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क्रमण
क्रियाविदग्धा
१०८ क्रमण-संज्ञा, पु० (सं० ) पैर, पाँव के ! क्रियमाण --संज्ञा, पु० (सं० ) वर्तमान कर्म, १८ संस्कारों में से एक !
जो किये जा रहे हों, जिनका फल आगे क्रमिक-वि० (सं० ) क्रमशः।
मिलेगा, प्रारब्ध कर्म । क्रमुक-संज्ञा, पु. ( सं० ) सुपारी, नागर- क्रिया-संज्ञा, स्त्री० (०) किसी काम का मोथा, एक प्राचीन देश, कपास का फल, ! होना या किया जाना, कर्म, प्रयत्न, चेष्टा, पठानी लोध ।
गति, हरकत, हिलना-डोलना, अनुष्ठान, क्रमेल-क्रमेलक-संज्ञा, पु. ( सं० ) क्रमेलस प्रारंभ, शब्द का वह भेद जिससे किसी (यूना० ) ऊँट, शुतुर ।
काम या व्यापार का होना या किया जाना क्रय - संज्ञा, पु० (सं०) मोल लेना, ख़रीदना। प्रगट हो-जैसे आना, जाना ( व्या० ) यौ० क्रय-विक्रय-व्यापार, ख़रीदने और शौचादि कर्म, नित्य कर्म । " नित्य क्रिया बेचने का काम।
करि गुरु पहँ पाये".-रामा० । श्राद्धादि क्रयी-संज्ञा, पु० (सं०) मोल लेने वाला । प्रेत-कर्म, कृत्य, उपाय, विधि, शपथ, क्रयिक-मोल लिया।
उपचार, चिकित्सा, रीति । यौ० क्रियाक्रयणीय-वि० (सं० ) क्रय, केतव्य, कर्म-अंत्येष्टि क्रिया। ख़रीदने योग्य ।
क्रिया-चतुर-संज्ञा, पु. (सं०) क्रिया या क्रय्य-वि० (सं० ) जो बिक्री के लिये हो। घात में चतुर नायक । वि० किया-कुशल क्रव्य-संज्ञा, पु० (सं० ) मांस ।
-काम करने में दक्ष। त्रिया-पटु-- चतुर । कव्याद--संज्ञा, पु० (सं०) मांस-भक्षी, क्रियातिपत्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) एक चिता की भाग।
अलंकार जिसमें प्रकृति से भिन्न किसी विषय क्रांत-वि० (सं० ) दवा या उका हुअा, का वर्णन कल्पना करके किया जाये, यह ग्रस्त, जिस पर आक्रमण हो, आगे बढ़ा अतिशयोक्ति का एक भेद है (अ० पी०)। हमा-जैसे-सीमाक्रान्त
क्रियानिष्ठ-वि० (सं०) संध्या-तर्पणादि क्रान्ति - संज्ञा, पु० (सं०) गति, कदम- नित्य कर्म करने वाला: रखना, वह कल्पित वृत्त जिग्य पर सूर्य क्रियान्वित--वि० (सं० ) क्रिया-युक्त । पृथ्वी के चारों ओर घूमता जान पड़ता है। क्रियापर-वि० (सं०) क्रियापटु, सुकर्मा । ( खगोल ) अपक्रम, भारी परिवर्तन, फेर- क्रियापाद-संज्ञा, पु. ( सं० ) चतुष्पाद, फार, उलट-फेर, उपद्रव, अत्याचार, दीप्ति, व्यवहार का तीसरा पाद, सानियों का शपथ प्रकाश । यौ० कान्तिवृत्त-सूर्य पथ करना। ( खगो०), क्रान्ति-मंडल-संज्ञा, पु० क्रियायोग-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) देव-पूजन, यो० (सं०)राशि-चक्र, सूर्य का कल्पित पथ मंदिरादि बनवाना। क्रान्तिकारी-वि० (सं०) क्रांति या परिवर्तन | कियार्थ-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वेद में करने वाला।
__ यज्ञादि कर्म-प्रतिपादक विधि-वाक्य । क्रिचयन -संज्ञा, पु० दे० (सं०कृच्छचांद्रायण) | क्रियावसन्त--वि० (सं० ) पराजित । चांद्रायण व्रत ।
क्रियावान-वि० (सं०) कर्मोद्यत, कर्म में क्रिमि-संज्ञा, पु० (सं० ) कीड़ा, कृमि, नियुक्त, सच्चरित्र, कर्मनिष्ठ, कर्मठ । पेट में कीड़ों का रोग।
क्रियाविदग्धा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) वह क्रिमिजा--संज्ञा, स्त्री० (सं०) लाह, लाख । नायिका जो नायक पर किसी क्रिया के द्वारा क्रय-संज्ञा, पु० (सं० ) मेषराशि । अपना भाव प्रगट करे।
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