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नगर।
कोलिया ५०२
कोस कोलिया-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) सँकरीगली, अयोध्या नगर । यौ० कोशलपुर (कोशलम्बा खेत, कुलिया।
लपुरी )- अयोध्या, कोशलाधीशकोली- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० - कोड़) संज्ञा, यौ० पु. (सं० ) श्रीराम, कोशलेश, गोद, संज्ञा, पु० ( दे० ) कोरी। कोसल । दे०)। कोल्हू-संज्ञा, पु० दे० (हि. कूल्हा १) कोशवृद्धि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) अंडतिल आदि से तेल या गन्ने से रस निका- | वृद्धि रोग, धन की बढ़ती। लने का यंत्र।
कोशांबी - संज्ञा, स्त्री. ( दे०) कोशांबी मुहा०-कोल्हू का बैल ( तेली का बैल )--अति कठिन श्रम करने वाला, कोशागार--संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) नासमझ, अंधा । कोल्हू में डाल कर
खजाना। पेरना-अति कष्ट देना।
कोशिश--संज्ञा, स्त्री. ( फा० ) प्रयत्न, कोविद-वि० सं० ) पंडित, विद्वान,
चेष्टा, श्रम। कृतविद्या।
कोष-संज्ञा, पु० (सं० ) कोश, ख़जाना,
शब्द-संग्रह। कोविदार-संज्ञा, पु० ( सं० ) कचनार
कोषाध्यक्ष संज्ञा, पु. ( सं० ) ख़जानची, वृक्ष।
कोषाधीश, भंडारी। कोश-संज्ञा, पु. (सं० ) अंडा, संपुट, की बँधी कली पंचपात्र ( पूजा का पात्र
कोष्ठ~संज्ञा, पु० (सं०) उदर का मध्य बरतन ) तलवार आदि की म्यान, श्रावरण,
भाग, पेट का भीतरी हिस्सा, किसी विशेष
शक्ति वाला शरीर का आंतरिक भाग, गर्भाखोल, प्राणियों के अन्नमय आदि ५ श्राव.
शय, पाकाशय, कोठा (दे०), घर का रण ( वेदा० ) थैली, संचितधन, अर्थ और
भीतरी भाग जहाँ अन्न रहता हो, गोला, पर्याय के साथ एकत्रित किए गये शब्द
कोश, भंडार, प्राकार, शहर पनाह, चहारसमूह का ग्रंथ, अभिधान समूह, अंड कोश,
दीवारी, लकीर, दीवाल या बाट आदि से रेशम का कोया, कुसियारी, कटहल आदि
घिरी जगह। फलों का कोया, मद्य-पात्र, कमल का मध्य कोष्ठक-संज्ञा, पु० (सं० ) खाना, कोठा, भाग, खज़ाना, कोस (दे०)।
खाने या घर वाला चक्र, सारिणी, लिखने कोशकार -संज्ञा, पु० (सं० ) म्यान या में एक प्रकार के चिन्हों का जोड़ा जिसके शब्द कोश बनाने वाला, शब्द-संग्रहकार, अन्दर कुछ वाक्य या अंक लिखे जाते हैं। रेशम का कीड़ा।
जैसे-[], { }, ()। कोशपान-संज्ञा, पु. (सं०) अभियुक्त | कोष्टवद्ध-संज्ञा, पु. (सं० ) पेट में मल को एक दिन उपवास करा कुछ प्रतिष्ठित | का रुकना, कब्जियत । जनों के समक्ष ३ चुल्ल, जल पिला कर उसके | कोष्ठागार-संज्ञा, पु० यो० (सं० ) कोष । अपराध की परीक्षा करने का एक प्राचीन कोष्ठी संज्ञा, स्त्री. (सं०) जन्म-पत्रिका । विधान या ढंग।
कोस-संज्ञा, पु० (दे०) (सं० क्रोश ) कोशपाल कोशपालक-संज्ञा, पु. यौ । दूरी की एक नाप जो ४००० या ८००० (सं०) खज़ाने का रक्षक।
हाथ (प्राचीन ) या २ मील ( ३५२० कोशल (कोशला)-संज्ञा, पु. (सं०) गज़) के बराबर ( वर्तमान समय में ) सरयू (घाघरा ) के दोनों तटों का प्रदेश, | होती है। संज्ञा, पु० दे० (सं० कोश, कोष) वहाँ की रहने वाली एक क्षत्रिय जाति, | खज़ाना ।
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