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कृष्णजीरा
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के
कृष्णजीरा - संज्ञा, पु० (दे० ) काला जीरा, कृष्णाभिसारिका - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०)
कलौंजी ।
वह अभिसारिका नायिका जो श्याम वस्त्रादि पहिन कर अँधेरी रात में अपने प्रेमी के पास संकेत स्थान को जाती है ।
कृष्णता - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कालिमा, घु, श्यामता ।
कृष्णभद्रा - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कुटकी क्लुप्त - वि० (सं० ) रचित, निर्मित । यौ० श्रौषधि | वि० क्लुप्तकेश - जटाधारी ।
कृष्णलौह - संज्ञा, स्त्री० (सं०) श्रयस्कांत,
चंबक |
के-के - संज्ञा, स्त्री० ( अनु० ) चिड़ियों का कष्ट - सूचक शब्द, झगड़ा या असंतोषसूचक शब्द |
चलो, केंचुली, केंचुल केंचुरी -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कंचुक ) सर्पादि के शरीर का झिल्लीदार चमड़ा जो प्रति वर्ष गिर जाता है । मु० - केंचुल बदलना -- साँप का केंचुल छोड़ना, कायाकल्प करना, रंग-ढंग बदलना |
केंचुआ - संज्ञा, पु० दे० ( सं० किचिलिक ) डोरे का सा लम्बा-पतला एक बरसाती कीड़ा जो मिट्टी खाता है, ऐसे ही सफ़ेद कीड़ा जो मल के साथ पेट से निकलता है। केन्द्र - संज्ञा, पु० (सं०, यू० केंट्रन ) वृत के बीच का वह विन्दु जो सब ओर परिधि से बराबर दूरी पर हो या जिससे परिधि तक खींची गई रेखायें बराबर हों, ठीक मध्य - विन्दु, नाभि, किसी निश्चित अंश से 80, १८०, २७०, ३६० अंश के अंतर का स्थान, मुख्य या प्रधान स्थान, रहने का स्थान, बीच का स्थान, लग्न और उससे ४था, वाँ, १० वाँ, स्थान ( ज्यो० ) । केंद्री - वि० (सं० केदिन् ) केंद्र में स्थित, केन्द्र-युक्त, वृत्त । केन्द्रीभूत-संज्ञा, पु० (सं० ) एकत्रित, संकुचित, संकीर्ण |
के- - प्रत्य० ( हि० का ) संबन्ध सूचक "का" विभक्ति का बहुवचन रूप, "का" विभक्ति का ( एक० वच० ) वह रूप जो उसे संबन्धवान के विभक्ति-युक्त होने पर प्राप्त होता है, जैसे राम के घर पर । सर्व० (हि०) कौन, कोई, (सं० कः ) ( अवधी ० ) ।
कृष्णवक्त्र – संज्ञा, पु० (सं० ) काले मुँह का वानर, लंगूर, कृष्ण वानर । कृष्णवर्मा - संज्ञा, पु० (सं०) श्रग्नि चित्रक
वृक्ष |
कृष्ण कृत्तिका - संज्ञा, पु० (सं० ) कम्भा afa, भारी (दे० ) |
कृष्ण - सखा - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कृष्ण के मित्र, अर्जुन ।
कृष्णसारंग – संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) कृष्णसार, हरिण 1
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यमुना,
कृष्णा - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) द्रौपदी, दक्षिण की एक नदी, पीपल, काली दाख, काली (देवी), मिकी ७ जिह्वाथों में से एक, काली तुलसी ( श्यामा या कृष्ण तुलसी ) - काली सरसों ।
कृष्णाग्रज - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बलदेव,
बलराम ।
कृष्णागुरु -- संज्ञा, पु० (सं०) काला गर । कृष्णाचल – संज्ञा, पु० यौ० ० (सं० ) काला पहाड़, रैवतक पर्वत । कृष्णाजिन - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कृष्ण मृग का चर्म । " विना केन विना नाभ्यां कृष्णाजिनमकल्मषम् " सु० २०, भा० । कृष्णा फल - संज्ञा, पु० (सं० ) काली मिर्च | कृष्णार्पण -संज्ञा, पु० (सं० ) फलाकांक्षा
रहित कर्म- संपादन, दान | कृष्णाष्टमी -संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) भाद्रकृष्णपक्ष की अष्टमी, जन्माष्टमी । कृष्णापकुल्या - संज्ञा स्त्री० (सं० ) पीपर, पिप्पली ।
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