोर ) बहुत बकबक, | पुराण, उल्लू, नेवला. मज्जा, ६ रोगों में गहरा शोर-गुल । वि०-बड़ा धूर्त, चतुर से एक । कौसिक (दे० ) "कौलिक सुनहु या काँइयाँ । संज्ञा, पु. (दे० ) बँडेरी के मंद यह बालक"-रामा० । श्राड़ या सहारे की लकड़ी, कौहा, गले के कौशिकी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) चंडिका, ऊपर तालू से लटकता हुआ मांस, घाँटी। कुशिक नृप की पोती और ऋचीक मुनि की लंगर, बगले के चोंच की सी मुँह वाली। स्त्री, करुणा, हास्य और श्रृंगार इसके वर्णन एक मछली। कौवा-टोंटी यौ०-संज्ञा, | वाली सरल वर्ण युक्त एकवृत्ति (काव्य-नाटक) स्त्री० दे० ( सं० काकतुंडी ) काकनासा, एक नदी (कुशी) एक रागिनी । कौषिकी। सकेद और नीचे काक-चंचु जैसी प्राकृति कौशेय-वि० (सं० ) रेशम का, रेशमी। वाले फूलों की एक लता।
कौषीतकी--संज्ञा, स्त्री० (सं०) ऋग्वेद कौवाल-- संज्ञा, पु. (अ.) कौवाली गाने की एक शाखा, उसका एक ब्राह्मण और वाला।
उपनिषद कौवाली-संज्ञा, स्त्री० ( ० ) सूफ़ियों का कोसिला--संज्ञा, स्त्री० (दे०) कौशल्या भगवत्प्रेम-संबन्धी गीत, उसी धुनि की (सं० ) " जस कौसिला मोर भल ताका" ग़ज़ल, कौवालों का पेशा।
-रामा० । कौवेर संज्ञा, पु० (सं० ) कुवेर का, कूट
कौसुम्भ संज्ञा, पु० (सं० ) वन-कुसुम, नामक औषधि, उत्तर दिशा । स्त्री० कौवेरी - उत्तर दिशा, कुवेर की शक्ति।
कौस्तुभ-संज्ञा, पु० (सं०) समुद्र से निकले कौशल -संज्ञा, पु० (सं०) कुशलता, निपु
हुए १४ रनों में से एक मणि, जो विष्णु के णता, मंगल, कोशल देश-वासी । कौसल
वत-स्थल पर रहती है। (दे०)। यौ०-कौसल-पुर-अयोध्या।
क्या-सर्व० दे० (सं० किम् ) प्रस्तुत या
अभिप्रेत वस्तु की जिज्ञासा-सूचक एक कौशलेय-कौशलेश-संज्ञा, पु० या० (सं०)
प्रश्न-वाचक सर्वनाम, कौन वस्तु. बात । रामचन्द्र-कोशल का राजा । कौसलेस (दे०)
मुहा०-क्या कहना है-क्या खूब क्या " कौसलेश दसरथ के जाये"-- रामा०।
बात है--प्रशंसा सूचक वाक्य, धन्य, वाह कौशली-( कुशली)-संज्ञा, स्त्री० (सं० )
वाह बहुत अच्छा है । क्या कुछ, क्या क्या कुशल-प्रश्न, कुशलता । वि० सकुलश।
कुछ-सब या बहुत कुछ, क्या चीज़ है कौशल्या--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कोशल-नृप ( बात है ) नाचीज़ या तुच्छ है। क्या दशरथ की प्रधान स्त्री, राम-माता, कौसल्या, जाता है-क्या हानि होती है, कुछ नुककौसिला ( दे० )। पुरुराज और सत्यवान सान नहीं । क्या जाने ---ज्ञात नहीं, कुछ की स्त्रियाँ, पृतराष्ट्र-माता, पंचमुखी नहीं जानता । क्या पड़ी है-क्या श्रावभारती।
श्यकता या ज़रूरत है, कुछ ग़रज नहीं । कौशांबी--संज्ञा, स्त्री० (सं०) कुश-पुत्र और क्या-हाँ ऐसा ही है। क्या क्या
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